यह पुराना वाकया है, जो एक संत और शैतानी फितरत वाले एक शख्स के बीच घटित हुआ। कहा जाता है कि दुष्टï प्रकृति का एक शख्स एक संत की सहनशीलता की परीक्षा लेने उनकी कुटिया मेïं पहुंचा। उस शख्स ने संत से सवाल किया ”यह तो आपने सुना होगा जब कोई आपके एक गाल पर थप्पड़ मारे, तब आप अपना दूसरा गाल भी उसके सामने कर देना। क्या आप इस उपदेश पर अमल करते हैï?ÓÓ इस पर संत ने जवाब दिया, ”हां क्योंï नहींï, एक बार तुम भी आजमा कर देखो।ÓÓ बस इतना सुनना था कि उस दुष्टï ने संत के बाएं गाल पर एक करारा थप्पड़ रसीद कर दिया। इसके बाद संत ने अपना दायां गाल उसके सामने कर दिया। दुष्टï ने इस गाल पर भी तमाचा जड़ दिया। दुष्टï ने तीसरी बार संत के बाएं गाल पर थप्पड़ रसीद करने के लिए हाथ उठाया, इसी बीच संत ने उस दुष्टï का हाथ पकड़ा और पलटकर उसके दोनोïं गालोïं पर थप्पड़ोंï की झड़ी लगा दी। दुष्टï को संत से सपने मेïं भी ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीïं थी। उसने संत से सवाल किया कि मुझे कम से कम आपसे ऐसे आचरण की उम्मीद नहींï थी। इस पर संत का जवाब था, ”मैïंने गलत क्या किया? मैïंने तो बताये हुए सिद्धांतों का ही पालन किया। दो थप्पड़ोंï के बाद गाल पेश करने का जिक्र कहींï नहींï आया है।ÓÓ
गुनाह के मुताबिक सजा देïं
ऊपर दिया गया दृष्टांत अन्याय के विरुद्ध न्याय के व्यावहारिक पहलुओंï को अपनाने का संदेश देता है। इससे आप यह सबक ले सकते हंैï कि अन्याय को सहने की भी एक सीमा होती है। नाइंसाफी या किसी गलत बात का प्रतिकार किया जाना चाहिए, पर इस संदर्भ मेंï यह बात याद रखेंï कि अन्याय का प्रतिशोध उसी अनुपात मेंï होना चाहिए, जिस अनुपात मेंï किसी शख्स ने कोई अपराध, गलती या चूक की हो।
सामाजिक जीवन और प्रतिकार
सामाजिक जीवन मेंï ऐसे अनेक अवसर आते हैïें, जब कोई शख्स शिष्टïाचार को अंगूठा दिखाते हुए नाइंसाफी की बात करता है। मसलन, जैसे यदि आपके पड़ोसी को कान-फाड़ू आवाज मेंï टेलीविजन या म्यूजिक सिस्टम सुनना सुहाता है। इस वजह से आपको सोने, पढऩे-लिखने मेंï व्यवधान पैदा होता है। अब इस व्यवधान का प्रतिकार करने के लिए आपको सबसे पहले अपने पड़ोसी के समक्ष विरोध दर्ज कराना चाहिए। यदि उसके बाद भी पड़ोसी आपकी बात को अनसुना कर देता है, तो किसी दिन आप भी फुल-वाल्यूम पर टी.वी. या म्यूजिक सिस्टम चलाएं। यकीन मानेंï, आपके इस कृत्य से पड़ोसी को अपनी गलती का करारा अहसास हो जाएगा। इसी तरह के एक दूसरे उदाहरण पर गौर फरमाएं। फर्ज करेï, कोई पड़ोसन आपके घर के सामने अक्सर कूड़ा फेïंक देती है। आपके मना करने के बाद भी वह आपकी बात को अनसुना कर रही है। इस सूरतेहाल मेंï आपको भी वही हरकत करनी चाहिए, जो वह आपके साथ कर रही है। असल मेïं इस तरह की घटनाएं तो नमूना भर हैï। आपका ऐसी अशालीन घटनाओïं से साबका अपने कार्यक्षेत्र, सार्वजनिक स्थलोंï, बस, ट्रेन आदि के सफर या कहींï भी हो सकता है। आपको माहौल भांपकर उसके इस अशालीन आचरण का माकूल जवाब देना चाहिए।
इंसाफ के नाम पर
इंसाफ का तकाजा है कि जो शख्स कुसूरवार है, उसे सजा मिलनी ही चाहिए। इस संदर्भ मेंï आपको अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी का वचन तो याद ही होगा कि अन्याय करने वाला और अन्याय सहने वाला दोनोïं ही बराबर के कुसूरवार होते हैï। इसलिए जो बात शिष्टïाचार व नैतिक मूल्योïं की दृष्टिï से गलत है, उसका आपको हर कीमत पर विरोध करना चाहिए। आशय यह है कि सज्जनता का जवाब सज्जनता से और दुष्टïता का जवाब दुष्टïता से देना चाहिए।
निजी ताल्लुकात बनाम इंतकाम
किसी शायर ने बजा फरमाया है, ‘ताल्लुक जब बोझ बन जाए तो उसे तोडऩा अच्छाÓ। यह बात निजी संबंधोंï पर भी लागू होती है। फर्ज करेïं, किसी सहेली या दोस्त के साथ आपके संबंध उस मुकाम पर पहुंच गए हैï, जहां से वापस लौटना मुश्किल है और वह शख्स आपको निरंतर पीड़ा दे रहा है, तो इस सूरतेहाल मेंï आपको उसकी इस करतूत का प्रतिरोध करना चाहिए। अगर आप विरोध नहीïं करेïगी, तो यह तय मानेï कि वह शख्स आपकी पीड़ा को कभी नहींï समझ सकेगा।
कुछ जरूरी परामर्श
नैतिक दृष्टिï से अपने साथ हुए अन्याय का बदला लेना जरूरी है। किसी शख्स के अशालीन व्यवहार का प्रतिरोध किया ही जाना चाहिए, पर प्रतिरोध करने से पूर्व कुछ आवश्यक बातोïं पर गौर फरमाएं-
* किसी से बदला लेने का मतलब यह नहींï है कि आप कानून को अपने हाथ मेंï ले लेंï। किसी भी सूरतेहाल मेंï प्रतिकार के नाम पर आपको कानून नहींï तोडऩा चाहिए।
* क्रोध मेंï या आवेग की स्थिति मेंï किसी से बदला न लेंï। तैश में आप सटीक तरीके से प्रतिकार नहींï कर सकते।
* अपने मन से इस धारणा को निकाल देंï कि प्रतिशोध लेना नैतिक या धार्मिक दृष्टिï से अनुचित है। यह सोचेïं कि आप किसी को उसके अनुचित आचरण के लिए सबक सिखा रहे हैंï।
* याद रखेंï, इस जगत मेंï कर्मफल का सिद्धांत लागू है। यदि किसी ने अनुचित कर्म किया है, तो उसे इसका दंड मिलना ही चाहिए।
* मनोचिकित्सकोïं का भी कहना है कि किसी अन्यायपूर्ण बात को बर्दाश्त करना मस्तिष्क को बोझिल व तनावपूर्ण बना देता है और आप अनेक शारीरिक-मानसिक रोगोंï की शिकार बन सकते हैंï। अनुचित बात का प्रतिकार करने के बाद आपका मन खुद-ब-खुद शांत हो जाता है।
– रईसा मलिक