जिहाद कुरआन की रोशनी में

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इस्लाम की दृष्टि में आदर व सम्मान मनुष्य का पैदाइशी अधिकार है। इस्लाम धर्म के अनुसार हर व्यक्ति सम्मानित है। बल्कि उसकी, झगडे, फसाद में लीन विचारों का विरोधी है। यदि जब वह बुराईयों से दूर हो जाए तो विरोध समाप्त हो जाएगा। क्योंकि मनुष्य तो स्वयं हर प्रकार की मख्लूक से उच्च एवं आदरणीय है। इस्लाम की दृष्टि में वह बुरा नहीं है जो इस्लामी विचारों को पसंद नहीं करता। बल्कि दोषी व्यक्ति वह है जो इस्लाम की रोशनी को समाप्त करने, मुसलमानांे को बहकाने, हक की आवाज को दबाने या सच्चाई को झूठ में सम्मिलित करने या हक की ताकत से या चोरी छुपे मिटाने की कोशिश करता है। इस्लाम, इस प्रकार की घृणित विचारों की व्यक्तित्व को अल्लाह की इस धरती पर बिलकुल सहन नहीं करता। क्योंकि यह इस्लाम नहीं है, बल्कि मनुष्यता के लिए जेहरे कातिल हैं मुसलमान का यह फर्ज है कि वह अल्लाह के दीन को रोशनी को पूरे संसार में फैलाना है। परंतु किसी व्यक्ति से जबरन मनवाना नहीं है। इस्लाम का संदेश को मानने में अथवा न मानने में मनुष्य पूर्णतया स्वतंत्र है।
हजरत उमर रजि. जिनकी हैबत (डर) से ईरान और रूम के दरबार थर्राते थे, जब आपने अपने ईसाई गुलाम इस्तक से इस्लाम कुबूल करने से साफ इंकार कर दिया तो बस इतना कहा कि ’’दीन में जोर जबरदस्ती नहीं है। इस के अतिरिक्त कुछ नहीं कहा और न किया।
इस्लाम अल्लाह की सबसे बडी नेमत है चाहे वाहे जिसे दे। इस्तक के भाग्य में यह नेमत नहीं थी।
यदि इस्लाम में मनुष्य की इच्छा पर पाबंदी होती तो क्या यह एक साधारण गुलाम फारूके आजम के सामने इस्लाम को स्वीकार करने से मना कर सकता था। यह किस्सा उन इस्लाम के दुश्मनों के मुंह पर भरपूर तमाचा है। जो इस्लाम पर जोर जबरदस्ती से फैलाने का इल्जाम लगाते हैं। इस्लाम के फैलाने में न दिरह, दीनार (रूपया, पैसे) और न ही तलवार का हाथ है बल्कि इस्लाम को अपनाने वालों, इस्लामी स्वभाव, इस्लामी बर्ताव तथा इस्लामी चरित्र और सबसे अधिक स्वयं इस्लाम में मौजूद इस्लाम मनुष्य की आत्मा की पुकार है। जब उसने (आत्मा ने) यह पुकार सुनी तो स्वयं दीवानगी से उसकी ओर दौडी। जिस प्रकार पतंगे ज्वाला की ओर दौडते हैं।
अतः यह कहना कि इस्लाम जोर-जबरदस्ती से या तलवार से फैला, बिल्कुल इस्लाम दुश्मन गिरोह का बिल्कुल झूठा प्रोपगण्डा है।
जिहाद स्थाई एक एतिहासिक आवश्यकता है, प्रलय आने तक मुसलमानों की, अकेले, व गिरोही, जिम्मेदाराना दायित्व व कौम का आदर, दीन व वतन की सलामती व सुरक्षा की प्रतीक है।
जिहाद कुरआन की नजर में
अल्लाह का इरशाद (कहना) है कि ’’ और जो लोग अल्लाह की राह में मारे गये, उनके विषय में यह ख्याल न करना कि वह मर गये। नहीं, वे जिन्दा (जीवित) हैं। और अपने रब (अल्लाह) से रोजी (खाना) पा रहे हैं। अल्लाह तआला ने अपने फज्लोकरम से जो कुछ उन्हें दिया है उससे वह शादा व फरहां (प्रसन्न व संतुष्ट) हैं और जो मुजाहिद (जिहाद करने वाला) उनके पीछे (संसार में) रह गये हैं और (शहीद होकर) अभी उनसे मिले नहीं, उनके लिए खुश हो रहे हैं कि उन्हें यहां न तो किसी प्रकार का डर होगा, न वे दुखी (गमगीन) ही होंगे। वे अल्लाह तआला की नेमतों और फज्ल के अतियों (तोहफों-पुरस्कारों) से संतुष्ट हैं और इस बात से कि उन्होंने देख लिया कि अल्लाह तआला ईमान रखने वालों का अज्र (पुण्य) कभी बर्बाद नहीं करते।‘‘
अल्लाह के रास्ते मंे हिजरत (पलायन) और शहादत अल्लाह तआला को क्षमा करना (अफव) रहमत (रहम खाना) व मग्फिरत की पक्की जमानत है।
इरशाद होता है कि ’’जो लोग ईमान लाए और जिन लोगों ने अल्लाह की राह में हिजरत की (अपने वतन को छोडा) और जिहाद (धार्मिक जंग) किया, वही लोग अल्लाह तआला की रेहमत के उम्मीदवार (आशा रखने वाले) हैं और अल्लाह तआला तो बडे बख्शने वाला (दया करने वाला) है और रहम करने वाला है।‘‘ अल बकरः 218
मुसीबतों के सामने कठोर चट्टान और राहे हक (खुदा के रास्ते) में तन, मन, धन सब कुछ न्यौछावर करना ही ईमान की परीक्षा में शानदार कामयाब माने जाते हैं। अर्थात जिहाद, ईमान की परीक्षा है। अल्लाह इर्शाद फरमाता (कहता) है ’’ मुसलामानों क्या तुम समझते हो (खाली ईमान का दावा करके) जन्नत में प्रवेश कर लोगे और ईमान व अमल की आजमाइशों (परीक्षाओं) में तुम्हें गुजरना नहीं पडेगा। यद्यपि अभी वह मौका (अवसर) पेश (सामने) ही नहीं आया है कि अल्लाह तआला तुम्हें आजमाइश (परीक्षा) में डालकर बता देता कि कौन लोग राहे हक में (अल्लाह के रास्ते में) जिहाद करने वाले हैं और कितने हैं जो सख्ती और कठिनाईयों में साबित कदम (डटे) रहने वाले हैं।‘‘ – आले इमरान 42
जिहाद, हयाते जाविदानी (सदा जीवित रहना), नेमत जाविदानी (सदा के लिए पुरस्कार) और सदा की जन्नत (स्वर्ग) के पाने यकीनी (पक्का विश्वसनीय) जरिया है। अल्लाह की खुशनूदी (प्रसन्नता) का वसीला है। जिहाद मोमिन (मुसलमान) की अािखरी मुज्लि की मुराद (चाहत) है।
अल्लाह तआला का इरशाद (कहना) है कि जो लोग ईमान लाए और वतन छोड गये और अल्लाह के रास्ते में जान व माल से जिहाद (धार्मिक युद्ध) करते रहें, अल्लाह तआला के यहां उनके दरजात (पदोन्नतियां) बहुत ऊंचे हैं और वही अपनी मुराद (इच्छा) पाने वाले हैं। उनका रब (पालने वाला) उन्हें अपनी रहमत रिजवान ( प्रसन्नता व संतुष्टि) और स्वर्ग की खुशखबरी देता है, जिनमें उनके लिए सदैव की नेमतें हैं, वे सदैव रहंेगे। बिला संकोच अल्लाह तआला के यहां उनके लिए अज्रे अजीम (बडा बदला) है। अत्तोबा 20-22
0 प्रो. अब्दुल ताहिर खान 0 अनुवाद- डाॅ. एस.ए. ज+ैदी