माजिद जायसी का पूरा नाम डॉ. अब्दुल माजिद खान है। उनके पिता का नाम मरहूम इमामुद्दीन खान है। उनका जन्म सन्ï1936 मेें जायस जिला-रायबरेली उ.प्र. में हुआ। उन्होंने कानपुर में रहते हुए शैक्षणिक कार्य किया और मुस्लिम जुबली गल्र्स इंटर कॉलेज कानुपर से रिटायर हुए। उन्होंने एम.ए., पी.एचडी. की शिक्षा प्राप्त की है। वे हाफि$ज और आलिम भी हैं। उनकी प्रकाशित रचनाएं हैं- नूर-ओ-निकहत, तूर-ओ-जुल्मत, गुले राना, शहरे आरज़ू। उनको जिगर अवार्ड, जिगर अकादमी लखनऊ, कमर अवार्ड, रशीद कमर अकादमी लखनऊ, जायसी सम्मान, रायबरेली, उर्दू अकादमी लखनऊ से पुरस्कृत, शेरी भोपाली अवार्ड, शेरी अकादमी, भोपाल से नवाजा जा चुका है।
उन्होंने पाकिस्तान, बंग्लादेश एवं सऊदी अरब के आलमी मुशायरों में शिर्कत की है। वे वर्तमान में कानपुर में निवासरत हैं। उनकी शायरी मेयारी और पुरकशिश है। माजिद जायसी की शायरी उस मानूस फज़ा की शायरी है जो उर्दू शायरी पर छाई हुई है। उनकी शायरी में अगर एक तरफ रंगे-अफ्सां जज़्बात की आमे$िजश है या आरजुओं और हसरतों का असर है तो दूसरी तरफ $िजन्दगी और उसके अलमिया की हल्का सा रंग भी नजर आता है।
डॉ. माजिद जायसी की रचनाएं
कौन तूफाने हवादिस से निकाले मुझको।
चल दिए मोड़ के मुंह चाहने वाले मुझको॥
इब्रत अंगेज हुआ है गमे जानां का सुलूक।
कर दिया गर्दिशे-दौरां के हवाले मुझको॥
डगमगाते हैं कदम राहे-मोहब्बत में मेरे।
है यही वक़्त कोई आ के संभाले मुझको॥
मैं कि जर्रा हूं किसी पांव से दब जाऊंगा।
दीदावर कोई जो गुजरे तो उठा ले मुझको॥
इससे पहले के मुझे बार समझ ले दुनिया।
मेरे माबूद तू दुनिया से उठा ले मुझको॥
नग्मा-ओ-साज की झंकार में खोने वाले।
मैं तेरा रा$ज हूं सीने में छुपाले मुझको॥
कहीं सदियों मे बदल न जाएं लम्हें माजिद।
गौहरे-वक़्त हूं मैं कोई चुरा ले मुझको॥
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ला के मौजों ने इसे रेत पे डाला होगा।
हो न हो ये भी कोई डूबने वाला होगा॥
और उठाए हुए फिरती हैं ये मौजें जिसको।
अपने घर से उसे दरिया ने निकाला होगा॥
खिड़कियां खोल दी कमरे की बड़ी भूल हुई।
हम ये समझे थे कि बाहर तो उजाला होगा॥
आसमां पर जो तड़पता नजर आया था हमें।
उस उजाले को अंधेरों ने संभाला होगा॥
और वो ज़हर जो सुकरात ने हंस-हंस के पिया।
उसको सुकरात ने खुद जाम में ढाला होगा॥
इक खबर अपने बुजुर्गों से सुनी है हमने।
ये हिमाला भी कभी रूई का गाला होगा॥
संगदिल सख्त जिगर पूछें तो हमसे माजिद।
हमको मालूम है क्या हश्रे हिमाला होगा॥