कह दो मीर-ो – गालिब से हम भी शेर कहते हैं

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भोपाल की सरजमीं पर अनेकों ऐसे शायर पैदा हुये हैं जिन्होंने भोपाल का नाम रोशन किया है और उर्दू अदब की दुनिया में उनको सम्मानजनक स्थान प्राप्त है। इसी सिलसिले को आगे बढा रहे हैं युवा एवं खूबसूरत आवाज के धनी, विश्व में भोपाल का नाम रोशन कर रहे मंजर भोपाली। जिनकी मोहक शैली और मधुर आवा$ज के पंसद करने वाले पूरी दुनिया में मौजूद हैं। प्रस्तुत है मंजर भोपाली से रईसा मलिक की बातचीत के अंश-
प्र. शायरी का शौक आपको कब से है?
उ. मैं समझता हूँ कि पैदाइशी मुझमें ये सलाहीयतें कहीं न कहीं छुपी हुई थीं। जब मैं कक्षा नवीं में था तब से मैंने शेर कहना शुरू कर दिया था। मरहूम मुकीत भाई ने बहुत हौसला अफजाई की। रजा रामपुरी उस जमाने में मेरे उस्ताद थे। उस$जमाने के दूसरे शायरों कैफ साहब, शेरी साहब, जफर सहबाई, सुल्तान कलीम, ताज भोपाली को देखकर पास बैठकर मैंने बहुत कुछ सीखा।
प्र. मुशायरों में आपने कब से पढऩा शुरू किया?
उ. 1975-76 में छोटी-छोटी नशिस्तों में आना शुरू हो गया था। बाक़ाया तौर पर मैंने सन्ï 1980 से मुशायरों में शिरकत करना शुरू कर दी थी। मैं1987 में पहली बार में पाकिस्तान में हुये इन्टरनेशल मुशायरे में शामिल होने गया और वहीं से मेरा सिलसिला शुरू हुआ जो अब भी जारी है। अब तक 500 से ज्य़ादा मुशायरे मैंने विदेशों में पढ़े हैं।
प्र. विदेशों में आपने कहां-कहां मुशायरों में शिरकत की?
उ. अमरीका में 16-17 बार, आस्टे्रलिया तीन-चार बार, लंदन दो बार, केनेडा तीन-चार बार, नार्वे, मलेशिया इसके अलावा सऊदी अरब, पाकिस्तान, बंगलादेश, खाड़ी के तमाम देशों- दुबई, शारजाह, अबुधाबी, रायसुलखैमा, कतर, दोहा, बहरीन, मस्$कत, आदि में मैं जा चुका हूँ।
प्र. भारत में आपने कहां-कहां मुशायरे पढ़े हैं?
उ. हिन्दुस्तान में जहां-जहां उर्दू बोली और समझी जाती है, तकरीबन उन तमाम जगहों पर मैंने मुशायरे पढ़े हैं। अब मैं ये कह सकता हूँ कि पूरी दुनिया में जहां भी उर्दू पढ़ी और बोली जाती है कम से कम मेरी शायरी उन कानों तक और आंखों तक पहुंच चुकी है।
प्र. विदेशों और भारत के सुनने वालों में आप क्या फर्क महसूस करते हैं?
उ. उर्दू जो जानता है, उर्दू जो पढ़ता है चाहे वो हिन्दुस्तान का हो या पाकिस्तान का या अमरीका का हो, अगर शेर समझने की सलाहीयत उसमें है तो कहीं कोई फर्क महसूस नहीं होता। जो शेर हिन्दुस्तान में पढ़े जाते हैं वही शेर हम अमरीका में भी पढ़ते हैं वही पाकिस्तान में जाकर पढ़ते हैं और सब जगह हमको एक जैसा रिस्पांस मिलता है।
प्र. क्या अलावा आपके परिवार में कोई और भी शायरी करता है?
उ. मेरे बड़े भाई साजिद रिजवी भी शायरी करते हैं, इसके अलावा हमारे यहां और कोई शायर नहीं था लेकिन हमारे परिवार वाले शायर नवाज थे। हमारे दादा ने बड़ी-बड़ी महफिलें कीं और शायरों को बहुत नवाजा, और हमारे वालिद साहब भी शायरों के साथ रहे और उनकी बहुत खिदमत की। मेरे वालिद को हजारों शेर ज़बानी याद थे वो अक्सर अपनी बातचीत में अशआर का हवाला देते थे।
प्र. क्या आप चाहते हैं कि आपके बच्चे भी शेर शायरी करें?
उ. ये चीज चाहने से नहीं आती ये तो खुदादाद होती है अर्थात्ï खुदा की देन है यह हमारे चाहने से तो किसी में नहीं पहुंचेगा अलबत्ता अगर उनमें सलाहीयत होगी तो अल्लाह खुद उन्हें शेर कहने की तौफीक देगा। मेरी कोशिश ये जरूर है कि उर्दू जबान पढऩा और लिखना बहुत अच्छी तरह से सीख लें। क्योंकि जब तक उर्दू सलीक़े से नहीं आयेगी तो वो न तो शायरी समझ पायेंगे और न ही मुकम्मल तौर पर एक अच्छे इन्सान ही बन सकते हैं। उर्दू एक ऐसी जबान है जिसके बगैर आदमी अधूरा रहता है, चाहे वो कितना ही पढ़ा लिखा क्यों न हो।
प्र. आज जो उर्दू के हालात हैं उसके बारे में आपकी क्या राय है?
उ. हालात तो बना दिये गये हैं और इसकी जो जिम्मेदारी है वो हम ही उर्दू वालों की है क्योंकि उर्दू के लिये वो संजीदा हुये नहीं। कोई यह कहता रहा यकजहती की जबान है, कोई कहता रहा की मुसलमानों की जबान है। हमने इसी में 60 साल गुजार दिये इससे उर्दू को बड़ा नुकसान पहुंचा। मगर अभी कुछ बिगड़ा नहीं है अगर सारे लोग तय कर लें कि उर्दू हमारी अपनी जबान है तो इससे खूबसूरत $जबान दुनिया में अभी मानी ही नहीं गई। हुकूमते वक्त भी पिछले 60 सालों में उर्दू के बारे में संजीदा नहीं रही। कम से कम यही ऐलान हो जाये कि जो उर्दू में एम.ए. करेगा उसके रोजगार की गारंटी ली जायेगी तो हमें यक़ीन है कि उर्दू जबान की तरक्की होगी। उर्दू ज़बान न तो कभी मर सकती है न ही उसे कोई नुकसान पहुंचा सकता है। लेकिन जब भी नुकसान होगा उर्दू वालों के ज़रिये ही होगा।
प्र. आपके पसंदीदा शायर कौन-कौन हैं?
उ. पुराने शोअरा में मीर तकी मीर, मीर अनीस, मिज ग़ालिब हैं और आज के शोअरा में अहमद फराज, पीरजादा कासिम साहब हैं और इसके अलावा भी हिन्दुस्तान में कई शोअरा हैं जिन्हें मैं पसन्द करता हूँ।
प्र. किस शायर के कलाम से आप ज्यादा प्रभावित हुए?
उ. मीर तक़ी मीर की शायरी बहुत मुतास्सिर करती है। उसको संजीदगी से पढऩे पर हम अपने आप को जिन्दगी के बहुत करीब पाते हैं।
प्र. पुराने और आज के शायरों की शायरी में आप क्या फर्क महसूस करते हैं?
उ. शायरी से हटकर अगर जि़न्दगी की तुलना आज और आज से बीस साल पहले से की जाए तो देखने में आता है कि दुनिया हर दस साल में अपने आप को तब्दील करती है। हर नई नस्ल अपने हिसाब से अपने नये रस्ते बनाती है और उस रास्ते पर चलती है। कभी-कभी लोग उस नयेपन को भोंडापन कहते हैं लेकिन बाद में फिर उसी रास्ते पर चलने लगते हैं।
शुरू में जब टेलीविजन आया था और उस पर जिस तरह के प्रोग्राम दिखाये जाते थे उन्हें देखकर पुराने लोग उसे पसंद नहीं करते थे, लेकिन धीरे-धीरे से वह भी अच्छा लगने लगा है। इसी तरह से पुरानी और आज शायरी में थोड़ा सा फर्क हो गया है। पुराने दौर के शायरों ने जो काम किया वो आज हम नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि हम अपने हिसाब से fजन्दगी गुजार रहे हैं, अपनी नस्लों को देखकर शायरी कर रहे हैं। माहौल को देखकर शायरी कर रहे हैं, समाज में जो बुराईयां हैं उसे देखकर शायरी कर रहे हैं। उस जमाने में गजल का मुकम्मल दौर था। नवाबीन, रजवाड़े शायरों की सरपरस्ती किया करते थे, लेकिन आज वो बात नहीं है आज हमें अपनी खुद की पहचान बनाना पड़ती है वो भी खुद के तरीके से।
उस ज़माने में उनके पास इतनी सहूलियतें नहीं थीं मगर फिर भी आज चार सौ साल बाद भी उनकी शायरी fजन्दा है। हमारे पास तमाम चीजें मौजूद हैं, रेडियो, टेलीविजन, मोबाइल, इंटरनेट, वेबसाइट, आदि इसके बावजूद भी हमें य$कीन नहीं है कि बहुत दिनों तक हमारी शायरी fजन्दा रहेगी। एक दो लोग ही हमेशा की तरह याद रहेंगे।
प्र. आपकी गजलों की विषयवस्तु क्या रहती है?
उ. मैं कोशिश ये करता हूँ कि शायरी के जरिये एक पैगाम जाये। अल्लाह ने जब आपको जरिया बनाया है और यह मौका दिया है कि आप कुछ करें। इस मुकाम पर आकर अगर मैं गुलो-बुलबल की या सिर्फ मोहब्बत की बात करूं तो मैं समझता हूँ ये मुनासिब नहीं है। मैं अपनी शायरी के जरिये आने वाले कल, गुजरे हुऐ कल और आज की बुराईयों को सामने ला सकूँ। मैं आने वाली नई नस्ल के सामने ऐसा पैगाम रखता हूँ कि मेरी शायरी दूर-दूर तक लोगों में पहुंचे। मैं ऐसा कोई काम नहीं करता जो बग़ैर किसी मकसद के हो। मेरे हर काम में कोई न कोई मकसद और पैगाम होता है।
प्र. आपकी ग़जलों के कौन-कौन से संग्रह प्रकाशित हुए हैं?
उ. मेरी गजलों के अभी तक कई संकलन छप चुके हैं जो कि भारत और पाकिस्तान दोनों जगह ही छपे हैं इनके नाम हैं- fजन्दगी, लहू रंग मौसम, लावा, उदास क्यूँ हो, हासिल, यह सदी हमारी है, मंजर एक बुलंदी पर, ज़माने के लिए ।
प्र. आपको अभी तक कौन-कौन से एवार्ड और सम्मान दिये गये हैं?ï
उ. मुझे केनेडा में बज़्में अदब, वाशिंग्टन डीसी में भी मुझे एवार्ड मिला, सिडनी में, नर्वे में, मलेशिया में, पाकिस्तान में सिन्ध के गर्वनर ने एवार्ड दिया, मध्यप्रदेश उर्दू एकेडमी ने भी एवार्ड दिया है शादा इन्दौरी सुबाई एवार्ड, लखनऊ से हिन्दी उर्दू एकता कमेटी ने एवार्ड दिया, इस तरह कई एवार्ड मुझे मिल चुके हैं। इसके अलावा मेरी किताबों की रस्म इजरा अमेरिका, कनाडा, आस्टे्रलिया, पाकिस्तान, मस्कत, भोपाल, हैदराबाद आदि में हुई है।
प्र. क्या आपकी गजलों को गज़ल गायकों ने भी गाया है?
उ. हाँ बहुत से लोगों ने मेरी गजलों को गाया है। इसके अलावा पूरी दुनिया में मेरे द्वारा पढ़ी गई गजलों के कैसेट्स, सीडियां, वीसीडी आदि बिकी भी हैं और लोगों ने रिकार्ड कर सहेज कर रखी भी हैं। इसके अलावा मेरी एक वेबसाइट भी है मंजर भोपाली.कॉम।
प्र. आने वाले नये शायरों को आप कोई संदेश देना चाहेंगे?
उ. अगर आपको किसी भी क्षेत्र में तरक्की करना है तो बड़़ी ईमानदारी से काम करना पड़ेगा और अगर fजन्दगी में उतार चढ़ाव आते हैं तो उससे न घबरायें। जिस काम को आप कर रहे हैं उसे करते रहिये एक न एक दिन उसमें कामयाबी हासिल होगी।
किसी भी फन में अगर शायर हैं, मुसव्विर हैं, फनकार हैं मेहनत बहुत जरूरी है। रियाज़त और मेहनत करते रहना पड़ेगा और अपने फन के लिये वक्त देना पड़ेगा। इसके लिये कुछ कुर्बानियां देनी पड़ती हैं।
प्र. आप अक्सर मुशायरों के सिलसिले में बाहर रहते हैं इससे आपके परिवार वालों को कोई परेशानी तो नहीं होती?
उ. कभी-कभी हमको अपने बच्चों से बहुत दिन तक दूर रहना पड़ता है। और कभी तो हम शहर में रहते हुए भी बच्चों से नहीं मिल पाते। फन का तकाजा होता है कि आप उसे ज्यादा वक्त दें मेरी पहली कोशिश यही होती है कि शायरी पर ज्य़ादा तवज्जो दूँ। इसके बाद अपने परिवार पर। बचपन से मेरे कानों में एक लफ्ज़्ा आया था मेहनत और ईमानदारी इसी के कारण मैंनें अपना घर छोड़ दिया, बचपन छोड़ दिया। उसके बाद ही आज में इस मुकाम में पहुंचा हूँ।
प्र. पिछले दिनों कुछ शायरों के बीच विवाद हुऐ थे उसे आप कहां तक सही मानते हैं?
उ. कोई भी मेहमान हो जब हमने किसी मेहमान को बुलाया हो तो किसी भी शहर के लोग इस बात को बर्दाश्त नहीं करेंगे कि मेहमान के साथ कोई बदतमीजी हो। जिस तरह से बशीर बद्र साहब ने कमेंट्ïस किया था वो उन्हें नहीं करना चाहिये था। वो बड़े शायर हैं और बड़े शायरों को हमेशा अपने छोटो की हौसला अफजाई करना चाहिए थी। इस बात को अलग से भी कहा जा सकता था कि ये शेर अच्छा नहीं है, तो कोई बड़ी बात नहीं थी। लेकिन उन्होंने शायर को $जलील करने की कोशिश की, जिसका जवाब जनता ने उन्हें दे दिया। पूरे हिन्दुस्तान में उनका बायकाट हुआ।
प्र. आपके अपने पसंदीदा अशआर कौन से हैं?
उ. मेरे पसंदीदा अशआर तो बहुत से हैं उनमें से कुछ सुना देता हूं-
कोई बचने का नहीं सबका पता जानती है।
किस तरफ आग लगाना है हवा जानती है॥
कह दो मीर गालिब से हम भी शेर कहते हैं।
वो सदी तुम्हारी थी ये सदी हमारी है॥
खुद अपने आप सुधर जाईये तो बेहतर है।
यह मत समझिये कि दुनिया सुधरने वाली है॥
वो बादशाह बने बैठे हैं मुकद्दर से।
मगर मिजाज है अब तक वही भिखारी का॥
एक जान है तो वो भी अमानत उसी की है।
कुछ भी नहीं हमारा तुम्हारा जमीन पर॥
सफर के बीच ये कैसा बदल गया मौसम।
फिर किसी ने किसी की तरफ नहीं देखा॥
एक नया मोड़ देते हुए फिर फसाना बदल दीजिये।
या खुद ही बदल जाईये या जमाना बदल दीजिये॥
ताकतें तुम्हारी हैं और खुदा हमारा है।
अक्स पर न इतराओं आईना हमारा है॥