आंदोलन

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महंगाई तथा वस्तुओं के अभाव से सारा जिला कराह उठा हर घर में असंतोष का धुआं भर गया था। ग्रामों में बढ़ती महंगाई की चर्चायें थीं और बढ़ती महंगाई के विरूद्घ प्रदर्शनों तथा आम सभाओं का आयोजन किया जा रहा था।
जिले की शांति और व्यवस्था के लिये मैंने हर संभव उपाय कर लिये थे। अतिरिक्त पुलिस दल जगह-जगह भेज दिये थे, तहसीलदारों से भी स्थिति पर कड़ी न$जर रखने के आदेश दे दिये थे मैं जानता था और बात भी सही थी, मात्र शांति व्यवस्था इस असंतोष का इलाज नहीं है। जो धुंआ घरों से उठ रहा है वह कभी भी विस्फोटक स्थिति ले सकता है।
मैंने प्रदेश शासन को स्थिति के बारे में पूरी तरह से अवगत करा दिया था। स्थिति से हर संभव तरीके से निपटने के लिए उन्होंने मुझे हरी झंडी दे दी थी। पर मैं नहीं चाहता था कि मेरे कार्यकाल में जिले में ऐसी कोई अप्रिय घटना हो जो इतिहास बन जाये, मैं न केवल प्रशासनिक तरीके से किन्तु जन सहयोग से भी जिले में शांति कायम रखना चाहता था।
मैंने मानसिंह को बुलाया। उससे कहा कि सत्ता पार्टी के जिलाध्यक्ष होने के नाते वह अपने कार्यकर्ताओं का सहयोग महंगाई से लडऩे तथा जमाखोरी, मुनाफाखोरी रोकने में जिला प्रशासन को दे।
मानसिंह को यह नई बात लगी। अभी तक तो वह अपनी राजनैतिक शक्ति का उपयोग अधिकारियों -कर्मचारियों के स्थानान्तरण कराने या क चुनाव में वोट देने में ही करता था। इस सार्वजनिक हित के रचनात्मक कार्य में वह पार्टी अध्यक्ष के रूप में क्या करेगा, यह समझ नहीं पा रहा था हालांकि प्रदेश स्तर पर उसकी पार्टी ने भी प्रशासन में सहयोग देने का आव्हान किया था।
वह बोला ‘साहब हम लोग इसमें क्या कर सकते हैं, हमें कोई स्पष्टï निर्देश दीजिये।Ó
मैं उसकी अड़चन समझता था, गोल-मोल भाषा में सिद्घांत तो बखाने जा सकते हैं पर उनकी क्रियान्विति करने के लिए कार्यकर्ताओं के समाने स्पष्टï रूपरेखा होना चाहिए। मैंने कहा ‘आप लोग कुछ न करें केवल इतना कीजिए कि जिले भर में जितनी सस्ते मूल्य की दुकानें हैं उनसे प्रत्येक उपभोक्ता को उचित सामान मिलता जाये इसकी निगरानी रखें।Ó
‘इसके लिये हमें क्या करना चाहिएÓ
‘आप प्रत्येक दुकान की निगरानी के लिए स्थानीय लोगों की एक कमेटी बना दीजिये जो समय-समय पर डीलरों का स्टाक चेक करती रहे तथा विवरण के कार्य में सहयोग दे, यह सुनकर वह चुप रह गया। मैं उसके चेहरे को पढऩे लगा। वह किसी द्वन्द्व में पड़ गया है, फिर मुझे लगा डीलरों की निगरानी? उसी को जी हुजूरी करके शक्कर, तेल, खाद्यानों के वितरण के परमिट डीलरों ने लिये थे। जैसे कि अधिकांश स्थानों पर होता है ये डीलर आधा माला तो प्रभावी उपभोक्ताओं में बेचते तथा आधा भारी मुनाफा लेकर काले बाजार में निकाल देते थे। भ्रष्टï अधिकारी तथा दलाल नेता जब तब इनसे जेबें गरम करते रहते और ये गरीब जनता की जेबें काटते रहते हैं।Ó
जी पूरी कोशिश करूंगा कहकर मानसिंह चला गया।
वोटो के लिये बिका नेता और नोटों में खरीदा गया अफसर कभी कोई सही काम नहीं कर सकता। जिले में असंतोष बढ़ता जा रहा था, विरोधी पार्टी इसका राजनैतिक लाभ उठाने के लिए जनता को उभाड़ रही थी।
विरोधी पार्टी ने जिला मुख्यालय में महंगाई विरोधी प्रदर्शन निकालने की योजना बनाई। जिले के गुप्तचर विभाग ने खबर दी कि बाहर से कुछ असामाजिक तत्व नगर में आ गये है। इस बात की पूरी संभावना है कि प्रदर्शन के दिन हिंसा भड़क उठे।
जल्दी में मैंने जिला अधिकारियों की बैठक बुलाई पुलिस कप्तान नये थे। दो साल पहिले ही आईपीएस किया था। अभी अविवाहित भी थे। हिंसा भड़कने की बात उठी तो उत्तेजित हो उठे- बोले सर गुन्डागर्दी करने वालों से निपट लूंगा किसी भी कीमत पर जिले की शांति भंग नहीं होने दूंगा। कप्तान साहब, मैं गंभीर हुआ। उनकी समस्या का समाधान तो अधिक अनाज, अधिक शक्कर अधिक वनस्पति है जिसे चुटकी बजाकर दिया नहीं जा सकता। हमें हमारे पास जो है से इस खूबसूरती के साथ बांटना है कि वास्तव में जरूरत मंद लोगों को मिले और यह काम लम्बी प्रक्रिया का है सब वर्गों के सहयोग का अभी जो प्रदर्शन हो रहा है, मैं बोलता गया उसे शांतिपूर्ण तरीके से हो जाने की परिस्थितियां निर्माण करना है प्रदर्शन के बहाने जनता का असंतोष निकल जायेगा। हमें विचार करना है कि क्या व्यवस्था की जाये कि उस दिन ऊधम न हो पाये। सभी अफसरों ने मिल पर कार्यक्रम निश्चित किया। इस बात की मुझे लगातार सूचना मिलती रही थी कि हिंसा भड़काने के प्रयास होंगे, मैं स्थिति पर न$जर रखे था। मैंने शहर के प्रतिष्ठिïत लोगों को भी शांति स्थापना के लिए आह्वïान किया।
अजीब सी तटस्थता आ गई हमारे जीवन में। हमें क्या मतलब जब हम पर बीतेगी तब देखा जायेगा। जन सहयोग का मेरा आमंत्रण खाली कारतूस ही सिद्घ हुआ। प्रदर्शनकारियों का जुलूस दूसरे दिन ठीक समय पर बस स्टैण्ड पर एकत्रित हुआ। कोई दो हजार लोग होंगे, अधिकांश छात्र थे स्कूल कालेजों में पढऩे वाले।
भीषण भाषण तथा उत्तेजक नारों के साथ जुलूस मेरे कार्यालय की ओर बढ़ा। मैंने लाउड स्पीकर के माध्यम से कहा आपकी हर शिकायत पर पूरा ध्यान दिया जायेगा। जिले के जमाखोरों और मुनाफाखोरों को कड़ा दण्ड दिया जायेगा। उनका पता लगाने में हमें सहयोग दीजिए। मुनाफाखोर अपने ही बीच में है आप उन्हें उजागर कीजिए शासन आपके साथ है, पर जुलूस पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने तो जिला कार्यालय को नष्टï करने की योजना बनाई थी।
मैं जान रहा था कि इस कार्यक्रम के पीछे कौन है, वे मौका परस्त और भ्रष्टï लोग थे। इनके सैकड़ों प्रकरण मेरी टेबिल पर थे, कई महत्वपूर्ण कागज तथा दस्तावेज मेरी सुरक्षा में थे। मेरा स्वभाव जान गये थे। उनमें अनेकों को विश्वास हो गया था कि जेल के दरवाजे उनके लिये खुल गये हैं।
वे इस प्रदर्शन का उपयोग अपने पक्ष में करना चाहते थे। जिला कार्यालय में आग लगाने के लिए बाहर से किराये के गुण्डे भी आ गये थे। जिन पर हमारे गुप्तचर सादी ड्रेस में रहकर न$जर रखे हुए थे। छोटी-छोटी कुप्पियों में पेट्रोल भरकर जिला कार्यालय के पास इन गुण्डों द्वारा रख लिया गया था जिससे की आग लगाकर शीघ्र ही सब कुछ खाककर दिया जाये। पर वाह रे मेरी एलआईबी का इन्सपेक्टर। उसने भी चाल चल कर अपने एक सिपाही को उन गुण्डों का साथी बनवा दिया जो कि अभी-अभी जुलूस में शासन विरोधी नारे लगा रहे थे। हुआ यह कि इस जिले के पूर्व जिस जिले में मेरा यह इन्सपेक्टर था उस जिले का एक गुण्डा उसे बस स्टेण्ड पर मिला उसने उसको शेडो किया तथा एक सिपाही को लगा दिया। सिपाही ने उससे दोस्ती बढ़ा ली तथा इस समय वह उसके साथ था। जुलूस नारे लगा रहा था प्रदर्शन का अध्यक्ष जब मुझे ज्ञापन दे रहा था तभी जुलूस में से सिपाहियों पर पत्थर फिकने लगे। भीड़ अनियंत्रित होकर कार्यालय पर झपटी। पुलिस ने आंसूगैस छोड़ी गुण्डों ने कार्यालय के एक कोने में आग लगाई, मेरे पास खड़े अन्य जिला अफसरों पर भी आक्रमण होने लगे।
मेरा पुलिस दल सतर्क था। विपरीत परिस्थितियों में भी हमारे अधिकारियों ने अपना संयम नहीं खोया। कुछ सिपाही भागे-भागे गये और कार्यालय में लगी आग पर काबू पा लिया। आग आगे नहीं बढ़ पाई और किसी किस्म का खास नुकसान भी नहीं हुआ। हां इस दौरान दो तीन सिपाही आग की लपटों में झुलस जरूर गये।
यहां कप्तान साहब ने ऐसी घेराबन्दी की कि भीड़ के उपद्रवी तत्वों को दबोच लिया गया। अपने गुर्गों को पुलिस के शिकंजे में आता देख उन्हें प्रोत्साहन देने वाले कुछ सफेद पोश बदमाश भागने लगे तो मेरे एलआईबी के इन्सपेक्टर ने उन्हें भी पकड़ लिया।
भीड़ छट गई गुस्से का एक बुलबुला था जो फूट गया।
अब चारों तरफ पत्थर और कांच के टुकड़े बिखरे थे। अपराधियों को गिरफ्तार कर पुलिस दल उचित कार्यवाही के लिये मजिस्ट्रेट के पास ले गया।
किन्तु मैं वहां एक क्षण को खड़ा होकर सोचता रहा कि कब तक आखिर कब तक इन स्वार्थियों भ्रष्टïाचारियों की चालों से सीधे-सादे लोग परेशान रहेंगे। वास्तव में आज वस्तुओं का अभाव है क्या? वास्तव में आज उत्पादन कम हो रहा है? नहीं बिल्कुल नहीं सारी की सारी स्थिति मानव निर्मित है। काले बाजार में हर चीज जब भरपूर मात्रा में उपलब्ध है, तो खुले बाजार में क्यों नहीं? कौन है इसका जिम्मेदार हम सब जानते हैं पर उसका विरोध क्यों नहीं कर पा रहे? क्या इस स्थिति का अंत नहीं होगा। यह विचार मुझे बार-बार सताता रहा है।