उर्दू शायरों ने भी रोशन किया छत्तीसगढ़ का नाम

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छत्तीसगढ़ की माटी में भी ऐसे-ऐसे उर्दू के शायर हुए हैं जिन्होंने पूरे देश में छत्तीसगढ़ का नाम अपनी शायरी के माध्यम से रौशन किया है। हालांकि वर्तमान में प्रदेश में उर्दू और उर्दू शायरी की हालत अच्छी नहीं है। फिर भी उर्दू के यह पैरोकार अपनी जद्दोजहद से छत्तीसगढ़ में उर्दू को जि़न्दा रखने की कोशिशें कर रहे हैं। सरकार भी इस ओर कुछ ध्यान दे रही है। लेकिन उर्दू के विकास एवं शायरों की हौसला अफ$जाई के लिये सरकार को और अधिक प्रयास करना होंगे।
छत्तीसगढ़ में उर्दू शायरी में रायपुर शहर के जिन शायरों ने उर्दू साहित्य के विकास में अच्छा खासा योगदान दिया है, उनमें मिर्जा इस्माईल बेग, मुंशी महमूद अली महमूद मौलाना अब्दुल रुऊफ ‘महवीÓ अख्तर रायपुरी, मुजफ्फर हुसैन ‘शमीम, शेख अहमद साहब ‘हैरतÓ, मास्टर अब्दुल हमीद ‘ज़ेबाÓ, अब्दुल सलीम खां ‘कैफÓ, नईमुद्दीन ‘सरशारÓ, अब्दुल गफ्फार ‘जोशÓ, अब्दुल सत्तार ‘खाकीÓ, सरफरा$ज खां ‘फै$जÓ, जहीर अहमद ‘वहशीÓ, अजीज हामिद मदनी, न्याजुद्दीन जुल्फी, अकबर अली ‘निशातÓ, गुलाम मुहम्मद ‘नश्तरÓ, सुलतान अहमद झापड़, अनवर अशरफी, फहीमा बेगम ‘हिनाÓ और शफक रज आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
रायपुर और उसके बाहर के हिंदी के कुछ प्रतिष्ठिïत कवि भी उर्दू कलाम लिखने की ओर आकर्षित हुए हैं। ये $ग$जलें लिखने के साथ-साथ उर्दू सीखने के प्रति भी रूचि रखते हैं। इनमें रामेश्वर वैष्णव, मुकुंद कौशल, मिथलेश शर्मा ‘निसारÓ, गिरीश पंकज, महेंद्र ठाकुर और आलोक सातपुते का नाम विशेष रूप से लिया जा सकता है।
बिलासपुर में रेलवे में इंजीनियर के पद पर रहे बद्रुल हसन ‘बद्रÓ जै़दी की सक्रियता से वहां उर्दू का अच्छा खासा माहौल रहा। वर्तमान में मकसूद अहमद ‘मक्कीÓ की कोशिशों से न सिर्फ बिलासपुर बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी उर्दू शिक्षा का प्रसार हो रहा है। उर्दू साहित्य के क्षेत्र में वहीद बिलासपुरी, नवेद बिलासपुरी और शमीम बिलासपुरी का नाम उल्लेखनीय है।
दुर्ग जिले के प्रतिनिधि शायर के रूप में अरशी दुर्गवी, पं. गया प्रसाद खुदी, सलीम अहमद $जख्मीं बालोदवी, रहीम रासिखी और खुर्शीद नज़्मीं भी $िजंदगी भर उर्दू अदब की खिदमत करते रहे। वर्तमान में जो लोग इस क्षेत्र में सक्रिय हैं, उनमें बहुल कुरैशी, ऐन-मीम हैरत, शेख दुर्गवी, सनम कानपुरी, नदीम कानपुरी, शाहिद रजा साजिद, इस्राईल ‘शादÓ और मुमताज भाई के नाम उल्लेखनीय हैं।
राजनांदगांव में खुशी मोहम्मद खां ‘दौरÓ जब तक $िजंदा थे तो वहां अदबी सरगर्मियां होती रहती थीं। उनके इंतेकाल के बाद तो यहां का माहौल एकदम सर्द पड़ गया। वर्तमान में यहां कोई उस्ताद और बुज़ुर्ग शायर अगर कोई है तो वह हैं अब्दुल वहाब ‘ताजÓ, जो अब गोशानशीनी इख्तेयार कर चुके हैं। इस वक्त शहर में एकमात्र शायर अब्दुस्सलाम ‘कौसरÓ हैं। रऊफ परवे$ज, मेहरून्निसां (जगदलपुर), मीर हिफा$जत अली ‘मीरÓ (कांकेर), सलाम अंतागढ़ी (अंतागढ़), हयात रि$जवी (कोंडागांव), कफील फतेहपुरी, सईद राहत और शफीक रामपुरी (जगदलपुर) के नाम खास तौर से उल्लेखनीय है।
़ रायगढ़ में महाराजा चक्रधर सिंह संगीतज्ञ होने के साथ-साथ एक अच्छे शायर भी थे। हजार लखनवी लंबे अरसे तक उनके दरबार से जुड़े रहे। मालिक लखनवी भी कुछ अरसे तक महाराजा चक्रधर सिंह के दरबार में रहे। बंदे अली फातमी, कामरेड हबीब और मुस्तफा हुसैन मुश्फिक के दिवंगत होने के बाद रायगढ़ में उर्दू शायर नहीं रहे।
जिस तेज़ी के साथ छत्तीसगढ़ का विकास हुआ है उस रफ्तार से उर्दू शिक्षा और उर्दू अदब का विकास नहीं हो पाया। बल्कि उर्दू इस दौड़ में और पिछड़ गई है। आज जरूरत इस बाती की है कि उर्दू के चाहने वाले आगे आयें और अपनी कोशिशों और सरकार की मदद से छत्तीसगढ़ में उर्दू को पुन प्रतिष्ठित करें।
उर्दू के साहिबे दीवान शायर
छत्तीसगढ़ में पहले से ही उर्दू प्रेस का अभाव रहा है, जिसके कारण कई उस्ताद शायर अपना दीवान प्रकाशित नहीं करवा पाए। जो शयर अपना दीवान प्रकाशित करवाने में कामयाब हो गए, उनमें नवेद बिलासपुरी (सदफ), डॉ. यावर हुसैन यावर (कैफे मोतकर), नीलू मेघ, अनवर आलम (ऊंचाईयों की ओर) और शौक जालंधरी (सोच का समंदर) शामिल है। इनमें से अनवार आलम ने तो धमतरी में रहते हुए खुद अपने हाथों से स्क्रीन प्रिंटिंग के $जरिए अपनी किताब ‘ऊंचाईयों की ओरÓ छापी थी।
रौनक जमाल छत्तीसगढ़ में उर्दू के एकमात्र कहानीकार
छत्तीसगढ़ जब सीपी एंड बरार में शामिल था। उसके बाद मध्यप्रदेश का हिस्सा बना तो इस इलाके में उर्दू शायरों की भरमार थी। दो-चार कहानी या आलेख लिखने वाले भी हुआ करते थे। जैसे मास्टर खुर्शीद अहमद कहानी और ड्रामा लिखा करते थे। मास्टर शमशुद्दीन बच्चों का साहित्य रचा करते थे लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पूरे प्रदेश में एक मात्र कहानीकार जो रह गए हैं, वो हैं रौनक जमाल। रौनक जमाल उर्दू में मिनी अफसाना लिखने के लिए पूरे प्रदेश में जाने जाते हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। इनकी कई किताबें भी छप चुकी हैं।
छत्तीसगढ़ी में लिखने वाले मुस्लिम शायर
छत्तीसगढ़ की संस्कृति और भाषा का प्रभाव उर्दू हिन्दी में लिखने वाले शायरों में साफ न$जर आता है। हाजी सादिक अली ‘कमरÓ ऐसे शायर थे, जिन्होंने ठेठ छत्तीसगढ़ी भाषा में भी रचनाएं लिखी हैं। मरहूम शायरों में कमर साहब के अलावा र$जा हैदरी ने छत्तीसगढ़ी में अनेक रचनाएं लिखीं हैं, जो आज भी मटका पार्टियों द्वारा गाई जाती हैं। उस्मान बख्श, जो ‘नानाÓ के नाम से प्रसिद्घ थे, उन्होंने भी अनेक छत्तीसगढ़ी रचनाएं लिखीं हैं। वर्तमान में सलाम ईरानी, साबिर अली जैसे कई ऐसे नाम हैं, जो छत्तीसगढ़ी फिल्मों और एलबमों के लिए गाने लिख रहे हैं।