6 अगस्त 2016 को देश में अपनी तरह के पहली बार आयोजित टाउनहॉल कार्यक्रम में जनता द्वारा किये गये सवालों का जवाब स्वयं मोदी ने जनता से रूबरू होकर दिया। इस कार्यक्रम में मोदी से देश के अलग अलग राज्यों के 9 लोगों ने सुशासन, अर्थव्यवस्था, सेहत, कृषि, किसानी, विदेश नीति और पर्यटन जैसे 9 मुद्दों पर सीधे सवाल किए। प्रधानमंत्री ने इस मंच का प्रयोग देश में गौरक्षा के नाम पर दलितों, अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार करने वाले फर्जी गौरक्षक ठेकेदारों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि गौरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी कतई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
सीधा और तीखा कटाक्ष करते हुए मोदी ने कहाकि- ”गौरक्षा के नाम पर कुछ लोग अपनी दुकानें खोलकर बैठे हैं। गौसेवक बनने वाले ऐसे फर्जी लोगों पर मुझे बहुत गुस्सा आता है। पुराने ज़माने में बादशाहों और राजाओं की लड़ाई होती थी। बादशाह युद्ध के समय आगे गाय रखते थे और जीत जाते थे। कुछ लोग रात को गोरखधंधे करते हैं और दिन में गौरक्षक का चोला पहन लेते हैं। 80 प्रतिशत गौसेवक गोरखधंधा करते हैं और अपनी बुराईयों को छुपाने के लिए गौरक्षक बनने का नाटक करते हैं। गाय सबसे ज्यादा प्लास्टिक खाने से मरती हैं।ÓÓ
सवाल यह उठता है कि इस प्रकार की घटनाएं कोई अभी नहीं प्रारंभ हुई हैं। करीब एक साल पहले वाकनेर के भल गांव के पास मृत गायों का चमड़ा लेकर जा रहे दलित युवकों पर हमला कर उनके वाहन में आग लगा दी गई। 22 मई को अमरेली के राजुला में भी ऐसी ही घटना हुई थी। पीडि़त परिवार के नाजाभाई ने बताया कि उनका पुत्र दिलीप, भतीजा भोला सहित 7 लोग गौशाला सदन के पास मरी गायों की चमड़ी उतारने के बाद वहां पड़ी हड्डियों को भरवा रहे थे। तभी लगभग 20 लोगों ने हमला कर दिया। सबको कमरे में बंदकर आग लगाने की तैयारी भी कर ली थी, किन्तु पुलिस समय पर पहुंच गई और एक बड़ी दुर्घटना टल गई।
गुजरात के सोमनाथ जिले के ऊना में 11 जुलाई को ऐसी ही एक और घटना हुई जिसमें दलितों को बांधकर पीटा गया था। बाद में सोशल मीडिया पर इसका वीडियों वायरल होने के बाद पूरे देश में इस घटना को लेकर हंगाम मच गया और प्रमुख राजनीतिक दलों के तमाम बड़े नेता ऊना काण्ड के पीडि़तों से मिलने जा पहुुंचे और राष्ट्रीय मीडिया पर यह मामला छाया रहा।
इस घटना के आरोपी प्रमोद गोस्वामी की एसयूवी में बांधकर दलितों को पीटा गया। इस गाड़ी की नंबर प्लेट पर दहाड़ते बाघ की फोटो थी, जो शिवसेना का निशान है। प्रमोद शराब की अवैध बिक्री समेत वसूली करने वाले गिरोहों को चलाने के आरोप में भी जेल में रहा है। शिवसेना ने कहा वह हमारा कार्यकर्ता नहीं है।
विगत दिनों इसी प्रकार से दादरी कांड हुआ जिसमें अखलाक अहमद को गौमांस रखने के झूठे आरोप में भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था। यह मामला भी बहुत उछला और इसके विरोध में देश के ख्यातिनाम बुद्धिजीवियों ने अपने-अपने सम्मान लौटाते हुए इसका पुरजोर विरोध किया और देश में बढ़ती असहिष्णुता को लेकर उन दिनों काफी हंगामा हुआ।
इस प्रकार की घटनाएं इतने विरोध के बावजूद रुकी नहीं और इसी कड़ी में पिछले दिनों मंदसौर में अल्पसंख्यक महिलाओं के साथ गौमांस रखने के झूठे आरोप में रेलवे स्टेशन पर पुलिस की उपस्थिति में कुछ तथाकथित गौरक्षकों ने पटक-पटक कर पीटा और भरी भीड़़ में उन्हें अपमानित किया गया। यह मामला राज्यसभा में उठाया गया। बाद में संबंधित मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने बयान में कहाकि मांस गौमांस नहीं था वह भैंस का मांस था। सवाल यह उठता है कि बिना जांच-पड़ताल के मांस लेकर जाने वाले अथवा घर में रखने वालों को कब तक प्रताडि़त और अपमानित किया जायेगा?
लगभग दो साल से देश भर में राजनीतिक और अन्य कारणों से गौरक्षा के नाम पर तथाकथित गौरक्षकों ने आतंक मचा रखा है और गुजरात में तो अब यह चरम पर ही पहुंच गया है। कारण यह है कि अत्याचार करने वालों पर कार्यवाही ही नहीं होती, यही कारण है कि उनके हौसले दिन ब दिन बढ़ते-बढ़ते मामला इतना बढ़ गया है कि असली गौ सेवकों, गौ पालकों ने हाईकोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया था। और इसके परिणामस्वरूप पिछले दिनों गुजरात हाईकोर्ट ने गौरक्षा के नाम पर अवैध गतिविधियां होने पर राज्य सरकार से जवाब मांगा। दलित समाज के अग्रणी कौशिक परमार का कहना है कि गौवध रोकने से जुड़ा कानून है, फिर गौ समितियां क्यों?
मोदी के इतनी देर से तथाकथित गौ रक्षकों पर गरजने पर लोग अपने-अपने कयास लगा रहे हैं। क्योंकि लगभग दो साल से अल्पसंख्यक और दलितों पर हो रहे अत्याचारों पर मोदी ने चुप्पी क्यों साधी थी? क्या गुजरात में संघ द्वारा कराये गये सर्वे की रिपोर्ट आने से मोदी की नींद टूटी या फिर उत्तरप्रदेश में अगले वर्ष होने वाले चुनाव की चिंता ने या उत्तरप्रदेश के दलितों की हमदर्दी पाने अथवा अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए मोदी गरजे। यह तो समय ही बताएगा। देखना यह है कि मोदी के गरजने का असर राज्य सरकारों पर होता है और तथाकथित गौ रक्षकों पर लगाम कसी जाती है या नहीं।
देखने में आया है कि गायों से अपना मतलब निकाल कर उन्हें सड़कों और गलियों में गन्दगी के लिए छोड़ दिया जाता है। गाय द्वारा सड़कों पर की गई गंदगी से लोगों को दो-चार होना पड़ता है। लोग इस गोबर से से फिसल कर गिरते हैं और उनके हाथ पैर टूट जाते हैं। यह गन्दगी घरों में जाती है, गोबर नालियों में बहाने से ड्रेनेज़ सिस्टम तहस-नहस हो जाता है जिससे अनेकों तरह की बीमारियों से सभी को दो चार होना पड़ता है। लावारिस गाय खाना खाने की तलाश में जहां-तहां पड़ी गन्दगी से सड़ा-गला गन्दा खाना, पॉलिथीन समेत खा जाती हैं । जिससे कई बार उनकी मौत भी हो जाती है। वहीं बेतरतीबी से सड़कों पर बैठने के कारण वह स्वयं तो दुर्घटना का शिकार भी होती हैं साथ ही उनसे टकराने वाले वाहन चालकों को भी नुकसान पहुंचता है।
गौरक्षा के फर्जी ठेकेदारों द्वारा, गौरक्षा के नाम पर लोगों पर अत्याचार करने वाले अत्याचारियों पर कार्यवाही कर उन पर लगाम लगाई जाती है, तो जनता समझेगी की वास्तव में मोदी के दिल में अल्पसंख्यकों और दलितों के प्रति हमदर्दी और देश की शांति भंग करने की कोशिश करने वालों के प्रति उनके मन में रोष है और वाकई में देश में गंगा-जमुनी तहज़ीब को जि़दा रखते हुए देश की संस्कृति को बचाये रखने का सफल प्रयास करने की इच्छा भी। अन्यथा उनका यह वकतव्य भी आागमी चुनावों में वोट बटोरने का एक हथकण्डा ही साबित होगा। – रईसा मलिक