कैसे हो सूरमा भोपाली

0
236

लेखक श्री दुलारे जख्मी द्वारा लिखित लेख सूरमा भोपाली की दूसरी किश्त।
सरदार दोस्त मोहम्मद खां
बताते हैं दोस्त मो. खां काफी व्यवहारकुशल, शांतिप्रिय तथा इंसाफ पसंद इंसान थे। उनकी इन्हीं खूबियों से प्रेरित होकर रानी कमलावती ने उन्हें अपना धर्म भाई बना लिया था। गौंडों द्वारा रानी को सताया जाना दोस्त मो. खां को गले नहीं उतर रहा था। फिर रानी ने भी उनसे सहायता की अपील की तो दोस्त मो. खां ने बाड़ी में गौंड़ों के किले पर हमला कर दिया (यह $िकला रायसेन जिले के कसबां बाड़ी में बारना डेम के किनारे पर अभी भी मौजूद है) बाड़ी के राजा को हरा देने से रानी खुश हो गईं और उन्होंने दोस्त मो. को अपने राज्य का मुख्तार बना दिया। इसके बाद दोस्त मो. खां, सरदार दोस्त मो. खां कहलाने लगें। काफी समय वह सरदार के रूप में कार्य करते रहे और फिर रानी कमलापति के निधन के बाद दोस्त मो. खां ने शासन की बाग-डोर सम्हाल ली।
अब हुई नवाबी दौर की शुरूआत
फौजी और सरदार दोस्त मो. खां अब नवाब दोस्त मो. खां हो गये थे। उजड़े हुए भोपाल को ताकतवर भोपाल बनाने के लिये उन्होंने एक फौलादी किले का निर्माण किया और इस ढंग से भोपाल की स्थापना करके दोस्त, मो. खां भोपाल के संस्थापक बन गये। उन्होंने सबसे पहले इस्लाम, नगर के किले से हुकूमत का संचालन किया और फिर अपनी बीवी फतेह बीबी के नाम पर एक फौलादी किला बनवाकर अहले भोपाल को सुरक्षित किया। यह किला भोपाल का ऐतिहासिक किला साबित हुआ। इस किले का नाम फतेहगढ़ का किला राखा गया।
गांधी चिकित्सा महाविद्यालय हमीदिया अस्पताल के पास फतेहगढ़ के किले की दीवारें और बुर्जों को तोड़कर बनाया गया है। इस किले के बुर्जे और दीवारें हमीदिया अस्पताल से दिखना शुरू हो जाती है। रॉयल मार्केट के पास एक बड़ा बुर्जा आज भी सलामत है। इसी तरह सईद नगर से होते हुए वी.आई.पी. रोड से जब ऊपर की तरफ देखते हैं तो इसकी दीवारें और बुर्जे सिर उठाए खड़े हुए हैं। वीबाईपी रोड से तालाब की तरफ देखने पर पानी में इस किले के बुर्जे अवशेष दिखाई देते हैं।
ऐसी थी शहर पनाह
इतिहास और हमारे बुजुर्ग बताते हैं कि इस $िकले की एक सफील रॉयल मार्केट के बुर्जे से पीरगेट तक बनी हुई थीं। (सफील यानि सुरक्षा दीवार) पीरगेट पर आज यहां कफ्र्यू वाली माता का मंदिर है इस क्षेत्र में बहुत बड़ा दरवाजा बना हुआ था जिसे पीरगेट के नाम से जाना जाता है। इस दरवाजे से एक सफील पुराना कबाडख़ाना होती हुई जुमेराती गेट से जुड़ी हुई थी। जुमेराती गेट से आजाद मार्केट होते हुए एक सफील मंगलवारा गेट से मिलती थी। यहां पर भी एक गेट हुआ करता था। मंगलवारा से एक सफील इतवारा तक जाती थी बुजुर्ग बताते हैं यहां भी एक विशाल गेट था। और इस गेट से सफील जाकर बुधवारा गेट से जुड़ गई थी। और फिर हाथीखाने से होती हुई गिन्नौरी की तरफ से यह सफील मोती मस्जिद के पास और गौहर महल के पास जुड़ जाती थी। वर्तमान में मोती मस्जिद के सामने के विशाल दरवा$जे तोड़कर वहां इ$कबाल मैदान बना दिया गया। (पहले इस मैदान को खिन्नी वाला मैदान कहते थे) सारा भोपाल शहर इस शहर पनाह के अन्दर बसा हुआ था। इन सभी दरवा$जों को बन्द कर देने से भोपाल शहर सुरक्षित हो जाया करता था। फतेहगढ़ का यह $िकला बहुत म$जबूत था। इसी किले में भोपाल की पहली मस्जिद नवाब दोस्त मो. खां ने कायम की थी। जो आज भी हमें देखने को मिलती है। इसे ढाई सीढ़ी की पहली मस्जिद कहते हैं।
यह मस्जिद दुनिया की सबसे छोटी मस्जिद है और अपने मूल रूप में सुरक्षित है। नवाब दोस्त मो. खां ने बहुत तेजी से भोपाल का विकास किया था। और समय के ऐतबार से यहां की जनता को एक सुरक्षित राज्य दिया था। नवाब दोस्त मो. खां के जमाने में फतेहगढ़ में फतेह के बिगुल बजा करते थे। सियासी चालें चली जाती थीं और भोपाल सुनहरी यादें छोड़ता हुआ आगे बढऩे लगा था।
65 वर्ष की आयु में नवाब दोस्त मो. खां का निधन हो गया। आज हमीदिया अस्पताल में जहां शवों का पोस्टमार्टम किया जाता है उसके गेट के ठीक सामने एक मस्जिद है जिसका नाम मस्जिद सरदार दोस्त मो. खां है। इसी मस्जिद के प्रांगण में नवाब दोस्त मो. खां की मजार आज भी मौजूद है। आपकी कब्र के बराबर ही आपकी पत्नी फतेह बीवी की कब्र है।