(दसवीं किश्त)
तायफ में तब्लीग
तायफ एक बडा हरा-भरा इलाका था। पानी, साया, खेतियां बाग, कुछ ठंडी आब व हवा, लोग बडे खुशहाल थे और दुनियापरस्ती में बुरी तरह मगन। इंसान एक बार धन-दौलत से खुशहाल हो जाए, तो फिर खुदा को भुला देना और अख्लाकी पस्ती का शिकार हो जाना कुछ मुश्किल नहीं । यही हाल तायफ के वासियों का था।
मक्का वालों में तो फिर मजहबी रूख और अख्लाकी रख-रखाव पाया जाता था, पर तायफ वाले तो पूरी तरह उजड्ड और बे-ढंगे लोग थे और फिर सूद के चलन ने अच्छे इंसानी एहसास भी खत्म कर दिया था।
आप तायफ पहुंचे तो पहले कबीला सकीफ के सरदारों से मुलाकात की। ये तीन भाई थे-अब्द या लैल, मसऊद और हबीब। इन में से एक के घर में कुरैश (बनी जुम्ह) की एक औरत थी। इस वहज से एक तरह की लिहाजदारी की उम्मीद की जा सकती थी। हुजूर सल्ल. उनके पास जा बैठे। उनको बडे अच्छे ढंग से अल्लाह का पैगाम सुनाया, अपनी दावत रखी और उन्हें हक के मामले में हिमायत करने को कहा। अब जवाब सुनिये, जो तीनों की तरफ से मिलता है-
एक बोला, अगर वाकई खुदा ने ही तुम को भेजा है, तो बस फिर वह काबे का गिलाफ नोचवाना चाहता है।
दूसरा बोला, अरे! क्या खुदा को तुम्हारे अलावा रिसालत के लिए कोई और मुनासिब आदमी न मिल सका।
तीसरे ने कहा, खुदा की कसम! मैं तुझ से बात भी नहीं करूंगा, क्योंकि अगर तू अपने कहने के मुताबिक वाकई अल्लाह का रसूल है, तो फिर तुझ जैसे आदमी को जवाब देना अदब के सख्त खिलाफ है और अगर तुम ने खुदा पर झूठ गढा है, तो इस काबिल नहीं हो कि तुम से बात की जाए।
इस्लाम की तब्लीग
जहर में बुझे हुए तीर थे जो आप के सीने में घुसा दिए गए थे। आपने अपने दिल पर ये सारे जख्म सह लिए और उनके सामने आखिरी बात यह रखी कि तुम अपनी ये बातें अपने ही तक रखो और कम से कम दूसरे लोगों के ठोकर खाने की वजह न बनो।
मगर उन्होंने अपने यहां के घटिया और बाजारी लौंडों और नौकरों और गफलामों को उकसा कर आप के पीछे लगा दिया कि जाओ और इस शख्स को बस्ती से निकाल कर बाहर करो। एक झुंड का झुंड आप के आगे-पीछे हो लिया। ये लोग टखनों की हड्डियांे पर मारते, ताकि ज्यादा तकलीफ पहुंचे हुजूर सल्ल. जब निढाल हो जाते, तो बैठ जाते। लेकिन तायफ के गुंडे आप को बाजू पकड कर उठा देते और फिर टखनों पर पत्थर मारते और तालियां बजा-बजा कर हंसते। खून बराबर बह रहा था और जूतियां अन्दर और बाहर से लुथड गयीं। इस बे-मिसाल तमाशे को देखने के लिए बडी भीड इकट्ठी हो गयी।
गुंडों की टोली इस तरह आप को शहर से निकाल कर एक बाग के अहाते में लायी, जो रबीआ के बेटों उत्बा और शैबा का था। आपने बिल्कुल बे-दम होकर अंगूर की एक बेल से टेक लगा ली।
यही वह मौका था, जब कि दोगाना पढने के बाद आप के होंठों से दर्द भरी दुआ निकली।
इतने में बाग के मालिक भी आ पहुंचे। उन के दिलों में कुछ हम-दर्दी पैदा हुई। उन्होंने अपने ईसाई गुलाम को पुकारा। उस का नाम अदास था, फिर एक तश्तरी में अंगूरों का गुच्छा रख कर भिजवाया।
इसी सफर में जिब्रील आते हैं और इत्तिला देते हैं कि पहाडों का इंचार्ज फरिश्ता आप की खिदमत में हाजिर है। अगर आप इशारा करें तो वह इन पहाडों को आपस में मिला दे जिनके दर्मियान मक्का और तायफ वाकेअ हैं और दोनों शहरों को पीस कर रख दे।
और दूसरी जगहों पर तब्लीग
मक्का वापस आ कर अब नहीं सल्ल. ने ऐसा करना शुरू किया कि मुख्तलिफ कबीलों के पडावों में तशरीफ आता जाता मिल जाता, उसे ईमान और खुदा परस्ती का वाज फरमाते।
इन्हीें दिनों कबीला बनूवन्दा में तश्रीफ ले गये। कबीले के सरदार का नाम मलीह था।
कबीला बनू अब्दुल्लाह के यहां भी पहुंचे। उन्हें फरमाया कि तुम्हारे बाप का नाम अब्दुल्लाह था, तुम भी उसी नाम के (अल्लाह के बन्दे) बन जाओ।
कबीला बनू हनीफा के घरों में तश्रीफ ले गये। उन्होंने सबसे बुरे तरीके से नबी सल्ल. को इन्कार किया।
कबीला बनू आमिर बिन सासआ के पास गये। कबीले के सरदार का नाम बुखैरा बिन फरास था। उसने इस्लाम की दावत सुन कर नबी सल्ल. से पूछा, भला अगर हम तेरी बात मान लें और तू मुखालिफों पर गालिब आ जाए तो क्या यह वायदा करता है कि तेरे बाद यह मामला मुझ से मुताल्लिक होगा? नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया, यह तो खुदा के अख्तियार में है कि वह जिसे चाहेगा, मेरे बाद मुकर्रर करेगा। बुर्खरा बोला, खूब! इस वक्त तो औरों का मुकाबला हम करें और जब तेरा काम बन जाए तो मजे कोई और उडाए। जाओ, हम को तेरे काम से कोई वास्ता नहीं। कबीलों के सफर में हुजूर सल्ल. का साथ देने वाले हजरत अबूबक्र सिद्दीक रजि. थे।
सुवैद बिन सामित का ईमान
इन्हीें दिनों नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को सुवैद बिन सामित मिला। उस का लकब अपनी करीम में कामिल था। नबी सल्ल. ने उस तक इस्लाम की दावत पहुंचायी।
वह बोला ’’शायद आप के पास वही कुछ है, जो मेरे पास भी है।‘‘
नबी सल्ल. ने पूछा, तुम्हारे पास क्या है?
वह बोला, ’लुक्मान की हिकमत!‘
नबी सल्ल. ने फरमाया, ’बयान करो!‘
उस ने कुछ अच्छे-अच्छे शेर सुनाए।
नबी सल्ल. ने फरमाया, यह अच्छा कलाम है, लेकिन मेरे पास कुरआन है, जो इस से कहीं बेहतर है। वह हिदायत भी है और नूर भी।‘‘ इसके बाद नबी सल्ल. ने उस कफरआन की कुछ आयतें सुनायीं। उसे हक समझने में देर न लगी। बिला तकल्लुफ के वह ईमान लाया।
जब यसरिब लौट कर गया, तो खजरज कबीले वालों ने उसे कत्ल कर डाला।