आजकल मार्केट मंे चारों ओर एक के साथ दूसरा मुफ्त योजनाओं की मारामारी है। दो साबुन खरीदो एक मुफ्त, तेल की शीशी खरीदो कंघी फ्री, चाय की पत्ती खरीदो ग्लास मुफ्त, कुत्ता खरीदो पिल्ला मुफ्त, गाय खरीदो बछड़ा बक्शीश मंे अर्थात हर प्रयोज्य वस्तु को बेचने के लिये राष्ट्रीय तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने योजनाओं के भंडार खोल दिये हैं।
उपहार योजनाओं से प्रेरित होकर एक अंतिम संस्कार सामग्री विक्रेता ने अपनी दुकान पर यह बोर्ड लगा दिया, दो व्यक्तियों की अंतिम संस्कार सामग्री के साथ एक बच्चे की सामग्री मुफ्त’। बोर्ड पर लिखी छूट योजना पढ़कर कुछ योजना विरोद्दी तत्व ऐसे उत्तेजित हुए जैसे कभी अजित सिंह की भाजपा से साठगांठ पर रशीद मसूद हुआ करते थे। इन तत्वों ने दुकानदार की जमकर ठुकाई कर दी। कड़े परन्तु कथित उदारवादी बजट से विक्षिप्त जनता की भांति पिटा दुकानदार कहने लगा- बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां थप्पड़ मार के, कत्तर फाड़के और छप्पर फाड़ के लाक कर चुके हैं। एक-एक सवाल पर करोड़ों रुपया लुटाया जा चुका किसी पर ताला लगा या मोहर चिपकी पूरा देश शांत था। करोड़ों के ब्रेक लिये गये। इसकी टोपी उसके सिर उसकी टोपी इसके सिर का अबाद्द सिलसिला जारी है। अखबार वाले हों या टीवी चैनल वाले पूरे देश को करोड़पति बनाने मंें जुटे हैं, मैं पूूछता हूँ भय्या सभी करोड़पति हो जायेंगे तो गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों को मिलने वाला अनाज गोदामों मंे सड़ जायेगा, मतदान का प्रतिशत घट जायेगा, नेताओं के भाव गिर जायेंगे।
योजनाओं का बढ़ता भ्रम जाल अब सामान्य जीवन को भी प्रभावित करने लगा है। लोग वास्तविक बच्चों पर भी उंगली उठाकर पूछने लगे, ‘किस योजना में मिले?’ अब आप क्या बतायें कि यह आपकी चालीस वर्षीय राष्ट्रीय योजना का प्रतिफल है या बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का वरदान।
काफी लम्बे समय से निपट कुंवारा (ब्रह्मचर्य नहीं) जीवन व्यतीत करने वाले एक परिचित से हमने पूछा-
‘क्यों मियां क्या शादी का इरादा नहीं है?’
वे गंभीर होकर बोले, ‘हम किसी विवाह योजना की प्रतीक्षा में हैं?’
हमने उन्हें एड़ी से चोटी निहारते हुए पुनः सवाल दागा क्या तुम सामूहिक विवाह मण्डप पर बैठकर बिना दहेज विवाह करके किसी दहेज पीड़ित पिता का कल्याण करने के मूड में हों।’
उन्होंने ममता बनर्जी की भांति गुर्राते हुए कहा, ‘या तो तुम्हारी दृष्टि दूषित हो गयी है या फिर मति कट रही है’
‘क्यों?’ हम पूरे प्रश्नवाचक चिन्ह बन गये।
‘देखो मियां। साफ सी बात है- राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कम्पनियां पचास पैसे की टाफी खरीदने पर एक टाफी मुफ्त दे रही हैं और एक तुम हो पांच फुट दस इंच के भारी भरकम युवक को मुफ्त मंे लुटाने की बात करते हों, हमें जैसे 440 वोल्ट का तार छू गया हो। वह पुनः विजयी मुस्कान बिखेरते हुए बोले, ‘जिस दिन वैवाहिक विज्ञापनों में सुन्दर पत्नी के साथ एक साली मुफ्त मिलने की घोषणा होगी अपन बिना अग्रिम सोच विचार के विवाह मण्डप की ओर प्रस्थान कर जायेंगे।’
हम उनका फलसफा सुनकर भौचक्के रह गये। हमने इन अक्ल के अंद्दे को समझाने का प्रयास किया है। ‘वित्त मंत्री जसवन्त सिंह के उदारवादी पद चिन्हों पर चलने वाले महान व्यक्ति क्या तुम हमारी एक अदद पत्नी की उपस्थिति तथा उससे जन्मी आधा दर्जन जन्मी जीवित आर्थिक, सामाजिक एवं मानसिक समस्याओं से परिचित नहीं हो जो एक साथ दो-दो गंभीर समस्याओं को आमंत्रित कर रहे हों, इससे देश की आर्थिक स्थिति पर कुप्रभाव पड़ने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
वे लाल-पीले होने के बजाये हरे-नीले होकर उपदेशात्मक शैली में व्याख्यान करने लगे, ‘देखो जी! योजनाओं में मिलने वाली कोई चीज टिकाऊ नहीं होती सो पत्नी और साली दोनों को झेला जा सकता है, जैसे गैस कनेक्शन के डी.बी.सी. की उपयोगिता आज भी बरकरार है। हम लाजवाब हो गये परन्तु संतुष्ट नहीं हुए जैसे चन्द्रबाबू नायडू का असंतोष एक दिन भी समाप्त नहीं हुआ।
वे बोले मियां, ‘दो पत्नियों वालों को तो भगवान के यहां भी स्वर्ग मिलेगा।’ हमारा द्दैर्य जवाब देने लगा पूछा। ‘किस प्रकार?’
बोले एक पत्नी वाला द्दरती पर स्वर्ग भोग कर जायेगा तो उसे नरक मिलना स्वाभाविक है जबकि दो पत्नियों के बीच धरती पर कोई व्यक्ति नारकीय जीवन ही बिता सकता है अतः भगवान के यहां उसका स्वर्ग में रिजर्व सीट की तरह उसका स्थान पक्का समझो।
इस उत्तर ने हमें चारों खाने चित कर दिया। विभिन्न योजनाओं के चलते हमने एक गुटका पान मसाले का भी विज्ञापन पढ़ा जिसमें अत्यन्त बारीक लिखाई में इसके हानिकारक होने का उल्लेख दर्ज था, जबकि एक की खरीद पर दूसरा मुफ्त दिया जा रहा था। गुटका प्रेमियों की बढ़ती जनसंख्या तथा सार्वजनिक स्थलांे, राष्ट्रीय स्मारकों के आस-पास उनके थूक की छीेंटे देशवासियों को उपहार स्वरूप मिल रही हैं। गहरे शोध के बाद हमें गुटका प्रेमियों के सम्बन्ध मंे एक अद्भुत जानकारी भी मिली, जिसे जानकर हमें आश्चर्य भी हुआ और चिंता भी। हमें एक व्यक्ति ने बताया कि गुटका खाने वालों पर कभी बुढ़ापा नहीं आता- वे सदैव युवा रहते हैं। हमने चिरयौवन बने रहने के इस तथ्य की खोज करने का निर्णय लिया और में पछतावा करने लगे कि जिसके खाने से बुढ़ापा नहीं आता तो हम इस संजीवनी से अब तक अनभिज्ञ क्यों हैं?
विगत दस वर्षों से गुटके को भोजन के रूप में सेवन करने वाले एक गुटका प्रेमी से हमने अंततः गोपनीयता से पूछ ही लिया, ‘गुटके में ऐसे कौन से शक्तिशाली तत्वों का मिश्रण है जो गुटका प्रेमियों को बूढ़ा नहीं होने देता।’
गुटका प्रेमी हमारे प्रश्न की गंभीरता एवं संवेदना से प्रभावित हुए बिना रह नहीं सके और हमारी मूर्खता पर अट्टहास करते हुए कहने लगे, ‘गुटका प्रेमी पर बुढ़ापा इसलिए नहीं आता कि उसका विकेट जवानी मंे ही निकल जाता है।
यदि मार्केट मंे अपना-अपना सामान बेचने के सही लटके-झटकों की छटा बनी रहे तो कुछ दिन में इस प्रकार के विज्ञापनों को भी देखा जा सकेगा। माचिस खरीदो कार फ्री, झाडू़ खरीदो फ्लैट की चाबी मुफ्त, हाथी के साथ भैंस, थाने के साथ पुलिस चैकी संत्री के साथ मंत्री, पेप्सी के साथ फ्रिज, कम्प्यूटर के साथ आपरेटर, जल के साथ मदिरा, चप्पल के साथ प्रेमिका, कार के साथ बस, तबले के साथ तबला वादक तथा ट्रक खरीदने पर ट्रेन का डिब्बा मुफ्त मिलेगा।
– डा0 महताब अमरोहवी