मनुष्य जीवन की एक अवस्था विशेष में ऐसा पड़ाव भी निर्धारित है जहां भौतिक और सांसारिक सुख शून्य हो चलते हैं । यही समय होता है जहां से प्रारंभ होती है आत्मिक शांति की वास्तविक खोज । इसके माध्यम बनते हैं तीर्थस्थल और वहां के देवालय । शताब्दियों से उज्जयिनी अपनी पौराणिक प्रतिष्ठा के साथ इस मानवीय अभिलाषा के पूर्ण होने का विशिष्ट केन्द्र रही है । अवसर सिंहस्थ के महापर्व का हो या यूं ही, सदैव यहां आत्मा की शांति और संतोष को प्राप्त करने लोगों का तांता लगा रहता है।
मनुष्य की अंजाने सुख के पीछे व्यर्थ की भागदौड़ उसे एक दिन सच की अनुभूति कराती ही है । इस सच में उसे मानने पर विवश होना पड़ता है कि भौतिकता के अंधानुकरण की दौड़ में उससे आगे लाखों लोग हैं और उसके लड़खड़ाते पैर अब और ज्यादा साथ न दे सकेंगे । इस सच्चाई से साक्षात्कार की कोई आयुसीमा निर्धारित नहीं है, लेकिन वे सौभाग्यशाली होते हैं जो जल्द ही इसे स्वीकार लें । फिर, यही समय होता है मन को स्थिर करने का और इस दृढ़ निश्चय का कि अब ई·ार के आश्रय में पहुंचा जाये।
ई·ार के आश्रय में पहुंचने की लालसा भारतवर्ष के अनेक सुप्रतिष्ठित और आध्यात्मिक महत्व के तीर्थस्थलों पर पूरी हो जाती है । यहां पहुंचने वालों में न सिर्फ भारतीय बल्कि विदेशी समुदाय के लोगों की भी बहुतायत है। तीर्थस्थलों की इस विस्तृत श्रृंखला में मध्यप्रदेश के उज्जैन का विभिन्न दृष्टियों से अपना अनूठा महत्व है । यहां महाकाल के रूप में आराध्य देव भगवान शंकर विराजे हैं, भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की यहीं पर शिक्षा हुई है और मोक्षदायिनी पवित्र क्षिप्रा यहां से प्रवाहित है । उज्जैन ऐसी सिद्धस्थली है जहां अनेक प्राचीनतम देव मंदिरों में ईश्वरीय शक्ति की जीवंत अनुभूतियां आज भी होती हैं।
सांस्कृतिक नगर उज्जैन में वर्षभर विभिन्न त्यौहारों को भारतीय पारंपरिक गरिमा के अनुरूप मनता देखना बहुत सुखद होता है । सम्पूर्ण मालवा क्षेत्र ही संस्कृति समृद्ध है जिसका केन्द्र पुरातनकाल से यह नगर रहा है । इस तपोभूमि पर ईश्वरीय शक्तियों का इतना प्रताप, प्रभाव और आशीष है कि न सिर्फ इस नगर के निवासी बल्कि यहां बाहर से पहुंचने वाले श्रृद्धालु स्वयं को इनसे कभी अछूता नहीं रख पाते। पग-पग पर छोटे-बड़े मंदिर यहां बने हैं जहां शीष स्वयं झुकता ही है । ई·ार के आश्रय में पहुंचने की अनुभूति हर पल मनुष्य को इस मंदिर बहुल नगर में सहजता से होती है । ईश्वरीय शक्ति विभिन्न रूपों में यहां व्याप्त है और इसी परिप्रेक्ष्य में यहां सभी धर्मों के पर्याप्त उपासना स्थल भी है।
मांगलिक अनुष्ठानों के लिये उज्जयिनी एक विशिष्ट केन्द्र है । यहां प्रतिष्ठापित “”चिंतामन गणेश”” के आशीर्वाद को किसी भी शुभ कार्य के लिये प्राचीन समय से अत्यंत मंगलकारी माना जाता रहा है । जानकार लोग आज भी दूर-दूर से अपने यहां होने वाले विवाह का पहला निमंत्रण पत्र “”चिंतामन गणेश”” को प्रेषित करते हैं । मंदिर के इर्दगिर्द मन्नतों के लिये डोरे बांधे जाते हैं । भारतवर्ष अपनी सांस्कृतिक परंपराओं के निर्वहन में अग्रणी राष्ट्र है । ये परंपराएं पुरातनकाल से जन-जन में रची-बसी दृढ़ मान्यताओं, कोमल मनोभावनाओं एवं गहरी संवेदनशीलता पर आधारित है और हमारे गौरवशाली अतीत का महत्वपूर्ण अंग है । क्षिप्रा तट के घाटों पर होने वाले विभिन्न संस्कार इन तथ्यों की जीवंत मिसाल हैं।
आत्मा के रहस्यों की छानबीन तांत्रिक सिद्धियों से ही संभव है । उज्जैन, देश के अन्य चुनिंदा तीर्थस्थलों के साथ ही इस दिशा में भी सक्रिय योगदान से जुड़ा रहा है। यहां तक कि सिंहस्थ में आने वाले साधु-संत पर्व के पूरे माह इधर-उधर साधना में लीन देखे जाते हैं । आत्मा जीवित शरीर में हो या दिवंगत, उज्जैन में प्राचीनकाल से ही विशिष्ट स्थलों पर इनकी शांति के उपाय किये जाते रहे हैं । पवित्र क्षिप्रा में अस्थियों का विसर्जन और इसके तटों पर कर्मकांड की रीतियों से दिवंगत आत्मा की शांति की क्रियाएं यहां होती हैं जिसके लिये इस नगर को पूरे वि·ा में जाना जाता है । इन क्रियाओं के यहां सम्पन्न होने से आत्मा को मोक्ष मिलता है यह सर्वविदित तथ्य है । सिद्धियों के बल पर नागबलि, नारायण बलि और कालसर्पयोग से शांति के कर्मकांड भी यहां आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व के सिद्धनाथ मंदिर के समीप क्षिप्रा तट पर सम्पन्न होते हैं । सर्प योनि धारण करने वाले पितृों की मुक्ति के लिये नागबलि, पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिये नारायण बलि और किसी व्यक्ति को प्रतिकूल गृह दशा के कारण काल सर्पयोग से मुक्ति के यहां विशिष्ट उपाय होते हैं।
आत्मिक शांति के लिये आत्मा का शुद्धिकरण जरुरी है और इसके प्रबल माध्यम हैं-अच्छाई के साथ जीना, पीड़ितों के दु:ख- दर्द बांटना और अपनी क्षमताओं के अनुरुप समाज और देश के उत्थान में सहभागी बनना। इन आधारों पर शांति की खोज सार्थक है जो कि पवित्र स्थलों पर सहज ही मिलती भी है। उज्जैन के ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में प्रात:कालीन भस्म आरती से शुरु होने वाले दिनभर तक के दर्शन और इस दौरान विभिन्न रुपों में उन्हें निहारने का सौभाग्य मानव मन की शांति का अत्यंत महत्वपूर्ण माध्यम है। शिव तो सरलता से उपलब्ध हैं, उन्हें तो बस अपने भीतर आत्मसात करने वाला चाहिये।
समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत की बूंदें उज्जयिनी में भी गिरी थीं, यही कारण है कि पुरातन काल से “”कुंभ”” महापर्व की परंपरा में यह नगर विशेष रुप से जुड़ा । इस अमृत से लाभान्वित तीन अन्य पवित्र स्थलों में प्रयाग, हरिद्वार और नासिक भी सम्मिलित हैं जहां कुंभ का महापर्व मनता है। देवताओं द्वारा ले जाये जा रहे अमृत कलश (कुंभ) से दानवों द्वारा इसे छीनने की कोशिश के चलते अमृत की कुछ बूंदें धरती पर इन चार स्थानों पर ही गिरी थीं। तदापि, उज्जैन में इस पर्व की महत्ता कहीं ज्यादा है क्योंकि यहां इस मौके पर सिंह राशि पर बृहस्पति स्थित होते हैं जिसके दृष्टिगत ही इसे “”सिंहस्थ”” का नाम भी दिया गया । उज्जैन में सिंहस्थ और कुंभ में दस विशिष्ट योग समाहित हैं। इनमें वैशाख मास, शुक्लपक्ष, पूर्णिमा, सूर्य का मेष राशि, बृहस्पति का सिंह राशि और चन्द्र का तुला राशि पर होना तथा स्वाति नक्षत्र, व्यतिपात योग, सोमवार और जगह का उज्जैन होना सम्मिलित हैं। इन तथ्यों के दृष्टिगत ही उज्जैन में सिंहस्थ पर स्नान को अत्यंत पुण्यदायी माना गया है।
आत्मा की शुद्धि के लिये पवित्र क्षिप्रा में स्नान पुरातन काल से एक अत्यंत उपयोगी माध्यम रहा है। पौराणिक उल्लेख के अनुसार हजारों वर्ष की निरंतर एवं कठोर तपस्या करने वाले अत्रि ऋषि के शरीर से प्रवाहित जल स्त्रोत ने क्षिप्रा नदी का रुप धारण किया था। इसलिए क्षिप्रा के स्नान से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त है। स्वाभाविक ही इससे यह तथ्य भी उभरता है कि आत्मा की शांति के लिये मनुष्य की कठिन साधना और मन की स्थिरता आवश्यक है। मनुष्य में विद्यमान आसुरी शक्तियां यद्यपि इस मार्ग में बाधा बनेंगी, लेकिन आंधी की रफ्तार से हो रही दिशाहीन दौड़ से स्वयं को अलग कर कोई भी शांति के लक्ष्य को छू लेगा, यह असंभव भी नहीं।
देवदर्शन से मन शांत होता है, दृष्टि सुधरती है और रचनात्मकता का मनुष्य में निर्माण होता है। उज्जयिनी में देवताओं के दर्शन की पर्याप्तता, सहज उपलब्धता सभी के लिये है । फिर, विचार करने की विवशता क्यों? ज्योतिर्लिंग महाकाले·ार, मंगलनाथ, काल भैरव, गढ़कालिका, सिद्धनाथ, गोपाल मंदिर आदि अन्य अनेक देवालय जहां ई·ारीय शक्तियां विद्यमान हैं कोई भी तो पहुँच सकता है इनकी शरण में । योगेश शर्मा
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