(चैथी किश्त)
तृतीय ः सरलता और बोझ रहित जीवन शैली को प्रोत्साहनः-
इस्लाम कानून साजी की महत्वपूर्ण भूमिका मनुष्य की कम से कम बन्दिशों में रखना है। कुरआन में यह स्पष्ट रूप से इसका उल्लेख मिलता है। ’’अल्लाह तुम्हारे साथ आसानी चाहता है कि तुम्हारा बोझ हलका कर दे और इंसान जन्म से ही कमजोर पैदा हुआ। ओर अल्लाह ने तुम पर दीन में तंगी नहीं बनाया है।‘‘ (कुरआन)
सही हदीस में है कि रसूल को जब किसी दो मामलों में इख्तियार दिया गया तो आप ने जो (मार्ग) सरल था उसी को अपनाया। आप ही का फरमान है कि मेरी उम्मत के ऊपर बोझ न होता तो मैं ही नमाज के समय मिस्वाक (दातून) अनिवार्य कर देता। किसी विशेष परिस्थिति में किसी आदेश का पालन करना कठिन है। इजाजत दी गयी चाहे करो या न करो कोई जुर्म नहीं है कितनी हराम (अवैध) चीजें जरूरत पडने पर हलाल है। फर्ज (अनिवार्य) तथा वाजिब छोडने की अनुमति है। जबकि उस के करने पर कोई हर्ज उत्पन्न हो। जब, मर्ज (रोग) यात्रा भूल चूक नादानी को क्षमा कर दिया गया है। यह सब सहूलियतें परिस्थितियों को मद्देनजर इंसान को छूट दिया गया है।
चतुर्थ ः शरई कानून साजी का मौलिक अधिकार ः-
लोक हित का ध्यान। इस का तर्क यह है कि अधिकतर एहकाम का कारण खुद शारे (शरीयत बनाने वाला अर्थात अल्लाह) ने लोकहित का व्याख्या किया है। उदाहरणतयः अहकाम का किसी कारण या हित पर आधार होना यह कि किसी आदेश का उस समय तक बाकी रहना जब तक लोक हित था जब उसकी जरूरत खत्म हो गयी तो वह आदेश भी उठा लिया गया। पहले मुसलमानों को बैतुल मुक्ददस की ओर नमाज पढने का आदेश हुआ। फिर यह रद्द करके उन के काबा की ओर नमाज पढने का आदेश दिया गया। इसी प्रकार जिस औरत का पति मर जाये तो उसको एक वर्ष इन्तेजार करना अनिवार्य था। इस कानून की जगह चार माह दस दिन कर दिया गया। अल्लाह के रसूल ने कुर्बानी के दिन मांस (गोश्त) जमा करने से मना कर दिया था। क्योंकि ईद के दिन बाहर से बहुत से लोग आ जाते थे। बाद में आप ने इजाजत दे दी। कब्रों पर जाने से रोक लगा दी थी। किन्तु बाद में इजाजत प्रदान कर दी। यह निरस्त और तब्दीली तथा उसके स्थान पर दूसरा कानून लागू करना कानून साजी के दौर में यह तर्क है इस बात का कि इस्लामी कानून साजी जन हित पर आधारित है इस प्रक्रिया से सारे को लोगों को चलाना है कि कानून साजी के समय लोगों के हित का ध्यान है। जब तक दीने इस्लाम के किसी मौलिक कानून पर चोट ने पहुंचे। विवाह में कुछ (पति पत्नी के बीच की हम आहंगी) (साम्यता) विरासत और विलादत में असबियत की रियायत। यह सब इसलिए है कि लोगों के मफाद उन की समाजी पहचान तथा उन की अपनी आदतें जिस के जरिये उन की पहचान है, दीन के मौलिक कानून से टकरायें न और न किसी प्रकार कोई हानि हो।
कानूनी कृत्य और आसार (पदचिन्ह)
सर्वप्रथम शरई कानून साजी का श्रोत वहई इलाही है जो कि अहकाम की आयतें कुरआन में नाफिज हैं दूसरा श्रोत वह इज्तिहादे रसूल है, अहकाम की हदीस आप से सादिर हुई। इन आयतों और हदीसों का संग्रह जो कि इस युग की उपलब्धि है शरई कानून साजी की जिस को आने वालों के लिये एक नमूना है यही मुसलमानों के लिये मौलिक कानून है। और यही शरई कानून साजी की आधारशिला हर मुज्तहिद के लिये वह चाहे किसी जमाने में हो उस के लिये अनिवार्य है कि वह इन्हीं दो को केन्द्र बिन्दु माने। यदि किसी भी समस्या में कोई आदेश इन दोनों (कुरआन व हदीस सही) में स्पष्ट रूप से मौजूद है तो वह अपनी राय नहीं सकता। हां यदि कोई प्रमाण उसको इन श्रोतों में नहीं पाता है तो वह अपनी राय का प्रयोग करेगा। किंतु एकदम पूर्ण रूपेण स्वतंत्र हो कर नहीं बल्कि इन्हीं कुरआन हदीस के आधार पर अपना फैसला सुनायेगा। वह बाध्य है इस पर कुरआन व हदीस की रूह और उस के समझाये गये ढंग कि विपरीत न हो तथा उस के बुनियादी कानून के भी भिन्न न हो।