खलीलुर्रहमान आजमी का ने 2 अगस्त 1927 को सराय मीर जिला आजमगढ से हाई स्कूल का इम्तहान पास किया। बी.ए. की शिक्षा ग्रहण करते हुए उन्होंने कुछ अच्छे लेख लिखे जिनकी तारीफ करते हुए न्याज फतहपुरी ने उन्हें निगार में प्रकाशि किया जो बाद में मुकदमा कलामे आतिश के नाम से किताब की शक्ल में मंजरे आम पर आयी। इन लेखों से खलीलुर्रहमान आजमी की चारों ओर धूम मच गई।
सन् 1953 में वो अलीगढ मुस्लिम युनिवर्सिटी के उर्दू विभाग से जुड गये और यहीं पर उन्होंने ’’उर्दू में तरक्की पसंद तहरीक‘‘ पर अपनी पी.एच.डी. की। बहादुरशाह जफर का कलाम ’’नवाय जफर‘‘ के नाम से संकलित किया। इनके व्यंग्य लेख ’’फिक्र व फन, जाओ व निगाह और मजामिने नो के नाम से प्रकाशित हुए। काव्य संकलन ’’कागजी पेरहन और नया एहदनामा‘‘ के नाम से प्रकाशित हुआ। भरी जवानी में वो खून के कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से घिर गये और इक्यावन वर्ष की आयु में 1 जून 1978 को अलीगढ में देहान्त हो गया।
साहित्य की दुनिया में अपने अमूल्य योगदान के लिये खलीलुर्रहमान आजमी सदैव याद रखे जायेंगे। उर्दू शायरी में एक नई सिम्त की निशानदेही करने और नये तर्जुबों के लिये भी खलीलुर्रहमान आजमी का नाम इज्जत से लिया जाता है। आजादी के बाद नौजवानी शायरों में नासिर काजमी और खलीलुर्रहमान आजमी पेश-पेश थे। उन्होंने गजलें भी कहीं और नज्में भी। लेकिन इनकी गजलें अपने धीमें अंदाज, दर्द मन्दाना लहजे और ताजगी के अहसास की बदौलत ज्यादा पसंद की गयीं।
खलीलुर्रहमान आजमी की गजल
दरमियां खुद अपनी हस्ती हो लो हम भी क्या करें
आईना देखें कि अपने आपसे पर्दा करें।
एक से लगते हैं सब ही कौन अपना कौन गैर
बे नकाब आए तो कोई हम दरे-दिल वा1 करें।
हाल के सैलाब में तो बह गई माजी की लाश
दफन अब किसकी गली में हम गमे-फर्दा2 करें।
एक दो पल ही रहेगा सबके चेहरों का तिलिस्म
कोई ऐसा हो कि जिसको देर तक देखा करें।
क्यों न अपना लहू पीकर बुझाएं दिल की प्यास
किसके घर का भेद खोलें किसको हम रूस्वा करें।
अब तो उमडा ही चला आता है सेले आतशीं 3
चश्मेतर हम किस तरह से पार ये दरिया करें।
ये तो सच है जहर लगते हैं हमें बस्ती के लोग
किस तवक्को4 पर मगर आबाद हम सहरा करें।
पास अपने क्या रहा बस इक गुरूरे-मुफलिसी
इसकी क्या कीमत लगाये, इसका क्या सौदा करें।
सरफिरे सब जमा हों, सबके सरों पर हों चराग
बस चले तो हम भी ऐसा जश्न इक बरपा करें।
शब्दार्थः- 1.दिल का दरवाजा खोल दें, 2. आने वाले कल का दुख, 3. अंगारों का समुद्र, 4. आशा।