(13वीं किश्त)
हिजरत का हुक्म
उक्बा की दूसरी बैअत के बाद कुरैश के जुल्म व सितम की इंतिहा ने मुसलमानों के लिए मक्का में ठहराना ना-मुम्किन बना दिया था, जिसका अंदाजा करने के लिए नीचे का वाकिआ काफी है।
हिजरत का हुक्म पाते ही जब मुसलमान अपना घर-बार, कुआं-कबीला छोड कर मदीने की तरफ जाने लगे, तो कुरैशियों को यह बात भी खली, उन्होंने रूकावटें पैदा करनी शुरू कर दीं।
हजरत उम्मे सलमा रजि. कहती है कि मेरे शौहर अबू सलमा रजि. ने हिजरत का इरादा किया, मुझको ऊंट पर बिठाया। मेरी गोद में मेरा छोटा बच्चा सलमा था। जब हम चले तो मेरे कबीले के लोगों ने अबू सलमा को आ घेरा और कहा कि तू तो जा सकता है, लेकिन यह नहीं हो सकता कि तू हमारी लडकी को ले जाए। इतने में अबू सलमा रजि. को ले गये। अबू सलमा तन्हां मदीने को चले गये। उम्मे सलमा से शौहर और बच्चा दोनों जुदा हो गये और अबू सलमा ने बीबी और बेटे दानों को छोडकर हिजरत का सवाब हासिल किया।
फिर भी इस किस्म की रूकावटें और आजमाइशों के बावजूद एक-एक, दो-दो करके लगभग सभी मुसलमान हिजरत कर गये। मक्का में सिर्फ हजरत मुहम्मद सल्ल., हजरत अबूबक्र रजि. और हजरत अली रजि और उनके घर वाले बाकी रह गये थे। कुरैश ने जब देखा कि मुसलमान एक-एक करके सब निकल गए और मदीने में एक अच्छी भली तायदाद, मुसलमानो की जमा हो गयी है, जिस की ताकत और खतरे से इंकार नहीं किया जा सकता, तो उन को अपने मुस्तक्बिल (भविष्य) की चिन्ता हुई। उन्हें साफ मालूम होने लगा कि अगर इस्लाम की जड न काटी गयी तो हमारी अपनी जिन्दगी और इज्जत खतरे में है, इस लिए मुखालिफों और दुश्मनों ने फैसला किया कि हुजूर सल्ल. अब अकेले रह गये हैं, इसलिए अब उनको कत्ल कर दिया जाए (नअूजुबिल्लाह)। उन्होंने तै किया कि हर-हर कबीले से एक-एक योद्ध लिया जाए। ये तमाम लोग एक ही वक्त में चारांे तरफ से मुहम्मद (सल्लाहु अलैहि व सल्लम) को घेर कर उन पर एक साथ वार करें, इस तरह मुहम्मद (सल्ल.) के कत्ल की जिम्मेदारी किसी एक कबीले पर नहीं, सब पर आ जाएगी।
इधर दुश्मन यह फैसला कर रहे थे, उधर अल्लाह दूसरा फैसला कर रहा था। उसने आप को हिजरत का हुक्म दे दिया, चुनांचे रात में, जब कि आप का मकान घेर लिया गया था, आप अमानतों को हजरत अली रजि. के सुपुर्द कर के हिजरत के लिए चल पडे। वहां से निकल कर आप हजरत अबूबक्र रजि. के मकान पर तशरीफ लाए, फिर दोनों साथ ही रवाना हुए और सौर की गुफा में जा कर छिप रहे।
हजरत अबूबक्र रजि. ने अपने बेटे अब्दुल्लाह रजि. की पहले ही हिदायत कर रखा थी कि दुश्मनों के तमाम हालात और दिन भर की तमाम कार्रवाईयों की रात में आकर बता दिया करें। इसी तरह अपने गफलाम आमिर फूहैरा को हुक्म दे दिया था कि बकरियों को रेवड दिन भर इधर-उधर चराते फिरें और रात के वक्त उस रेवड को सौर की गुफा तक चराते हुए ले आया करें। अस्मा रजि. बिन्त अबी बक्र के सुपुर्द यह खिदमत थी कि खाना तैयार कर के रात को एहतियात के साथ गुफा वालों के पास पहुंचा दिया करें।
मक्के वालों ने बहुत कोशिश की, इनाम का लालच भी दिया, लेकिन वे हुजूर सल्ल. की पकड पाने में नाकाम रहे। जब वे थक-हार गये तो अब्दुल्लाह बिन उरैकत वायदे के मुताबिक ऊंटनियां लेकर पहुंचे और इन दोनांे को बिठा कर मदीने की तरफ चल पडे।
इसी बीच सुराक बिन मालिक बिन जासम पीछा करता हुआ जा पहुंचा। करीब था कि आप के पास पहुंच जाता, उस के घोडे के ठोकर खायी और वह नीचे गिर पडा। संभला, उठा, सवार हुआ और चल दिया जब बहुत करीब पहुंच गया तो घोडे ने फिर ठोकर खायी, इस बार घोडे के अगले पांव घुटनों तक धंस गए थे, सुराका फिर गिरा, संभला, उठा, सवार हुआ और हिम्मत कर के आगे बढना चाहा, लेकिन हिम्मत न पडी। फिर उस ने प्यारे नबी सल्ल. से जान की अमान मांगी। अमान दी गयी। सुराका आगे बढा और अर्ज किया, अब मैं हर एक हमलावर को पीछे ही रोकता रहूंगा और फिर उन्होंने ऐसा ही किया।