जाफरी जी का पूरा नाम जु़बेर अहमद जाफरी था। कै़सर-उल-जाफरी आपका तखल्लुस था। आपके पिता स्व. काजी सगीर अहमद थे। आपका जन्म 14 सितम्बर सन्ï 1926 ई्ï में नजरगंज, इलाहाबाद (उ.प्र.) में हुआ था। आपने इन्टरमीडिएट, मजीदिया इस्लामिया इंटर कॉलेज, इलाहाबाद (उ.प्र.) में प्राप्त की थी। आपने वेस्टर्न रेलवे में सन्ï 1951 से 1987 तक नौकरी की। आपकी मृत्यु 5 अक्टूबर 2005 को हुई थी
आपकी रचनाएं:– रंगे- हिना, नबूअत के चिराग, संगे-आश्रा, दश्त-बे-तमन्ना, पत्थर हवा में फेंके, चराग़े-हिरा, मूलसरी के फूल, दिवारों से मिलकर रोना, बस्ती कितनी दूर बसा ली, आवारा हवा का झोंका, अगर दरिया मिला होता, एतमाद आदि।
आपको निम्र पुरस्कारों से पुरस्कृत किया गया- आंध्रा प्रदेश ट्राफी, पं. बंगाल ट्राफी, महाराष्टï्र उर्दू अकादमी इनाम, एमयू अकादमी इनाम, सुर सिंगार संसद इनाम, फिराक गोरखपुरी अवार्ड, प्रिंस अली नक्वी साकिब ट्राफी, हैदराबाद, ज़ाकिर हुसैन अवार्ड, दिल्ली, उत्तरप्रदेश उर्दू अकादमी अवार्ड, शेरी अकादमी अवार्ड से दि. 19 अगस्त 2005 को नवाजा गया था।
आपकी फिल्में:- नूरे-इलाही, रहम दिल जल्लाद, बदनसीब, इज्ज़त आबरू, डाकू हसीना, डाकू बिजली रानी, गीता की सौगंध, शुभचिंतक, मेरा नसीब, वफा (पाकिस्तान), हिन्दुस्तान, दरिंदे, आग और अंधकार, साजन है उस पार, अदालत के बाहर, पाज़ेब, कलिंकिनी, मिट्टी, दयारे-हबीब,
टी.वी. सीरियल्स :- हमारी ज़ीनत, जोहरा-महल, अपनी तलाश में, सफर, सुखनवर आदि हैं।
ऑडियो-वीडियो कैसेट्ïस :– हिन्दी पाक के मश्हूर कलाकारों के नाम जिन्होंने उनकी गजलों और गीतों को गाया है और जिनके रिकॉर्ड या ऑडियो-वीडियो कैसेट्ïस बने हैं।
नूरजहां (पाक), मेंहदी हसन (पाक), गुलाम अली (पाक), अनूप जलोटा, हरिहरन, प्रदुमन शर्मा, रूप कुमार राठौड़, सोनाली राठौड़, सुधा जोशी, विजय चौधरी, रीनू सन्तोष, ज्योत्सना, विनोद सहगल, सुमित्रा लहरी, शीला महेंन्दु, वि_ïल दास, मो. अज़ीज़, शीला घोष, प्रेम भंडारी, राजकुमार रिज़वी, अजय खामोश, अल्ताफ राजा, राजा जानी, मुन्नी बेगम (पाक), पंकज उधास, मकबूल साबरी ब्रदर्स (पाक), अशोक खोसला, दिलीप कपूर, उषा मंगेशकर, हरेंद्र खुराना, निशि बाली, मो. खालिद, पामेला सिंह, अभिजीत, सुधा मल्होत्रा, अब्बू मलिक, फय्याज बेगम, विनोद शर्मा, आसिफ अली, मजीद शोला, अख़्तर आज़ाद, आरजू बेगम, खुश्बू ख़ानम, अनुराधा पोडवाल, उदित नारायण, कविता कृष्णमूर्ति, उषा, मिलन सिंह, आशा भोंसले आदि।
आपकी विश्व प्रसिद्घ गजलें निम्र हैं – दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है। (पंकज उधास), हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह। (गुलाम अली), जब शबनम से हाथ जला लूँ। (हरिहरन), आवारा हवा का झोंका हूँ। (अल्ताफ राजा), अभी तक एक करोड़ से ज्यादा कैसेट्ïस बिक कर वल्र्ड बुक ऑफ गिनीज में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं।
कै़सर-उल-जाफरी की रचनाएं
दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है,
हम भी पागल हो जाएंगे ऐसा लगता है।
दुनियां भर की यादें हमसे मिलने आती हैं,
शाम ढले इस सूने घर में मेला लगता है।
कितने दिनों के प्यासे होंगे यारों सोचो तो,
शबनम का $कतरा भी जिनको दरिया लगता है।
आंखों को भी ले डूबा ये दिल का पागलपन,
आते-जाते जो भी दिखता तुम सा लगता है।
किसको पत्थर मारूँ ‘कैसरÓ कौन पराया है,
शीश महल में हर इक चेहरा अपना लगता है।
० ० ०
बस्ती में है वो सन्नाटा जंगल मात लगे
शाम ढले भी घर पहुंचूं तो आधी रात लगे
मु_ïी बन्द किए बैठा हूँ कोई देख न ले
चांद पकडऩे घर से निकला जुग्नू हाथ लगे
तुमने इतने तीर चलाए सब खामोश रहे
हम तड़पे तो दुनियां भर के इल्जमात लगे
ख़त में दिल की बातें लिखना अच्छी बात नहीं
घर में इतने लोग हैं जाने किसके हाथ लगे
सावन एक महीना ‘कैसरÓ आंसू जीवन भर
इन आंखों के आगे बादल बे-औकात लगे
० ० ०
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे
तुम्हारे बस में अगर हो तो भूल जाओ मुझे
तुम्हें भुलाने में शायद मुझे ज़माना लगे
हमारे प्यार से जलने लगी है यह दुनिया
दुआ करो किसी दुश्मन की बद-दुआ न लगे
जो डूबना है तो इतने सुकून से डूबो
कि आस-पास की लहरों को भी पता न लगे
तुम आंख मूंद के पी जाओ जि़न्दगी ‘कैसरÓ
कि एक घूंट में शायद ये बदम$जा न लगे