तम्बाखू और तम्बाखूयुक्त गुटकों से जनित बीमारियां आज चिकित्सा जगत को उद्धेलित कर रही हैं। तम्बाखू का सतत् प्रयोग लोगों को कैंसर, हार्ट-अटैक, लकवा आदि जानलेवा बीमारियों का शिकार बना देता है। भारत में तम्बाखू जनित बीमारियों में लगातार चिन्ताजनक वृद्धि देखी जा रही है। आज भारत तम्बाखू खपत करने वाला चीन के बाद दूसरा देश है। तम्बाखू के उपयोग का दुष्परिणाम केवल व्यक्ति के स्वास्थ्य पर ही नहीं पड़ता बल्कि उसकी श्रम क्षमता कम हो जाती है और यह राष्ट्रीय नुकसान है।
पूरी दुनिया में विभिन्न शोधों से यह सिद्ध हो गया है कि तम्बाखू जैसा हानिकारक पदार्थ कोई नहीं है। आज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि हम तम्बाखू और तम्बाखू जनित गुटखों के उपयोग को हतोत्साहित करने के लिए जनजागरूकता बढ़ायें। इस पर एक बहस यह भी होती है कि तम्बाखू और गुटखों के उत्पादन तथा विपणन में हजारों लोगों को रोजगार मिलता है। निश्चय ही रोजगार के इन अवसरों के विकल्प खोजना होंगे लेकिन देश के प्रत्येक नागरिक का स्वास्थ्य सबसे बड़ी जरूरत है। हेल्थ इज वेल्थ। राष्ट्र की इस वेल्थ को बचाना है तो तम्बाखू और गुटखा को गुडबाय कहना होगा।
मध्यप्रदेश में तम्बाखूसेवन के मुख्य साधन बीड़ी, गुड़ाकू, जरदा, खैनी, गुटखा, चिलम, हुक्का एवं नसवार हैं। इनमें सर्वाधिक लोकप्रिय गुटखा, बीड़ी एवं गुड़ाकू हैं। बीड़ी-सिगरेट ने लोकप्रिय होने में सौ वर्ष से अधिक लिए किंतु गुटखों की लोकप्रियता का ग्राफ गत 15-20 वर्षों में बहुत ऊँचा चढ़ गया। कारण था गुटखा व्यापार द्वारा अत्याधुनिक पैकेजिंग, मार्केटिंग एवं अत्यंत खर्चीली विज्ञापन नीतियों का प्रयोग। 50 पैसे व 1 रूपये के छोटे पाऊचों में उपलब्धता ने गुटखों को गरीब से गरीब, श्रमजीवी तबके की पहुँच के भीतर ला दिया। फल यह हुआ कि तम्बाखू गुटखों की महामारी ने सबसे अधिक नुकसान समाज के निर्धन और कमजोर तबकों को पहुँचाया। साधारणत: अशिक्षित और तम्बाखू के दुष्प्रभावों से अनभिज्ञ गरीब लोगों को इसके दुष्परिणाम सबसे ज्यादा भुगतने पड़ते हैं।
गुटखा, जरदा एवं पान मसालों का सेवन मुँह की बीमारी – सबम्यूकस फाइब्राोसिस को जन्म देता है। इस बीमारी में मुँह का खुलना क्रमश: कम होता चला जाता है तथा वह भोजन करने वाला मुँह विकलांग व्यक्ति बन सकता है, जो कैंसर की पूर्वावस्था है। सबम्यूकस फाइब्राोसिस 20ऽ लोगों में कैंसर में परिवर्तित हो सकती है। तम्बाखू-गुटखा सेवन को हतोत्साहित करने के लिए इसके पीछे के रोजगार के अवसरों के वैकल्पिक साधन जुटाने होंगे। हजारों लोग तम्बाखू की खेती, तेन्दू पत्तों के संग्रहण, बीड़ी बनाने, गुटखों के थोक व खेरची व्यापार में अपनी आजीविका पा रहे हैं। इस कारण से तम्बाखू प्रयोग एवं व्यापार पर महाराष्ट्र के समान प्रतिबंध लगाना अत्यंत एवं अतिआवश्यक है।
वैज्ञानिक अनुमानों के अनुसार 2020 में दुनिया में एक करोड़ लोग तम्बाखू जन्य बीमारियों से मरेगें। इनमें से आधे केवल भारत के निवासी होंगे। इन्ही भयावह वास्तविकताओं के कारण ही वि·ा स्वास्थ्य संगठन तम्बाखू को बीमारियों एवं अकाल मृत्यु का सबसे बड़ा किंतु रोका जा सकने वाला कारण माना है।
मध्यप्रदेश में तम्बाखू और गुटखा के उपयोग को निरूत्साहित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। प्रशासकीय एवं गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्थाओं जिनमें इन्दौर का संभागीय एवं जिला प्रशासन, चिकित्सा शिक्षा मंत्रालय, शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय इन्दौर, डेन्टल एसोसिएशन म.प्र. की इन्दौर, भोपाल एवं ग्वालियर इकाईयाँ, म.प्र. वॉलेन्ट्री हेल्थ एसोसिएशन आदि ने अनुकरणीय कार्य किया है। तम्बाखू के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूकता के इनके अनूठे एवं कल्पनाशील प्रयासों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहना भी प्राप्त हुई है। मध्यप्रदेश की शासकीय डायरी एवं (छोटे) केलेन्डर्स में तम्बाखू के दुष्प्रभावों के संकलन को अमेरिका कैंसर सोसाइटी तथा इन्दौर जिला प्रशासन द्वारा इस सम्बन्ध में निकाली गई झांकियों को हेलीसिंकी की वि·ा तम्बाखू सम्मेलन में व्यापक सराहना मिली है।
तम्बाखू के अस्वास्थ्यकर-अज्ञान मूलक एवं असामाजिक रूप को उद्घाटित, प्रकाशित करने हेतु प्रदेश में प्रभावी जनजागरण कार्यक्रम हाथ में लिया जा रहा है। इसमें तम्बाखू निषेध कानूनों के पालन में अधिकाधिक जनभागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। इसका प्रारंभ सिंहस्थ के अवसर पर उज्जैन के पुलिस प्रशासन, स्टेट बैंक ऑफ इन्दौर एवं शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय इन्दौर, म.प्र. वालेन्ट्री हेल्थ एसोसिएशन इंडियन डेन्टल एवं मेडिकल एसोसिएशन, म.प्र. कैंसर सोसायटी आदि द्वारा चलाए गए वृहद तम्बाखू विरोधी जनजागरण अभियान को सिंहस्थ में पधारे साधु-संतों से प्राप्त वीडियो संदेशों-आशीर्वचनों से प्रारंभ किया जा चुका है।
तम्बाखू-गुटखों के उपयोग के विरूद्ध जनजागरण कार्यक्रम में प्रचार माध्यमों का प्रभावी योगदान हो सकता है। संगठित कर्मचारी वर्ग को पुरस्कार/प्रताड़ना के सिद्धांत पर तम्बाखू छोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाय तथा बच्चों को तम्बाखू से दूर रखा जाय। यह सब अविलंब युद्ध स्तर पर शुरू किया जाना चाहिये। जागरूकता अभियान न केवल लोगों को तम्बाखू प्रयोग छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करेगा, बल्कि साथ-साथ तम्बाखू उद्योग से जुडे़ लोगों को भी अन्य व्यवसाय अपनाने के लिए अवसर प्रदान करेगा। इस अभियान के बाद तम्बाखू के प्रति जन साधारण का सोच बदलेगा तथा लोग तम्बाखू विरोधी प्रतिबंधों के पालन के लिए मानसिक एवं आर्थिक रूप से अधिक तैयार होंगे। मध्यप्रदेश में तम्बाखू नियंत्रण कानून को लागू करने का तथा तम्बाखू मुक्त समाज के निर्माण की मुख्य तकनीक व मूलमंत्र होगा ”जन भागीदारी एवं जन सहयोग”। प्रदेश के तम्बाखू नियंत्रण अभियान में नगर सुरक्षा समितियाँ, एन.एस.एस., एन.सी.सी., स्काउट, मोहल्ला सुधार समितियाँ एवं सभी सक्रिय महिला एवं युवा संगठनों का सक्रिय सहयोग सुनिश्चित किया जा रहा है।
स्पष्ट है कि किसी भी रूप में तम्बाखू का सेवन करना आत्महत्या के बराबर है। इसके प्रति जागरूकता ही उपाय है। – रवि उपाध्याय