गजल गायकी का जाना पहचाना नाम जुल्फिक़ार

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भोपाल एक साहित्यिक और सांस्कृतिक शहर के रूप में जाना जाता है और जहां एक ओर यहां पर कई नामवर शायर हुये हैं वहीं गज़ल गायकी में भोपाल का नाम रोशन करने वाले कई फनकार भी हुए हैं। जगदीश ठाकुर, सुमना राय, असमा मन्नान, जैसे कई गजल गायकों ने संगीत की दुनिया में भोपाल का नाम रोशन किया। इसी कड़ी में नाम आता है, युवा गजल गायक जु़ल्फिकार अली का।
सन्ï 1973 से गजल गाने की शुरूआत करने वाले जुल्फीकार की पारिवारिक पृष्ठïभूमि गायकी की नहीं है, बल्कि जब उन्होंने ग़जल गाने की शुरूआत की तो परिवार के कई लोगोंं ने इसका विरोध किया और कहा कि यह क्या भांड-मीरासियों का काम तुम करने जा रहे हो। क्योंकि उस समय गायको को वोह सम्मान और मुकाम नहीं हासिल था जो आज के दौर में मिलता है। अपने स्कूली जीवन से ही संगीत की ओर आकर्षित होने वाले जुल्फिकार अली ने स्कूली कार्यक्रमों में गाना शुरू किया और यहीं से उनकी संगीत साधना शुरू हो गई।
प्रांरभ में शफीक अलवी साहब के सानिध्य में उन्होंने गाना शुरू किया, वे बताते हैं कि उस समय अलवी साहब के साथ 8-10 लोगों का एक समूह बन गया जो गीत-संगीत की प्रस्तुति दिया करते थे, मैं भी उनमें शामिल था। उन दिनों हमारे कई कार्यक्रम होने लगे थे।
जुल्फिकार अली बताते हैं किे मैेंने मेंहदी हसन साहब की गजल-गुलों में रंग भरे बादे नौबहार चले-सुनी और उसके बाद से ही मुझे ग़जल गाने का शौक पैदा हुआ। वे मेहदी हसन को अपना आदर्श मानते हैं। वर्तमान गायकों में जगजीत सिंह को वो बेहद पसंद करते हैं।
जुल्फिकार अली कहते हैं कि उन दिनों रेडियो पर दोपहर में एक गैर फिल्मी गीतों का कार्यक्रम प्रसारित हुआ करता था मैं उसे बहुत ध्यान से सुना करता था। मेरे माता-पिता ने कभी मेरा विरोध नहीं किया और मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया।
सन 1980 में भोपाल के ध्रुपद केन्द्र में उनकी नौकरी लग गई। उसके निदेशक के रूप में डगार साहब आ गये थे, उनके साथ जुल्फिकार अली ने 1983 में यूरोप का दौरा किया और वहां कई कार्यक्रम प्रस्तुत किये। जब वह 4-5 माह बाद दौरे से वापस आये तो उनकी एक पहचान कायम हो चुकी थी।
जुल्फिकार अली ने शौकत अलवी, वहीद उस्मानी, जगदीश ठाकुर आदि के सानिध्य में गायन की बारीकियों को सीखा। डागर बंधुओं जिया फरीद उद्दीन डागर और मोहीउद्दीन डागर से भी उन्होंने गायन सीखा। गायन के क्षेत्र में उनको कभी किसी भी प्रकार की कठिनाई नहीं आई और सभी लोगों का सहयोग उनको प्राप्त होता रहा।
जुल्फिकार अली भारत के तमाम बड़े शहरों, दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, मद्रास, बैंगलोर, हैदराबाद, नागपुर, पूना आदि अनेक स्थानों पर अपने कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुके हैं। इसके साथ ही वह यूरोप के 7-8 स्थानों, अमरीका, बैकांक, सिंगापुर आदि में अपने कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुके हैं।
उनकी पसंदीदा गजलों में रंजिश ही सही जैसी बेहतरीन गजलें शामिल हैं।
उनके परिवार में आने वाले पीढ़ी को गायन के शौक के संबंध में पूछने पर उन्होंने बताया कि मैं तो चाहता था कि मेरा बड़ा बेटा गायन सीखे क्योंकि उसकी आवा$ज बहुत अच्छी है, लेकिन उसका रुझान इस तरफ नहीं था इसलिए उन्होंने उस पर जोर नहीं दिया।
जुल्फिकार अली द्वारा गाई अल्लामा इकबाल की गजलों का कैसेट आ चुका है। उनके संगीत निर्देशन में वीनस ने एक कैसेट दो राही निकाला है जिसमें अशोक सिंह और वंदना चटर्जी ने गजलें गाईं हैं। 1991 में एक कैसेट अजीत सिंह देयोल के लिखे गीतों का निकला, जिसमें जुल्फिकार अली के साथ कई अन्य स्थापित गायकों ने भी उसमें गाया है। जुल्फिकार अली ने कई धारावाहिकों में भी टाईटल संगीत दिया है और उनका लक्ष्य मुम्बई में संगीतकार बनने का है और एक फिल्म में संगीत देने के लिए बात चल रही है।
जुल्फिकार कहते हैं कि गजलों की हमेशा मांग बनी रहेगी और उसको सुनने वाले हमेशा रहेंगे। वे कहते हैं कि ई-टीवी द्वारा प्रसारित गजलसरा कार्यक्रम है जो नये उभरते गजल गायकों को अच्छा मंच प्रदान कर रहा है और इस कार्यक्रम के द्वारा कई अच्छे-अच्छे गजल गायक सामने आ रहे हैं।
नये गायकों से वह कहते हैं कि जो भी गजल गायें शायरी को ध्यान में रखें, शायरी को समझ कर गायें और तल्लफ़ुस साफ-सुथरा हो और शेर गलत न पढ़ें। वे कहते हैं कि जितनी कीमत गायकी की होती है उतनी ही कीमत अच्छी शायरी की भी होती है।
जुल्फिकार अली ने गजलों के साथ ही गीत एवं भजन भी गाये हैं। उनके पसंदीदा शायरों में अख्तर नज़्मी, बशीर बद्र, निदा फाजली, जफर सहबाई आदि शामिल हैं। वे कहते हैं कि वे नये शायरों का कलाम पढऩा ज्यादा पसंद करते हैं। नये शायर भी अच्छा कलाम लिख रहे हैं। पुराने शायरों को तो सभी गा चुके हैं और गा रहे हैं, लेकिन नये शायरों को भी मौका दिया जाना चाहिए ताकि लोगों को उनकी सलाहियतों के बारे में पता चले।
– रईसा मलिक