1945 से पहले जापानी एक लड़ाकू कौम की हैसियत करते थे। दूसरे विश्व युद्घ में उन्होंने अपनी वहशियाना बहादुरी की हद तक अपने जंगे जुनून का सुबूत दिया। मगर 6 अगस्त 1945 को जब एटमबम ने उन्हीं के 2 महत्वपूर्ण शहरों को तबाह व बर्बाद कर दिया। तो इसके बाद जापान में एक नया $जहन उबरा जिसको उन्होंने रिवर्स कोर्स का नाम दिया। यानि जंग का तरीका छोड़कर शांति के तरीक़े से अपने जीवन का निर्माण करना। रिवर्स कोर्स का यह प्रयोग बहुत ही सफल रहाी, जापान युद्घ के द्वारा जो कुछ प्राप्त करने में असफल रहा था। इसको उसने शांति द्वारा अधिक शानदार तौर पर हासिल कर लिया।
यह रिवर्स कोर्स अपनी कार्यप्रणाली के अनुसार ऐन वही ची$ज है जो इस्लाम की तारी$ख में सुलह हुदेबिया की सूरत में पाई जाती है। हदीस में आया है कि हिकमत मौमिन का गुमशुदा माल है। जहां वो इसको पाये तो वही सबसे ज्य़ादा इसका ह$कदार है। इस प्रकार से यह जापानी हिकमत ऐन इस्लामी हिकमत है। और एहले इस्लाम सबसे ज्य़ादा यह हक़ रखते हैं कि वो इसको अपने नवनिर्माण के लिए प्रयोग में लायें।
मुसलमान 100 साल से भी ज्य़ादा अर्से से दूसरों की तरफ मार्च का तर्जुबा कर रहे हैं। मराठों और सिक्खों की तरफ मार्च, अंग्रेजों की तरफ मार्च, हिन्दुओं की तरफ मार्च, हुक्मरानों की तरफ मार्च, नईदिल्ली और अयोध्या की तरफ मार्च। दूसरों की तरफ मार्च की इस सियासत में मुसलमानों ने खोया तो बहुत है मगर पाया कुछ नहीं। अब मैं मुसलमानों के सामने यह सलाह पेश करता हूँ कि वो इस रिवर्स कोर्स के उसूल पर अमल करें। वो दूसरों की तरफ मार्च के तरी$के को छोड़ दें और अपनी तरफ मार्च के तरीक़े को इख्तियार कर लें। दूसरों की तरफ मार्च में उन्होंने अगर 200 साल खत्म किये हैं तो अपनी तरफ मार्च में सिर्फ 2 साल लगा दें, और इसके बाद देखें कि कौन सा तरीक़ा ज्य़ादा फायदेमन्द है। दूसरों की तरफ मार्च का या अपनी तरफ मार्च का?
दूसरों की तरफ मार्च में मुसलमानों की काफिला एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा मगर अपनी तरफ मार्च में हर $कदम अगला $कदम है, इसमें नाकामी का कोई सवाल ही नहीं।