ह दिलचस्प किस्सा मशहूर है कि वह अपनी फिल्मों के डायलॉग बाथरूम में ही याद किया करते थे। किसी सीन का रिहर्सल भी उनका बाथरूम में ही होता था। अपने रोल के बारे में कोई बढिय़ा आइडिया उनको बाथरूम में ही सूझा करता था। बी.आर. चोपड़ा की फिल्म ‘कानूनÓ के एक सीन के बारे में भी अशोक कुमार को बाथरूम का सहारा लेना पड़ा था..
बाथरूम किस मकसद के लिए होता है, यह बताना जरूरी नहीं, अलबत्ता यह दिलचस्प सच है कि कुछ लोग बाथरूम का सोच-विचार या ‘प्लानिंगÓ करने में बड़ा बढिय़ा उपयोग किया करते हैं। अशोक कुमार के बारे में भी यह दिलचस्प किस्सा मशहूर है कि वह अपनी फिल्मों के डायलॉग बाथरूम में ही याद किया करते थे।
किसी सीन का रिहर्सल भी उनका बाथरूम में ही होता था। अपने रोल के बारे में कोई बढिय़ा आइडिया उनको बाथरूम में ही सूझा करता था। बी.आर. चोपड़ा की फिल्म ‘कानूनÓ के एक सीन के बारे में भी अशोक कुमार को बाथरूम का सहारा लेना पड़ा था। इस सीन की नजाकत चोपड़ा साहब को किसी करवट बैठने नहीं दे रही थी।
फिल्म में अशोक कुमार जज बने थे, लेकिन बाद में परिस्थितियों ने कुछ ऐसा मोड़ लिया कि उनको वकील का चोंगा पहनकर अदालती बहसबाजी में कूदना पड़ा था। शूटिंग के दौरान बी आर चोपड़ा चाहकर भी अशोक कुमार के काम से संतुष्टï नहीं हो पा रहे थे। उन्होंने शॉट लेने के बाद अशोक से कहा- ‘कुछ जम नहीं रहा है।Ó
इस पर अशोक थोड़ी देर के लिए खामोश होकर सिगरेट सुलगाने लगे। फिर लंबे-लंबे कश छोड़ते हुए बोले- ‘यह नहीं बताया कि जम क्यों नहीं रहा है। तुम्हारे माइंड में भी कोई आइडिया तो होगा?Ó दरअसल, अशोक उर्फ दादामुनि उस वक्त अपने को शांत व संयत दिखाने की कोशिश तो कर रहे थे, लेकिन उनके चेहरे में उठते हुए भाव इस बात के स्पष्टï संकेत दे रहे थे कि वह चोपड़ा साहब के ‘कुछ जम नहीं रहा हैÓ की बात से थोड़ा आहत हुए हैं।
बहरहाल, चोपड़ा साहब ने उनकी बेचैनी को भांपते हुए अपना पक्ष रखकर कहा- ‘ओरिजनली, आप इस फिल्म में जज हैं और यही जज जब वकील के रूप में आएगा तो उसकी भाषा और लहजा आम वकीलों से अलग होगा।Ó असल में पेंच यह था कि फिल्म में मुख्य वकील तो राजेन्द्र कुमार थे, मगर जब अशोक कुमार वकील का चोंगा पहनकर खड़े हुए तो वह राजेन्द्र कुमार की स्टाइल में अपने डायलॉग बोलते हुए दिखाई दिए।
यही बात चोपड़ा साहब के गले से नहीं उतर रही थी। वह इस स्टाइल में परिवर्तन चाह रहे थे और कह यह रहे थे कि कुछ मजा नहीं आ रहा है। उधर अशोक कुमार को लग रहा था कि चोपड़ा साहब महज अपने अहं के कारण मजा न आने की रट लगाए हुए हैं। हकीकत में सीन काफी अच्छा बन पड़ा है।
अशोक कुमार जैसी हस्ती से असहमत होने का साहस भी चोपड़ा साहब ढंग से नहीं बटोर पाए थे। इसलिए उनको दादामुनि के आइडिये के सामने सिर झुकाना पड़ा, क्योंकि दादामुनि उस वक्त भी चोपड़ा से कहीं सीनियर थे। लेकिन एक निर्देशक के अंदर की कसक उनको बेचैन कर रही थी।
वह मन ही मन में दुखी भी थे, क्योंकि उनको साफ लग रहा था कि इसी सीन में कहानी अपने असली मोड़ पर पहुंचती है और यह सीन यहीं पर मात खा रहा है। उन्होंने अपने भाई यश चोपड़ा से अपनी बेचैनी प्रकट करते हुए कहा- ‘लगता है यह सीन हमें मात दे रहा है। इससे फिल्म की जान ही निकल जाने का खतरा पैदा हो सकता है।Ó
यश जी उन दिनों बी आर चोपड़ा के सहायक हुआ करते थे। इसलिए भाई की चिंता ने उनको भी कशमकश में डाल दिया। आखिर में दोनों चोपड़ा बंधु इस फैसले पर पहुंचे कि दादामुनि को किसी तरह समझा-बुझाकर इस सीन में सुबह परिवर्तन किया जाएगा। यह तय होने के बाद चोपड़ा साहब सोने के लिए चले गए।
आम तौर पर वह 12 बजे सोया करते थे, लेकिन उस दिन कुछ इतना अपसेट थे कि उन्होंने जल्दी ही सोने की तैयारी कर ली, लेकिन करीब साढ़े बारह बजे ही यश चोपड़ा ने यह कहते हुए उन्हें जगा दिया कि अशोक कुमार बहुत अर्जेंट उनसे बात करना चाहते हैं। सुनकर बी आर साहब को हैरानी हुई कि इतनी रात में दादामुनि को कौन सा काम पड़ गया कि उन्होंने फोन खडख़ड़ाना जरूरी समझा।
खैर, चोपड़ा साहब ने रिसीवर कान से लगाया तो दूसरी तरफ से दादामुनि बड़ी हड़बड़ाहट के साथ यह बोलते सुनाई पड़े- ‘यार चोपड़ा, सेट से लेकर घर पहुंचने तक मेरे मन में यही उथल-पुथल होती रही कि आखिर तुमको मेरा किया हुआ सीन पसंद क्यों नहीं आया?
मैंने अपने दिमाग पर बहुत जोर डाला और आखिर में इस नतीजे पर पहुंचा कि तुम्हारी यह ‘कानूनÓ प्रॉब्लम अब बाथरूम में ही सुलझ सकती है, क्योंकि बाथरूम में मुझे नए-नए आइडिया आते हैं। इसलिए बहुत सोचने-विचारने के बाद मैंने बाथरूम में बैठकर एक बार तो यह सीन तुम्हारे आइडिया से रिकार्ड किया और दूसरी बार उस तरह, जैसा कि मैं चाहता था। मेरे घर में कुछ मेहमान आए हुए थे। मैंने उनके सामने दोनों ही रिकार्ड किए हुए सीन रख दिए।
मेरा उनसे एक ही सवाल था- ‘आपको मेरा आइडिया पसंद है या चोपड़ा का?Ó और जानते हो मिस्टर चोपड़ा, उन्होंने क्या जवाब दिया?Ó दादामुनि ने फोन पर ठहाका लगाते हुए जवाब भी दे दिया- ‘यार, उन लोगों को तुम्हारा ही आइडिया पसंद आया और मैंने उसी वक्त बाथरूम में ही तुम्हारा ‘कानूनÓ का यह सीन फाइनल कर दिया। अब कल की तैयारी कर लो। कल स्टूडियो में यह सीन तुम्हारे ही आइडिया से टेक करवाने के लिए मैं आ रहा हूं।Ó
– अरशद असलम