आग़ाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता
जब ज़ुल्फ़ की कालक में घुल जाए कोई राही
बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं होता
हँस हँस के जवाँ दिल के हम क्यूँ न चुनें टुकड़े
हर शख़्स की कि़स्मत में इनआ’म नहीं होता
दिल तोड़ दिया उस ने ये कह के निगाहों से
पत्थर से जो टकराए वो जाम नहीं होता…….
(मीना कुमारी)
ये लाइनें काफी हद तक दमदार अदाकारी मीना कुमारी की जिंदगी की सच्चाई बयां करती है। 90 फिल्मों में अपनी दमदार अदाकारी से सिनेमा में अपना लोहा मनवाने वाली मीना कुमारी को इंडस्ट्री में ट्रेजेडी क्वीन के नाम से हर कोई जानता है। लेकिन उनकी दमदार अदाकारी ने बॉलीवुड में उन्हें नया नाम भी दिया था वो था- फीमेल गुरु दत्त।
मीना कुमारी का जन्म मुंबई में 1 अगस्त, 1932 को हुआ था। उनका असली नाम महजबीं बानो था। मायानगरी के जानकार बताते हैं कि मीना कुमारी का बचपन बहुत ही तंगहाली में गुजरा था। उन्होंने जीवन के दर्द को जीया इसलिए उनकी फिल्मों में कोई भी दुख का दृश्य उनके अभिनय से जीवंत हो उठता था।
मीना कुमारी को नाम, इज्जत, शोहरत, काबिलीयत, रुपया, पैसा सभी कुछ मिला पर सच्चा प्यार नहीं। मीना कुमारी ने अपनी खूबसूरती से करोड़ों लोगों को अपना दीवाना बनाया। बता की खूबसूरत मीना कुमारी के साथ हर कलाकार काम करना चाहता था। इतना ही नहीं उनके ऐसे कई दीवाने भी थे जो उनके इश्क में पागल थे।
मीना कुमारी इतनी खूबसूरत थीं कि कई एक्टर्स उनके प्यार में पागल हो गए थे। आलम तो ये था कि अपने जमाने के सुपरस्टार रहे राजकुमार, सेट पर मीना डायलॉग्स बोलती, या एक्टिंग करती, तो राजकुमार एकटक उन्हें देखते, और कई बार अपने डायलॉग्स ही भूल जाते थे।
मीना कुमारी ने अपनी एक्टिंग के दम पर एक ऐसा इतिहास रचा जिसे भुला पाना किसी के लिए भी मुमकिन नहीं हैं। मीना को असली पहचान साल 1952 में आई फिल्म ‘बैजू बावरा’ से मिली। मीना कुमारी की मुलाकात 1951 में कमाल अमरोही से हुई थी। उसी दौरान मीना कुमारी के कार का एक्सीडेंट हुआ था, तब कमाल साहब ने मीना कुमारी का बहुत ख्याल रखा था। जिसके कारण दोनों करीब आ गए। साल 1952 में मीना कुमारी और कमाल अमरोही ने गुपचुप तरीके से निकाल कर लिया लेकिन धीरे-धीरे मीना कुमारी और कमाल के बीच दूरियां बढऩे लगीं और फिर 1964 में मीना कुमारी कमाल से अलग हो गईं।
इस अलगाव की वजह अभिनेता धर्मेद्र थे, जिन्होंने उसी समय अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी। उस समय मीना कुमारी के सितारे बुलंदियों पर थे, उनकी एक के बाद एक फिल्म हिट हो रही थी। मीना कुमारी बॉलीवुड के आसमां का वो सितारा थीं, जिसे छूने के लिए हर कोई बेताब था। मीना कुमारी के रूप में धर्मेद्र के करियर की डूबती नैया को किनारा मिल गया था और धीरे-धीरे धर्मेद्र के करियर ने भी रफ्तार पकड़ी। अपनी शोहरत के बल पर मीना कुमारी ने धर्मेद्र के करियर को ऊंचाइयों तक ले जाने की पूरी कोशिश की।
धर्मेंद्र ने की मीना कुमारी से बेवफाई
फिल्म ‘फूल और कांटेÓ की सफलता के बाद, धर्मेद्र ने मीना कुमारी से दूरियां बनानी शुरू कर दीं और एक बार फिर से मीना कुमारी अपनी जिंदगी में तन्हा रह गईं। धर्मेद्र की बेवफाई को मीना झेल न सकीं और हद से ज्यादा शराब पीने लगीं।
प्यार की हताशा ने शराबी बना दिया.. और मीना ने मौत को चुन लिया
फिल्म ‘पाकीजाÓ के रिलीज होने के तीन हफ्ते बाद, मीना कुमारी गंभीर रूप से बीमार हो गईं। 28 मार्च, 1972 को उन्हें सेंट एलिजाबेथ के नर्सिग होम में भर्ती कराया गया। मीना ने 29 मार्च, 1972 को आखिरी बार कमाल अमरोही का नाम लिया, इसके बाद वह कोमा में चली गईं। मीना कुमारी महज 39 साल की उम्र में मतलबी दुनिया को अलविदा कह गई। मौत को पहले ही मीना शायद अपना चुकी थी इसी लिए उन्होनें अपनी शायरी में ये कहा था..
‘कोई चाहत है न जरूरत है
मौत क्या इतनी खूबसूरत है
मौत की गोद मिल रही हो अगर
जागे रहने की क्या जरुरत है।Ó