इस्लामी कानून साजी का इतिहास

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(पांचवी किश्त)
नुसूस के संग्रह की संख्या
इन संग्रहों की सामग्रीयां बहुत अधिक नहीं है। अराधना (इबादत) उपासना की आयतें (अहकाम) और इस से संबन्धित जेहाद की संख्या 140 आयतें हैं। व्यवहार और व्यक्ति-सूची तथा जयराम न्याय व गवाही आदि पर सम्मलित अहकाम की आयतों की संख्या 200 है। हदीसों में नाना प्रकार के अहकाम की संख्या 4500 है। ’’इब्ने कययम‘‘ ने अपनी पुस्तक ’’एलामुल मुकिईन‘‘ में इस का उल्लेख किया है शेष कुरआन के एहकाम की व्याख्यान तथा जिस का जिक्र कुरआन में नहीं है वह कानून के रूप में इसमें है। कुरआन में अहकाम की आयतें पृथक-पृथक मुखतलिफ सूरतों में है। किसी कानून या धारा के लिये विशेष रूप से एक ही सूरः में नहीं है सजा की आयतें जो दस आयतें हैं यह सूरः बकर और माएदः तथा सूरः नूर में है शहरी आयतों का संग्रह सत्तर (70) आयतें हैं जो मुखतलिफ सूरतों में है। इसी प्रकार बाकी तमाम अहकाम की आयतें हैं। अहकाम की हदीसें जिससे हदीस के बयान करने वालों (रावी) ने फेकह के बाब (अध्याय) के रूप में संग्रह किया है व्यापार से संबंधित कोई कानूनी धारा का मालूम करना आसान है। मौलिक अहकाम की हदीसें तथा वाज ’’सहाबा‘‘ तथा ताबिईन (अल्लाह के रसूल के साथ के रहने वालों के बाद के लोगों जिन्होंने उनको देखा भी है) जिन्होंने इन नुसूस की व्याख्या मंे कोई तफसीर की है। यह संग्रह मौलिक अहकाम है जो कुरआन और हदीस मंे मौजूद है।
संग्रह की शैलियांंः- कोई जरूरी नहीं है कि अहकाम की आयतों और हदीस की शैली एक ही ढंग से हो, उन की शैली का ढंग अलग-अलग है। कहीं तो भूतकाल से कहीं भविष्य से कहीं वर्तमान काल से उद्गृत है। ऐसी आयतें तो हराम से मुतअल्लिक है वे नकारात्मक क्रिया से हराम है। और कभी स्पष्ट रूप से यह बताया गया है कि यह हलाल नहीं है या हराम शब्द इस्तेमाल किया गया है।

और नसूस (ऐसी आयतें जिस में बात इतनी स्पष्ट रूप से कही गयी है कि उसमें किसी प्रकार का कोई सन्देह नहीं) जो अनिवार्यता पर दलालत करती है। कभी उस में अम्र (हुक्म-आदेशात्मक क्रिया) के माध्यम से अनिवार्य किया जाता है, और कभी उसको छोडने पर दण्ड प्रकोप की धमकी होती। इस प्रकार उसको करना अनिवार्य बतलाता है और कभी शब्द ’’वाजिब‘‘ फर्ज और कर्तव्य से व्याख्या करता है। इन सबका तात्पर्य अनिवार्य होता है। इन भिन्न भिन्न शैली से व्याख्या इसलिए है कि एक बारगी तो उतरा नहीं प्रत्येक समय में परिस्थितियों को देखते हुए जैसे मौका था उसी ढंग से उस का महत्व दिया यह समझने का एक ढंग था ताकि सामने वाला इस को भली भांति कंठस्थ कर ले। दूसरा कारण यह भी है कि कुरआन केवल एक कानून की पुस्तक नहीं कि उस में केवल आस्था व नैतिकता और कानून साजी ही का महत्व हो। बल्कि यह उसके रसूल के रिसालत पर एक प्रकार की दलील भी है वह उस का ’’एजाज‘‘ अर्थात सारी दुनिया के लिये चैलेन्ज भी था कि बडे से बडे साहित्यकार इस तरह से बयान करने में असमर्थ हैं। इसी कारण भिन्न-भिन्न शैली पाई जाती है। जिस प्रकार ’’नुसूस‘‘ अपने सेंगों (धातू रूप) और एक बार तो (वाक्यों) में तरह-तरह की शैली में है। उसी प्रकार एक दूसरा भी है वह कुछ नुसूस किसी आदेश पहलू के व्याख्यान के पीछे होता है उसकी इल्लत (कारण) बयान करना और उसकी कानून साजी की हिकमत बयाना करना होता है। शारेः शरीअत बनाने वाले का मकसद इससे यह जताना है कि लोग केवल यह न जानें कि अल्लाह ने यह विधि केवल आदेश नहीं बल्कि इस में तुम्हारी ही भलाई के लिये यह लागू किया गया है। भले तुम्हारी बुद्धि में न आये। इस में इज्तिहाद का मार्ग खुलता है। कानून साजी में मस्लेहत साबित होती है और बुराई रूकती है।
अहकाम के प्रकार जिन पर ’’नुसूस‘‘ (स्पष्ट खुली हुयी आयतें) सम्मिलित हैंः-
व्यापक रूप से अहकाम के प्रकार तीन हैंः-
प्रथम ः- अहकाम एतिकादी (यानी जिस का संबंध दिल से है आस्था, विश्वास अर्थात केवल दृढ विश्वास की जरूरत होती है) यह संबंधित है अल्लाह के ईमान और उसके फरिश्तों उस की ग्रंथों, उस के रसूलों और कयामत से।
द्वितीय ः- ऐसे अहकाम जिन का संबंध नैतिकता, सदाचरण से हो जिन के द्वारा मनुष्य अपने आप को अच्छी बातों को मान कर (आचरण) निखारता है तथा बुरे काम से बचाता है।
तृतीय ः- ऐसे अहकाम जिन का संबंध उन कार्यों से है जिन का उनको पाबंद किया है। इबादत, मुआमलात, जिनयात (जरायम), खुसूमात (लडाई झगडा), उकूद (मुआहदे), बेच खोज और तसर्रूफात (अधिग्रहण) प्रथम भाग दीन की बुनियाद (स्तम्भ) है दूसरा प्रकार इस बुनियाद का ेपूरा करने वाला है। कुरआन तथा हदीस दोनों ने एक को व्याख्या और दोनों के तर्क स्थापित करने में अधिक जोर दिया है। इस्लाम का आरम्भ इन्हीं दोनों मुद्दों से हुआ।
मक्का में मुसलमानों को (अस्थाय) अकाएद तथा अखलाक से सम्बोधित किया गया क्योंकि अकीदा तथा नैतिकता दोनों ही ऐसी मौलिक आधार हैं जिन पर हर कानून साजी की बुनियाद है। तीसरा प्रकार अमली अहकाम है। इसी को फेकह भी कहते हैं। इससे तात्पर्य केवल अहकाम है जिस ने कुरआन तथा सुन्नत में खोज लगाया उस ने पाया प्रत्येक विधियों की धारा का मूल भूत कुरआन है जो उस को खास (विशिष्ट) तथा उस के अहकाम का विश्लेषण करता हैै। इबादत (उपासना) के प्रकार में 140 आयतें हैं। व्यक्ति सूची में, विवाह, तलाक, विरासत, वसीयत, गोद लेना आदि 70 आयतें हैं। शहरी जीवन बचे खोच, किराया, मजदूरी, रेहन, भागीदारी कर्ज आदि में 60 आयतें हैं। जरायत तथा सजा संबंधी 30 आयतें हैं, फैसले जात और गवाही से संबंधित 20 आयतें हैं।
इन अध्यायों में बहुत सारी हदीसें हैं। बाज-बाज की व्याख्या करती हैं कि जिसको कुरआन ने संक्षेप में या इशारा किया है। बाज हदीसें उन आदेशों की विश्लेषण करती हैं जिस के बारे में वह मौन है। इन्हीं से संबंधित अहकाम पूरे होते हैं। यह चन्द विधियां हैं। इसी के आधार पर रसूल के अहद (समय) में शरई कानून साजी पूर्ण रूपेण से मुकम्मल होकर मुसलमानों की तमाम जरूरतों को पूरा करती हैं। (समाप्त) 0 डाॅ. खालिद शिफाउल्लाह रहमानी