जंगे आजादी में उर्दू सहाफत

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अगर सही ढंग से आंका जाये तो आजादी की जमीन अखबारों और सहाफियों ने ही तैयार की, जो आगे चल कर सियासी रहनुमाओं एवं मुजाहिदे आजादी को पहले सहाफी बनने के लिए हौसला देते रहे। उस दौर में पं. बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, महात्मां गांधी, जवाहरलाल नेहरू, डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आजाद, मौलाना मोहम्मद अली जौहर जैसे रहनुमाओं ने सहाफत के जरिये अपनी आवाज व ख्यालात आम जनता तक पहुंचाये।
’’आजादी‘‘ वो नेमत है जो हिन्दुस्तानियों को काफी जद्दोजहद एवं खून पसीना बहाकर सैकडों बहादुर सपूतों को गंवा कर हासिल हुई और इस सच्चाई से कोई भी मुंह नहीं मोड सकता कि आजादी के लिए हुई पहली जंगे आजादी से लेकर आजादी हासिल होने तक मुसलमानों ने बहुत कुर्बानियां दीं और मुल्क के लोगों में आजादी की अलख जगाने और जोश पैदा करने के लिए जहां उस दौर के कई रहनुमाओं ने अखबारता का सहारा लिया वहीं उर्दू सहाफियों ने भी अपना अहम रोल अदा किया।
सहाफत के जरिये आजादी की अलख जगाने से अंग्रेजों को घबराहट होने लगी कि आजादी की जो लगन अब तक मुसलमानों में जोर पर थी वह अब हिन्दुओं मे भी फैलती जा रही थी। अंग्रेजों ने प्रेस एक्ट और हथियार छीनने का कानून बनाकर हिन्दुस्तानियों को निहत्था करने की कोशिश की। इसके बावजूद एक के बाद एक कई उर्दू अखबारात निकाले गये जो मुल्क की अवाम में जंगे आजादी में अहम हिस्सा बनने का जज्बा पैदा करते रहे।
भोपाल के मुजाहिदे आजादी मौलाना बरकत उल्लाह आला तालीम के लिये इंग्लैण्ड से भोपाल आकर मुल्क की आजादी की लडाई में शामिल हो गये। उनका कहना था कि मुसलमानों की भलाई इसी में है कि वह हिन्दुओं के साथ मिलकर अंग्रेजों से मोर्चा लें। अपने अखबार में वह हिन्दुस्तानियों को आजादी का महत्व समझाते थे। जारिहाना नजरियात रखने के सबब सरकार इस अखबार को बर्दाश्त न कर पायी और उन्हें मुल्क छोडकर जापान जाना पडा। वह वहां एक यूनीवर्सिटी में प्रोफेसर हो गये। वहां से भी एक अखबार निकाला। अंग्रेजों ने जापानियों पर दबाव डालकर उनको वहां से निकलवाया और मौलाना अमरीका चले गये।
1920 में गांधी जी ने मुल्क को नाफरमानी तहरीक अदम तशद्दुद और सत्याग्रह का रास्ता दिखाया तो जिन लोगों ने आगे बढकर गांधी जी का साथ देकर मुल्क की आजादी का बीडा उठाया। उनमें मौलाना मोहम्मद अली जौहर और उनके बडे भाई मौलाना शौकत अली का आला मुकाम है। 1921 में जब गांधी जी पूरे मुल्क का दौरा कर रहे थे तब दोनों भाई गांधी जी के दाये बायें बाजू की तरह साथ चलते थे। दोनों भाई अली बिरादरान के नाम से मशहूर थे।0 रामपुर रियासत के एक दौलतमंद खानदान से 1878 को मौलाना मोहम्मद अली जौहर का जन्म हुआ। आपने आक्सफोर्ड से 1902 में ग्रेजुएशन किया। 1911 में कलकत्ता से अंग्रेजी जबान में कामरेड नाम का अखबार निकाला। यह अखबार अपनी हुब्बुल वतनी इस्लाम दोस्ती और गैर जानिबदारी के लिये पूरे हिन्दुस्तान में मशहूर हो गया। 1913 में उन्होंने दिल्ली से उर्दू रोजनामा हमदर्द की इशाअत शुरू की।
हिन्दुस्तान को आजाद कराने वालों में और आजाद हिन्दुस्तान की तामीर करने वालों में मौलाना अबुल कलाम आजाद का खानदान हिन्दुस्तान के मशहूर मुस्लिम उलेमा के खानदानों में से एक है। आप 1888 में मक्का में पैदा हुए। आपने काहिरा की अल अजहर यूनीवर्सिटी से आला तालीम हासिल की। आपने हिन्दुस्तान सिदक (सच की आवाज) हफ्तेवार निकाला। उस वक्त हिन्दू मुसलमानों से अंगेे्रजों में शक व शुबह का बीज बो दिया था। मौलाना ने इन हालात पर गौर किया और यह फैसला किया कि मुसलमानों को अंग्रेजी साम्राजियत के चंगुल से छुडाना है तो उनमें कौमियत का जज्बा पैदा जरूरी है। उनके दिलों से हिन्दुओं की तरफ से शक व शुबहा दूर करना है और उन्हें बताना है कि उनकी किस्मत अंग्रेजों के साथ नहीं बल्कि हिन्दुओं के साथ वाबस्ता है।
मौलाना आजाद अपनी कलम के जरिये से हिन्दोस्तान के लोगों में बेदारी लाना चाहता थे और गुलामी की जंजीरें तोडना चाहते थे। इसी वजह से उन्होंने बहुत सोच समझकर अलहलाल नाम से एक अखबार शुरू किया। इस अखबार का पहला शुमारा 13 जुलाई 1912 को शाया हुआ। इस अखबार ने निकलते ही इतनी शोहरत हासिल की जो हिन्दोस्तान के किसी दूसरे अखबार ने हासिल नहीं की थी।
इस अखबार ने एक तरफ हिन्दोस्तान की सही रहनुमाई कर और दूसरी तरफ हिन्दुस्तानी मुसलमानों को जगाया। अखबार ने अंग्रेजों की नींद हराम कर दी और अािखरकार अंग्रेज सरकार ने इस अखबार को बंद करा दिया। लेकिन मौलाना आजाद कब मानने वाले थे। उन्होंने अल बलाग के नाम से दूसरा अखबार निकाला। अंग्रेजों ने अब कानून का सहारा लेकर इसे भी बंद कर दिया और मौलाना को कलकत्ता से शहरबदर कर दिया। वह रांची में आकर रहने लगे। यहां भी उन्हें नजरबंद कर दिया गया।
सर सैयद अहमद खां ने 1839 में सैयदुल अखबारात के नाम से एक अखबार निकाला जो बहुत मकबूल हुआ।
मौलाना हुसैन अहमद मदनी (1829-1957) देवबंद के मुमताज और मशहूर उस्ताद मुजाहिदे आजादी मौलाना महमूदुल हसन के चहीते शार्गिद थे। मौलाना हुसैन अहमद मदनी की सियासत सिर्फ जज्बाती सतह तक महदूद नहीं थी। कौम और समाज के मसायल के तयीं हकीमाना रवैया रहा। वह एक दानिश्वर थे और इस सिलसिले में उनका तजजिया इंसानी कद्रों में यकीन को जाहिर करता था। यह सच्चाई उनकी कौमी सियासत मआशी निजाम या बैनुल अकवामी मसायत पर उनकी तहरीरों से साफ उभर कर सामने आती है। उनके मजामीन का बेशकीमत असासा उनकी सियासत मजहब और समाजी नुक्तये नजर से उनकी मुताआरिफ कराता है।
कुल मिला कर हम यह कह सकते हैं कि जंगे आजादी में उर्दू सहाफत ने अपनी एक अलग छाप छोडी है। इस मकाले में हम कई दीगर अखबारात का जिक्र नहीं कर पाये हैं जिनका एक अहम रोल रहा। – सैफ मलिक