मध्यप्रदेश में रेत का अवैध कारोबार रोकने में सरकार भले ही कामयाब नहीं रही हो, पर कोराना ने अवश्य इस पर काफी हद तक काबू पा लिया है। अब बहुत कम अवैध रेत कारोबार हो रहाहै, जिसकी ओर न सरकार ध्यान दे रही है और न ही मीडिया मामले उजागर कर रहा है। कोरोना के कारण पाबंदियों के चलते निर्माण कार्य भी प्राय: ठप्प हैं, जिससे रेत की मांग नहीं हो रही है।
दरअसल अवैध रेत कारोबार काफी लम्बे समय से चल रहा है, लेकिन मीडिया और अखबारों की सुर्खियंा इसी में शताब्दी बना। रेत के अवैध कारोबार से जब नर्मदा, चम्बल, सिंध, बेतवा, केन, सोन सहित तमाम नदियों की छाती छलनी होने लगी और पहाडिय़ों को जमींदोज करने का सिलसिला बढऩे लगा तो माफिया की गतिविधियों के खिलापु पर्यावरण प्रेमियों तथा जागरुक नागरिकों ने आवाज बुलंद की। परिणामस्वरूप सरकार ने भी इसे रोकने के लिए कुछ अधिक कारगर कदम उठाये। राष्ट्रीय हरति न्यायाधिकरण ने भी दिशा-निर्देश दिये, लेकिन ये सभी जमीनी स्तर पर कारगर नहीं हो सके, क्योंकि राजनेताओं और नौकरशाहों की मिलीभगत से माफिया के हौसले बुलंद रहे। वे रेत का अवैध उत्खनन और परिवहन खुलेआम करते रहे और जो भी उसके आड़े आया उसे दबाने और खत्म करने में उन्होंने कोई गुरेज (परहेज) नहीं किया। चम्बल-ग्वालियर क्षेत्र में युवा प्रशिक्षु आईपीएस नरेन्द्र कुमार, पत्रकार संदीप शर्मा, पिपलिया मंडी में कमलेश जैन और होशंगाबाद में श्याम शर्मा आकद की हत्या और वन कर्मियों तथा पुलिस सुरक्षा कर्मियों को ट्रेक्टर-ट्राली से कुचलने धमकी देने के कई मामले सामने आये। भितरवार के तहसीलदार कुलदीप दुबे और नायब तहसीलदार कमला सिंह कोली पर भी माफिया ने हमला कर उन्हें घायल कर दिया। कुछ मामलों में तो जमीनी अधिकारियों ने सरकार से सुरक्षा की गुहार लगाई।
जाहिर है, रेत का यह अवैध कारोबार संगठित रूप से हो रहा है। बन्दूकों ओर लाठियों के साये में माफिया परडुब्बियों, पोकलेन, जेसीबी मशीनों से रेत खनन कर ट्रेक्टर-ट्राली तथा डँपरों से खुले आम ले जाते रहे हैं। इस दबंगई में माफिया में गेंगवार भी हुई, जिसमें कुछ लोग मारे गये तथा घायल हुए। सरकार अमला माफिया की अवैध गतिविधियों रोकने में असहाय सिद्ध हुआ। बीच में कुछ समय के लिए अवश्य अवैध उत्खनन में टहराव सा आया तब पूर्व मुख्यमंत्रीर दिग्विजय सिंह ने नर्मदा परिक्रमा की। परिक्रमा के दौरान जहां से दिग्विजय सिंह निकले उनसे एक-दो दिन तक नर्मदा, तवा आदि नदियों में अवश्य माफिया कुछ शिथिल हुआ और स्थानीय कार्यकर्ताओं से उन्हें भी जानकारी मिली कि किस क्षेत्र में किस नेता का माफिया से घनिष्ठ सम्पर्क है। नर्मदा की यात्रा तो शिवराज सिंह चौहान ने भी की, लेकिन वायुयान, हेलीकाप्टर तथा सरकार अमले के साथ यह करने से विशेष परिणाम सामने नहीं आये। इसके लिए दिग्विजय सिंह आसेर शिवराज सिंह सहित कांग्रेस और भाजपा के नेता एक-दूसरे पर आरोप लगाते रहे और रेत का अवैध कारोबार निरंतर बेधड़क चलता रहा।
पानी जब हद से ज्यादा गुजर गया तो शिवराज सरकार ने रेत कारोबार पंचायतों को सौंपने का निर्णया लिया। पर इससे न तो पंचायतों की आर्थिक स्थिति सुधरी और न ही आम आदमी को कोई फायदा हुआ। सरकार की आमदनी भी घट गई। फायदा सिर्फ कारोबारियों को हुआ। कमलनाथ सरकार ने नीति परिवर्तितत करते हुए पंचायतों से खदानों को वापस लेकर उन्हें नीलाम करने का निर्णय लिया, बताया गया कि तीस फीसदी जो खदानें सरकारी रिकार्ड में बंद थीं उन पर अवैध उत्खनन धड़ल्ले से चल रहा था। इस प्रकार बगैर रायल्टी दिये चल रहे कारोबार से माफिया मालामाल हो रहा था।
फिर नई नीति में कुछ ऐसे प्रावधान थे जिनसे मध्यमवर्गीय उपभोक्ताओं तथ कारोबारियों दोनों को परेशानी हो रही थी। इस नीति के अंतर्गत टेंडर स्वीकृत होने पर 3 दिन के अंदर 50 फीसदी राशि भरनी होगी। खदानों की नीलामी समूह में होगी और भण्डारण स्थल पर एक लाख मीटर रेत तीन महीने के बीच बेचनी होगी। व्यापारियों को महीने में 6 हजार से ज्यादा डंपर रेत बेचने की अनिवार्यता थी। जाहिर है इस नपीति से बड़े व्यापारियों को ही लाभ होगा।
इसी दौरान कम्प्यूटर बाबा सामने आये। उन्होंने रेत माफिया पर नकेल डालने की घोषणा की और तदनुसार कुछ साधु-संतों की सहायता से रेत माफिया को धवस्त करने के लिए नदी-क्षेत्रों, विशेषकर नर्मदा क्षेत्र में दौरे शुरू किये। उन्होंने कुछ लोगों को पकड़ा भी और रेत से भरे डंपर और टे्रक्टर-ट्राली भी जप्त किये, पर इसी बीच सरकार गिरने के कारण सभी का ध्यान राजनीतिक घटनाक्रम पर केन्द्रित हो गया, साथ ही सरकार गिराने और सरकार बचाने का सियासी खेल शुरू हो गया। साथ ही कोरोना के प्रकोप ने भी लोगों को भयभीत कर दिया। – बालमुकुंद भारती