कैसे मिलेगी भ्रष्टïचार से मुक्ति?

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यदि यह सवाल पूछा जाए कि वह कौन सी समस्या है जिसके विरुद्ध सबसे अधिक बयान दिए जाते हैïं और साथ ही जो सबसे अधिक तेजी से बढ़ती जाती है तो वह निश्चय ही भ्रष्टïाचार की समस्या है। तमाम वायदे किए जाते हैïं भ्रष्टïाचार के विरुद्ध सख्त कदम उठाने के,फिर भी भ्रष्टïाचार के निरंतर बड़े से बड़े मामले सामने आते ही जा रहे हैïं। सरकार मेंï उच्च स्तर पर कार्य कर रहे किसी भी ईमानदार अधिकारी से पूछकर देख लीजिए, वह भ्रष्टïाचार के तेज प्रसार से दु:खी ही नजर आएगा। इतने व्यापक स्तर के भ्रष्टïाचार का पर्दाफाश होने के बाद आखिर ऐसे कितने नेता और अधिकारी हंैï जिन्हेंï भ्रष्टïाचार मेïं लिप्त पाए जाने के कारण कड़ी सजा मिली हो या जिनसे भ्रष्टïाचार का पैसा वसूला गया हो? बेहद विलासिता और शानो-शौकत की जिंदगी जी रहे आखिर ऐसे कितने व्यक्ति हैïं जिनकी जीवन शैली का खर्च उनके आय स्रोतोंï से अधिक होने के आधार पर उनकी जाँच की गई हो?
अब तो स्थिति यहाँ तक पहुँच गई है कि कैमरे पर रिश्वत लेते हुए कोई नेता पकड़ा जाए तो उसके विरुद्ध भी कोई असरदार कार्रवाई नहींï होती है और आमतौर पर उनका यह कहकर बचाव किया जाता है कि यह तो राजनीतिक कार्य के लिए चंदा लिया जा रहा था।
एक बहुत चिंताजनक स्थिति बनती जा रही है। भ्रष्टïाचार नया शिष्टïाचार बनता जा रहा है और अब तो भ्रष्टïाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वालोïं को ही कठघरे मेंï खड़े करने की कोशिश की जाती है। सरकारी विभागोïं में आप यह जांच करेïं कि भ्रष्टï अधिकारियोïं और ईमानदार अधिकारियोïं की क्या स्थिति है तो यह संभावना अधिक है कि भ्रष्टï अधिकारी सफल अधिकारी के रूप मेंï महत्वपूर्ण पद पर नजर आए और ईमानदार अधिकारी रास्ते से दूर रखने के लिए किसी कम महत्व की जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहा हो।
ऊपरी तौर पर लोगोंï को भ्रष्टïाचार के विरुद्ध आवाज उठाने को प्रोत्साहित किया जाता है, किंतु हकीकत मेïं प्राय: ऐसे लोगोïं को उत्पीडि़त किया जाता है। भ्रष्टïाचार का अर्थ केवल यह नहींï लगाना चाहिए कि इस कारण सरकारी खज़ाने से कुछ रुपया गायब हो जाता है। यदि कोई अधिकारी या नेता दो लाख रुपये की रिश्वत लेता है तो वह इससे अधिक बड़ी लूट करने की इजाजत देता है और इसके फलस्वरूप विकास कार्यों मेï बाधाएंï उत्पन्न होती हैïं। भ्रष्टïाचार जब किसी भी समाज या देश मेंï हावी हो जाता है तो वहाँ अच्छे और बुरे, नैतिक और अनैतिक, ईमानदारी और बेईमानी के बीच भी विभाजन रेखा धूमिल होने लगती है और सभी नैतिक मूल्य संकट मेंï पड़ जाते हैï। इस तरह के समाज को किसी भी महान सार्थक उद्देश्य के लिए उत्साहित और आंदोलित करना कठिन हो जाता है।
आजादी की लड़ाई के समय भारतीय समाज बहुत महान नैतिक ऊंचाईयोïं तक पहुँच सका था और इस आधार पर ही वह विश्व की सबसे शक्तिशाली साम्राज्यवादी शक्ति से टक्कर ले सका था। उस महानता से आज के नैतिक पतन तक पहुँचाने मेंï भ्रष्टïाचार की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। अब समय आ गया है कि भ्रष्टïाचार के विरुद्ध एक बहुपक्षीय रणनीति तैयार की जाए और उसे आम नागरिकोïं की व्यापक भागेदारी से कार्यान्वित किया जाए। इसमेïं गाँव पंचायत से लेकर राज्य और केंद्र सरकारोïं मेंï व्याप्त सभी तरह के भ्रष्टïाचार के विरुद्ध कार्यवाही सम्मिलित होनी चाहिए।
इस बहुपक्षीय अभियान का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह होना चाहिए कि भ्रष्टïाचार नियंत्रित करने के लिए जो कानून बहुत समय से लंबित पड़े हैïं या ठीक से कार्यान्वित नहीïं हुए हैंï उन्हेïं शीघ्र ही असरदार ढंग से लागू किया जाए। लोकपाल विधेयक बहुत समय से लटका हुआ है। सूचना की स्वतंत्रता का विधेयक संसद द्वारा डेढ़ वर्ष पहले पास हो गया था, पर अभी तक लागू नहींï हुआ है। इसे मजबूत रूप देकर शीघ्र ही लागू करना चाहिए। भ्रष्टïाचार की सूचना देने वाले अधिकारी या व्यक्ति की सुरक्षा के लिए अलग कानून तो कभी नहींï बना, पर प्रशासनिक निर्देश जारी हो गए हैï। यह अपने मेंï पर्याप्त नहींï हैï। इस तरह की सुरक्षा के लिए मजबूत कानून बनना चाहिए। अन्य भ्रष्टïाचार विरोधी कानूनोंï एवं नियमोंï की कमियोïं को दूर कर उन्हेïं सशक्त बनाना चाहिए। इसके साथ ही भ्रष्टïाचार की जाँच करने वाली और भ्रष्टïाचारियोïं को पकडऩे वाली सभी सरकारी एजेïसियोïं की क्षमता बढ़ाने के लिए असरदार कदम उठाने चाहिए। एक बहुत महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि भ्रष्टïाचार का पता लगाने वाली एजेïसियां पहले तो स्वयं भ्रष्टïाचार से मुक्त होï। यदि भ्रष्टïाचार पकडऩे वाले स्वयं भ्रष्टïाचार मेंï लिप्त होïं तो भ्रष्टïाचार विरोधी अभियान एक मजाक बनकर रह जाता है। राजनीतिक दलोïं के हिसाब किताब का लेखा-परीक्षण अनिवार्य बनना चाहिए तथा हर तरह के चंदे के लिए रसीद जारी करना आवश्यक होना चाहिए।
इसी तरह उनके सभी खर्च का लिखित हिसाब होना चाहिए। रसीद जारी किए बिना कोई भी चंदा लेना अवैध होना चाहिए। कोई राजनीतिक दल वर्ष मेंï कितना चंदा प्राप्त कर सकता है या कितना धन खर्च कर सकता है, इसकी एक उच्चतम सीमा भी होनी चाहिए। इन कदमोïं को सफल बनाने के लिए एक अधिक व्यापक अभियान की भी जरूरत है और वह है समाज मेïं ईमानदारी और सादगी के जीवन मूल्योïं को प्रतिष्ठिïत करने का अभियान। हमारे समाज मेï परंपरागत तौर पर ‘सादा जीवन और उच्च विचारÓ जैसे जीवन मूल्योïं को बहुत मान्यता मिलती रही है। जो व्यक्ति अपनी जरूरतोïं को सीमित रख कर, सादगी का जीवन गुजार कर समाज की व्यापक समस्याओïं के लिए अपने को समर्पित करते थे उन्हेïं समाज से सदैव आदर मिलता था, किंतु पिछले कुछ वर्षों मेïं इन जीवन मूल्यों मेïं बदलाव आ गया है। अब गलत-सही किसी भी तरीके से कम समय मेंï अधिक धन कमा लेने को अधिक प्रतिष्ठïा मिलने लगी है। उपभोक्तावाद की एक ऐसी आँधी आई है कि भोग-विलासिता की जीवन-शैली और तरह-तरह की आधुनिक सुख-सुविधाओïं का संचय ही सामाजिक प्रतिष्ठïा का मुख्य आधार बनता जा रहा है। बदलते जीवन मूल्योïं मेïं उच्च राजनीतिक और प्रशासनिक पदोंï को कम समय मेïं अधिक धन अर्जन से जोड़ कर देखना सामान्य होता जा रहा है। इन पदोïं की प्राप्ति के लिए काफी धन खर्च भी किया जाता है और इन्हेंï प्राप्त करने के बाद शीघ्र ही उससे कुछ गुणा अधिक धन अर्जित करने का प्रयास किया जाता है।
एक ऐसी व्यवस्था बन रही है जिसमेï भ्रष्टïाचार मेंï विभिन्न स्तरोंï पर हिस्सेदारी को सामान्य माना जाता है और जो हिस्सेदार नहीïं भी बनता है वह इसे चुपचाप सहन करने मेंï अपनी भलाई समझता है। इस स्थिति को समाज मेंï व्यापक अभियान चला कर ही बदला जा सकता है। ईमानदार लोगोïं के लिए स्थिति बेहतर बनाने के लिए अर्थव्यवस्था और प्रशासन मेïं कुछ सुधार करने चाहिए। शिक्षा और स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएं, सरकारी स्कूलोïं और अस्पतालोïं मेंï उपलब्ध होनी चाहिए। विभिन्न तरह के टैक्स एकत्र करने वाले विभागोïं को यह कड़ी हिदायत होनी चाहिए कि नियम-कानूनोïं का पालन करने वाले नागरिकोïं को नाहक परेशान न किया जाए, ताकि ईमानदारी को बढ़ावा मिल सके। – सैफ मलिक