तारीखे इस्लाम

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यहूदियों की शरारत
(इक्कीसवीं किश्त)
यहूदियों में काब बिन अशरफ मशहूर शायर था। उसने बद्र की लडाई के बाद ऐसे शेर लिखे कि जिनसे मुसलमानों के खिलाफ मक्का में आग लग गयी। उस जमाने में शायरों का बडा असर था। उसने बद्र की लडाई में कत्ल होने वाले कुरैश के ऐसे दर्द भरे मर्सिए लिखे और फिर उन्हें जाकर मक्के में सुनाया कि जो सुनता था, सिर पीटता था और रोता था। फिर मदीने में आंहजरत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बुराई में शेर कहे और लोगों को तरह-तरह से आपके खिलाफ उभारा। एक बार तो एक दावत के बहाने बुला कर आंहजरत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को कत्ल कर देने की भी साजिश की। इन हालात को देखते हुए आपने सहाबियों से मश्विरा किया कि क्या होना चाहिए। चुनांचे आपकी मर्जी से हजरत मुहम्मद बिन मुस्लिमा ने काब बिन अशरफ को रबीउल अव्वल सन0 3 हि0 में कत्ल कर दिया।
दुश्मनों की चालें
अन्दर के दुश्मनों से निबटने के बाद हुजूर सल्ल. की मुश्किलें जरूर आसान हो गयीं थीं, लेकिन यहूदियों ने बाहर जा कर और अरब के मुश्रिकों, खास तौर से कुरैश से सांठ-गांठ करके मुसलमानों का खात्मा कर डालने के उपाय सोचने लगे और तमाम कबीलों ने मिल कर मदीने पर हमला करने की तैयारियां शुरू कर दीं।
1. अबू सुफियान उहुद के मैदान में किए गये एलान के मुताबिक दौ हजार प्यादों और 50 सवारों के साथ एक टुकडी लेकर हमले के लिए निकला। हुजूर सल्ल0 भी इत्तिला पाते ही 1500 प्यादों और दस सवारों के साथ बद्र पहुंचे। आठ दिन वहीं कैम्प डाल कर कुरैश की फौज का इंतिजार किया। मगर अबू सुफियान मक्का से एक मंजिल दूरी पर-जहरान या अस्फान नामी जगह तक आ कर वापस चला गया कि सूखे की वजह से यह साल लडाई के लिए मुनासिब नहीं। आखिर हुजूर सल्ल. भी अबू सुफियान की वापसी की इत्तिला पाकर मदीना तश्रीफ ले आए।
2. मुहर्रूम सन्. 4 हि. में बनी गत्फान के कुछ कबीलों, बनी महारिब और बनी सालबा की जंगी तैयारियों की इत्तिला आयी। हुजूर सल्ल. चार सौ रजाकरों की जमाअत लेकर निकले। मुकाबले के लिए, साथ में वहां एक फौज मौजूद थी, लेकिन अमली तौर पर लडाई न हो सकी।
उसी जगह का वाकिआ है कि गौरस नामी मुश्रिक अपनी कौम के सामने यह इरादा कर के निकला कि मैं मुहम्मद ’सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम’ को कत्ल करके रहूंगा। वह आया तो हुजूर सल्ल. एक पेड के साए में तन्हा आराम फरमा रहे थे, आपकी तलवार पेड से लटक रही थी। गौरस ने वही तलवार तान कर ललकारा कि बताओ अब कौन तुम्हें बचा सकता है। हुजूर सल्ल. ने बे-खौफ होकर कहा कि ‘खुदा बचाने वाला है।’
3. दौमतुल जुंदल तिजारती कारवानों का जंक्शन भी था और यहां ईसाइयों और यहूदियों के मजहबी प्रचारक और सियासी हरकारे भी काम करते थे। फिर बनू नजीर के खैबर वगैरह जाने की वजह से उन की मदीना के खिलाफ साजिशी चालें चलने का भी यह अड्डा बनने लगा था, खास तौर से यह वाकिआ बडी सियासी अहमियत रखता है कि मक्का के कुरैश और खैबर के यहूदियों की सांठ-गांठ के तहत ईसाई सरदार उकैदर ने मदीना के लिए गल्ला लाने वाले कारवानों को तंग करना शुरू किया। हुजूर सल्ल0 तक इत्तिला पहंुची कि दौमतुल जुन्दल में दुश्मन अपनी ताकत जमा कर के मदीना पर हमलावर होना चाहता है। रबीउल अव्वल सन्. 5 हि0 में आपने एक हजार की जमाअत लेकर फौरन कदम आगे बढाया। दौमतुल जुन्दल में जब मुस्लिम फौज की रवानगी की इत्तिला मिली तो दुश्मन बिखर गये। हुजूर सल्ल0 ने आगे बढने की जरूरत न समझी।
4. अब बनू मुस्तलक के बारे में खबर आयी कि वे हमले की तैयारियां कर रहे हैं। बुरैदा अस्लमी को भेजकर तहकीकात करायी गयी, खबर सही निकली। हुजूर सल्ल. ने 3 शाबान सन् 05 हि. को फौजी अक्दाम किया। निहायत तेज रफतारी से मरीसीअ ‘पानी का चश्मा’ जा पहंुचे। हारिस बिन अबी जुरार, बनी मुस्तलिक का सरदार लडने पर तैयार था। हुजूर सल्ल. के यकायक जा पहुंचने से उसके फौजी बिखर गए और सिर्फ उसी कबीले के लोग रह गए।पहले ही हल्ले में हारिस के जत्थे की हार हो गयी। लूट के माल में बहुत से मवेशी हाथ आए और सारी तायदाद जंगी कैदी बन गयी। गिरफतार होने वालों में ‘हजरत’ जुवैरिया भी थीं। उन्होंने इस्लाम कुबूल कर लिया। हुजूर सल्ल0 ने उनकी रजामंदी से उन्हें अपने निकाह में लिया। इसका नतीजा यह हुआ कि मुसलमानों ने तमाम कैदियों को यह कह कर आजाद कर दिया कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 के कराबतदारों को हम अब कैद में नहीं रख सकते। (क्रमशः)