अक्सर हम सभी के साथ ऐसा होता है। या तो हम तुरंत गुस्सा कर बैठते हैं या चुपचाप पी जाते हैं। ऐसे में कई बार बातें इक_ïा होती जाती हैं और इतने दिन का गुबार एक साथ बाहर निकलता है,जो संबंधों में बड़ी दरार पैदा कर देता है।
मनोचिकित्सक डॉ. काकोली रॉय कहती हैं- ‘ये दोनों ही स्थितियां गलत हैं। नाराज़गी नैसर्गिक भावना है और इसे बाहर निकलने का जरिया मिलना ही चाहिए। गुस्सा करना गलत नहीं है बस तरीका शालीन और समझदारी भरा होना चाहिए।Ó
गुस्सा करने के कारण
आपने अपनी सबसे विश्वसनीय सहेली को कोई बात बताई और वह बात सार्वजनिक हो गई।
किसी ऑफिस में आपको दो मिनट के काम के लिए कर्मचारी ने दो घंटे बिठाए रखा। और काम तब भी नहीं हुआ। इसी तरह की बहुत-सी बातें हैं, जो हमें गलत या बुरी लगती हैं। हमारी भावनाओं को ठेस लगती है, हमें गुस्सा आता है। ये स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिसके लिए प्रयास नहीं करना पड़ता।
ध्यान रखें
घटना को पहले मन में दोहराएं।
बीती बातें को भूलकर भी बीच में न लाएं।
आपको अपनी तकलीफ बताना है वाद-विवाद की क्षमता नहीं।
सामने वाला चीखकर या चिल्लाकर बात करे, तो जरूरी नहीं कि आप भी ऐसा करें।
व्यंग्य ओर तानों का प्रयोग न करें।
सामने वाले की बातों पर विश्वास करें और उसे भी सफाई का मौका दें।
सामने वाले को नीचा न दिखाएं।
सजा देने के इरादे से या सिर्फ चिढ़ाने के लिए तर्कहीन बातें न करें।
प्रतिकूल परिस्थिति में अपनी बात कर लेने से दिल का गुबार निकल जाता है, भावनाओं को बाहर निकलने का एक रास्ता मिल जाता है। साथ ही यह भी सुकून हो जाता है कि हमारी चोट का अहसास दूसरों को हो गया है। डॉ. राय कहती हैं- ‘स्थितियां चाहे जो हों, लेकिन एक साकारात्मक दृढ़ता बहुत जरूरी है। नाराजगी खुद को अभिव्यक्त करने का जरिया है न कि दूसरों पर आरोप लगाने का।
‘आपने ऐसा कहाÓ के बजाए ‘मुझे बुरा लगाÓ वाक्य कहा जाए, तो नाराजगी को सही दिशा मिलती है और ज्यादा प्रभावी ढंग से बात दूसरों तक पहुंचती है।Ó जब भी कोई अनचाही स्थिति पैदा हो और आपको गुस्सा आ जाए, तो उसे जाहिर करने से पहले यह सोच लें कि गुस्सा होने के चार उद्देश्य हैं-
आपको जो मानसिक आघात लगा है, जो दुख हुआ है, दूसरे को उसका अहसास कराना।
इस विपरीत स्थिति से उबरना।
ऐसी कष्टïप्रद घटनाओं, बातों को आगे होने से रोकना।
अपने संपर्क और संबंधों को अधिक घनिष्ठï बनाना। ‘अपनी तकलीफों और परेशानियों से अवगत करना हर रिश्ते की मजबूती की पहली शर्त है। कोई भी व्यक्ति इतना कुशल नहीं होता कि चेहरा देखकर मन का अंदाजा लगा ले। दिक्कतों के बारे में तो बताना ही होगा।Ó डॉ. राय आगे बताती हैं।
लेकिन कहने का एक शालीन ढंग तो होना ही चाहिए। अगर आप चाहती हैं कि संबंध हमेशा मधुर और घनिष्ठï बने रहें और रिश्ते के ये बंधन सचमुच आपके लिए ‘आंतरिक प्रसन्नताÓ का स्रोत बने रहें, तो गुस्सा करना सीखिए ज़रूर, क्योंकि जीवन को संतुलित रखने के लिए गुस्सा भी जरूरी है, लेकिन सही ढंग से। – इंदु कालानी