तारीखे इस्लाम

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(बाईसवीं किश्त)
अहजाब की लडाई
उहूद की लडाई में अगरचे कुरैश को इत्तिफाक से एक मौका मिल गया था कि वे मुसलमानों को अपना जोर दिखा देते और कहने को उन्होंने मुसलमानों से बद्र की हार का बदला भी ले लिया था, लेकिन वे खूब समझते थे कि वे उहुद से जीत कर नहीं लौटे हैं और यह भी उन्हें अंदाजा हो गया था कि अब वे अपनी मौजूदा ताकत के साथ मदीने की मुस्लिम स्टेट को हराने के काबिल नहीं है। वे एक साल में और ज्यादा तैयारी के बाद लडने का पक्का वायदा करके उहुद से विदा हुए थे और इसका ऐलान भी अबू सुफियान ने कर दिया था, मगर मक्का से फौज लेकर निकलने के बाद वह हालात को अपने मुनासिब न देख कर वापस लौट गया।
वक्त गुजरने के साथ-साथ अब कुरैश के लिए मुम्किन भी न था कि अकेले मदीना को हराने के लिए निकलें, लेकिन मुसलमानों के दूसरे दुश्मनों और यहूदियों वगैरह ने कुरैश को मिलाकर और एक जुट होकर मदीना को हराने की स्कीम बना ली।
इसी तरह जीकादा सन् 5 हि. में दस हजार की एक भारी भरकम फौज, जिसमें कुरैश, बुतपरस्त, यहूदी वगैरह सभी शामिल थे, मदीना की ओर बढी।
हुजूर सल्ल. ने इन तैयारियों की इत्तिला दौमतुल जुन्दल के सफर ही में मिल गयी थी और आप उसी के डर से जल्दी वापस भी आ गये थे। मश्विरा हुआ, तज्वीज मदीना ही में रह कर मुकाबला करने की हुई और शहर की हिफाजत के लिए हजरत सलमान फारसी का यह मश्विरा कुबूल किया गया कि ईरान के तरीके पर खन्दक खोदी जाए।
खंदक की खुदाई के लिये वही तीन हजार मुस्लिम रजाकार मजदूर बने, जिन्हें फौजियों की जिम्मेदारी भी अदा करनी थी। दस-दस आदमियों की टोलियां बनायी गयीं और हर टोली को 20 गज का टुकडा सौंपा गया। अन्दाज के मुताबिक खंदक की चैडाई दस गज रखी गयी, इसी तरह उसकी गहराई भी 5 गज से कम न थी। कुल मिलाकर इस की लंबाई साढे तीन मील थी।
यह वाकिया दुनिया का अनोखा वाकिआ है कि तीन हफ्ते में इतना बडा काम मुस्लिम रजाकारों ने मुकम्मल कर लिया, लगभग 3 लाख 8 हजार घन गज मिट्टी को खोदना और उसे साफ करना कोई खेल न था। हर आदमी पर एक सौ से ज्यादा घन गज मिट्टी आती है, फिर सामान की मौजूदगी का हाल यह था कि खुदाई के कुछ हथियार बनू कुरैजा से समझौते के तहत उधार लिए गए थे और टोकरियां न होने की वजह से हजरत अबूबक्र व उमर रजि. जैसे बुजुर्ग लोग चादरों और दामनों में मिट्टी भर-भर कर उठाते थे।
खन्दक खोदने, पत्थर तोडने, मिट्टी हटाने में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुद भी सहाबा को मदद देते थे। एक बार तो एक चट्टान एक जगह आ गयी। वह किसी तरह टूटने में न आती थी। अल्लाह के रसूल सल्ल. तश्रीफ लाए और एक ऐसी कुदाल मारी कि सारी चट्टान चूरा-चूरा हो गयी।
इधर खन्दक मुकम्मल हुई, उधर शव्वाल सन् 05 हि. में दुश्मन का टिड्डी दल फौजें लिए आ पहुंचा। ये दुश्मन अगरचे बहुत बडी तादाद में थे, लेकिन खंदक देखकर हैरान रह गए। उनके नापाक इरादों पर पानी फिरता नजर आया, इसलिए कि उनके घोडे और ऊंट खन्दक के बाहरी किनारे तक ही पहुंच सकते थे। इक्का-दुक्का घुडसवारों ने जोश में आकर खन्दक पार करने की कोशिश की, मगर वे उसके अन्दर गिर कर खत्म हो गये। कमजोर हिस्सों में वे धावा बोलने की कोशिश करते, मगर मुसलमान फौजी चैकियां गफलत से काम लिए बगैर सामने मौजूद होतीं और तीरंदाज दुश्मन का मुंह फेर देते।
मुसलमान थे तो तीन हजार, लेकिन हुजूर सल्ल. ने उन को इस तरह तर्तीब दी थी कि सामने खन्दक थी और पीछे सुलअ पहाड। चैकियों पर निगरानी इतनी सख्त थी कि दुश्मन की एक कोशिश भी कामियाब नहीं हो पा रही थी। इस लडाई में तलवारें अैर नेजे बिल्कुल बेकार थे। बस, दोनों तरफ से कुछ न कुछ तीरंदाजी ही हो पाती। कई दिनों के घेरे से तंग आ कर एक दिन दुश्मन ने बडा जोर दिखाया, कभी यहां से हमला किया, कभी वहां से, मगर कोई नतीजा न निकलता।
घेरे का बहुत दिनों तक रहना मुसलमानों के लिए परेशानी की वजह थी, पर दुश्मन भी अपनी जगह परेशान थे। सलाह-मश्विरे के बाद एक भरपूर हमला करने के लिये यह तै पाया कि बनू कूरैजा को हूजूर सल्ल. के खिलाफ अहद तोडने पर उभारा जाए और वे अन्दर से हमलावर हों। अबू सुफियान के कहने पर हुई बिन अख्तव ने यह मिशन अपने जिम्मे लिया। वह बनी कुरैजा के सरदार काब बिन उसैद के पास पहुंचा, मक्सद बयान किया। उसने पहले तो इंकार किया कि मैंने हमेशा मुहम्मद को वायदे का सच्चा पाया है, उनसे किया गया अह्द तोडना बडी बे मुरव्वती है, मगर इब्ने अख्तब ने पूरे जोर से बात दोहरायी और उस पर ऐसा जादू चलाया कि उस से अपनी बात मनवा ली।
यह खबर मुसलमानों तक पहुंची, हुजूर सल्ल. ने तह्कीक करायी, बात यही निकली, तो हुजूर सल्ल. की जुबान से बस इतना निकला अल्लाहु अकबर, हस्बुनल्लाहु व नेमल वकील0
मोर्चे का फैलाव, घेरे का बहुत दिन तक बाकी रहना, तायदाद की कमी बे-सर व सामानी की इंतिहा, उपवास की हालत, उस पर रात का जागना, मुनाफिकों का बहाने बना-बना कर अलग हो जाना, फिर इस दर्जें की जान मारी कि नमाजें कजा हो-हो गयीं। यह कुछ मामूली दर्जे का इम्तिहान न था, इस पर जब शहर के अन्दर भी गद्दारी की बारूदी सुरंगें बिछ गयीं और बनी कुरैजा की तरफ से बगली छुरा भोंकने का खतरा सर पर आ गया, तो आज हम अन्दाजा नहीं कर सकते कि तीन हजार मुसलमान जां निसारों के जज्बात किस रंग के होंगे।
दूसरी तरफ घेरा जितना लम्बा होता गया, हमला करने वालों की हिम्मतें पस्त होती गयीं। दस हजार आदमियों के खाने-पीने का इन्तिजाम करना कोई आसान काम न था। फिर इंतिहाई सर्दीं। इसी बीच एक बार ऐसी सख्त तूफानी हवा चली कि काफिरों के डेरे उखड गये, सारी फौज तितर-बितर हो गयी। हवा क्या थी, खुदा का अजाब था और वाकई यह तूफान अल्लाह तआला ने मुसलमानों के लिए रहमत और काफिरों के लिए अजाब बना कर ही भेजा था।
बनू कुरैजा का अंजाम
अहजाब की लडाई से इत्मीनान हो जाने के बाद नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बनू कुरैजा को बुला भेजा कि वे सामने आकर अपनी उस पालिसी को साफ करें जो उन्होंने अह्जाब की लडाई के मौंके पर मुसलमानों की जड काटने के लिए बगावत की राह अपनायी थी। बनू कुरैजा ने तो अपने अमल से यह साबित ही कर दिया था कि वे मुसलमानों के हक में उस खुले हुए दुश्मन से कहीं ज्यादा खतरनाक हैं, जो खुल कर मुखालफत करता है। (क्रमशः)