हज़रत ख्वाजा मुईनउद्दीन चिश्ती रजि. की महफिल में एक शख्स हाज़िर हुआ, सलाम किया और कहा के हज़रत बहुत दिनों से आपकी खिदमत में हाज़िर होने का आरजूमंद था। आज मुझे यह सआदत हासिल हो गई है। ख्वाजा साहब मुस्कुराये और फरमाया, भाई तू जिस इरादे से यहां आया है उस पर अमल कर देर मत कर। इन शब्दों के साथ ही उस शख्स के चेहरे का रंग उड़ गया और थर-थर कांपने लगा। उसने अपने कपड़ों के अन्दर से खंजर निकाली और ख्वाजा साहब के कदमों में डाल दिया और उनसे माफी मांगी। कहने लगा हुज़्ाूर आपको तो सब मालूम है। मेरा इरादा आपको क़त्ल करने का नहीं था। एक शख्स ने मुझे पर दबाव डाला और मैं उसके कहने पर आ गया, यह मेरी गलती थी। आप जो चाहें सज़ा दें। हज़रत ख्वाजा मुईनउद्दीन ने उसको मआफ कर दिया। आपके करामातों ने इस्लाम को ताक़त दी।
एक मर्तबा हज़रत ख्वाजा मुईनउद्दीन चिश्ती अपने एक मुरीद शेख अली के साथ कमरे में बैठे हुए थे। एक शख्स वहां आया और शेख अली को पकड़ कर सख्त लहजे में कहने लगा कि तुमने जो मुझसे पैसे कर्ज़ लिये थे वापस कर दो। ख्वाजा साहब ने उसे समझाया के एक दो रोज़ की मोहलत दे दो तुम्हारे पैसे वापस कर दिये जाएंगे। लेकिन वह न माना और बराबर सख्त कलामी करता रहा। हज़रत ख्वाजा साहब को यह बात नागवार गुज़री और उन्होंने अपनी चादर फर्श पर बिछा दी। रूपयों की बारिश होने लगी और चादर सिक्को से भर गई। आपने उस शख्स से कहा जितने पैसे तुम्हारे इसकी तरफ निकलते हैं ले लो। उस शख्स की रूपयों को देख कर नियत खराब हो गई उसने चाहा कि सारे रूपये बटोर लूं। उसी वक्त उसने जब अपना हाथ रूपयों की तरफ बढ़ाया तो उसका हाथ बेकार हो गया और रोता हुआ गिड़गिड़ाता मआफी का तलबगार हुआ। ख्वाजा साहब ने उसका कसूर माफ कर दिया, उसी लम्हे उसका हाथ ठीक हो गया।
एक अक़ीदतमंद हज़रत ख्वाजा मुईनउद्दीन की खिदमत में हाज़िर हुआ। शहर के हाकिम की ज़्यादतियों की शिकायत की और कहा हज़रत उसने मुझे शहर छोड़ने का हुक्म दिया है। हालंाकि मैं बिलकुल बेकसूर हूं। सरकार ग़रीब नवाज़ ने चन्द लम्हों के लिए मुराकबा फरमाया और कहा कि जा फिक्र मत करो। अल्लाह तआला ने तुम्हें उसके ज़्ाुल्म से निजात दे दी है। अब वह इस दुनिया में नहीं है। वह शख्स वहां से वापस शहर में आया तो पता चला कि हाकिमे शहर घोड़े से गिर कर मर गया।
हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ ने अजमेर में मुस्तहकीन के लिए लंगर कायम किया हुआ था। हज़ारों लोग रोज़ाना खाना खाते थे। हालांकि ख्वाजा साहब की आमदनी का कोई ज़रिया नहीं था और न ही किसी ने उनकी खिदमत में लंगर के इंतज़ाम के लिए कोई रकम पेश की खादिम को हिदायत थी कि जब रकम लेने पहुंचता आप अपने मुसल्ले का एक कोना उठा देते और कहते ले लो खादिम को जितनी रकम की जरूरत होती ले लेता। हज़रत ग़रीब नवाज़ को ग़रीबों से मुहब्बत व उन्सीयत थी।