डॉ. बशीर बद्र

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डॉ. बशीर बद्र इस उपमहाद्वीप के लोकप्रिय शायरों में गिने जाते हैं। अमेरिका, कनाडा, लंदन, पाकिस्तान, दुबई, शारजाह, जेद्दाह के अलावा दुनिया के कई देशों में जहां उर्दू और हिंदी भाषी लोग रहते हैं, बशीर बद्र बार-बार बुलाए जाते हैं। उर्दू के सभी बड़े आलोचकों ने उन्हें इस वक्त का मकबूल शायर मानते हुए उनकी शायरी पर लिखा है। उनके कई शेर दुनियाभर के लोगों की जुबान पर हैं। 15 फरवरी 1935 को अयोध्या में जन्मे इस शायर का असली नाम सैयद मोहम्मद बशीर है। उन्होंने अलीगढ़ विश्वविद्यालय से बीए, एमए और फिर पीएचडी की। उर्दू लिपि में ‘इमेजÓ, ‘आमदÓ, ‘लास्ट लगेजÓ, ‘आसमानÓ और ‘आहटÓ नाम के गजल-संग्रह प्रकाशित हुए, जिन्हें उर्दू अकादमी उत्तर प्रदेश और बिहार की उर्दू अकादमी से पुरस्कार मिले। देवनागरी लिपि में उनके गजल संग्र्रह हैं, ‘तुम्हारे लिएÓ, ‘आंचÓ, ‘उजाले अपनी यादों केÓ, ‘बशीर बद्र की गजलेंÓ, ‘अफेक्शनÓ, ‘धूप की पत्तियांÓ, ‘हरा रिबनÓ और ‘कल्चर यकसांÓ (समग्र गजल संग्रह)। अनेक गजल संग्रह अलग-अलग नामों से पाकिस्तान में भी छपे हैं।
पाकिस्तान में कई उपन्यासों के आवरण पर बशीर बद्र के शेर छापे जाते हैं। 1996 में मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी ने उन्हें अखिल भारतीय मीर तकी मीर पुरस्कार दिया। 1999 में पद्मश्री मिला और इसी वर्ष ‘आसÓ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार।
उर्दू के मकबूल शायर डॉ. बशीर बद्र शायरी की भाषा में क्रांतिकारी बदलाव के लिए जाने जाते हैं। इनकी शायरी में उर्दू के अलावा अन्य भाषाओं के शब्द भी सहज रूप से आते हैं। यही नहीं उन्होंने किताबों के नाम तक अंगरेजी में रखे हैं।
डॉ बशीर बद्र की रचनाएं
ये चिरा$ग बेन$जर हैं, ये सितारा बे$जुबां है।
अभी तुझसे मिलता जुलता कोई दूसरा कहां है॥
वही शख्स जिसपे अपने दिला-जां निसार कर दूं।
वो अगर $खफा नहीं है, तो $जरूर बदगुमां है॥
कभी पाके तुझको खोना कभी खोके तुझको पाना।
ये जनम जनम का रिश्ता, तिरे-मिरे दरमियां है॥
मिरे साथ चलने वाले, तुझे क्या मिला स$फर में।
वही दुख भरी $जमीं है, वही $गम का आस्मां है॥
मैं इसी गुमां में बरसों बड़ा मुतमइन रहा हूं।
तिरा जिस्म बेतगैय्युऱ1, मिरा प्यार जाविदां2 है।
इन्हीं रास्तों ने, जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे।
मुझे रोक रोक पूछा तिरा हमस$फर कहां है॥
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मुहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला।
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला॥
घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे।
बहुत तलाश किया, कोई आदमी न मिला॥
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था।
फिर इसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला॥
बहुत अजीब है ये कुर्बतों की दूरी भी।
वो मिरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला॥
$$खुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने।
बस एक शख़्स को मांगा, मुझे वो ही न मिला।
शब्दार्थ : 1-संतुष्टï, 2-बिना बदले, 3- अमर