तारीखे इस्लाम

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(पच्चीसवीं किश्त)
खैबर की लडाई
3. तीसरा दीन की दावत विदेशों में भी फैलाने का मौका इसी समझौते के बाद ही हासिल हुआ (इस की तफ्सील आगे आ रही है)।
4. चैथा फायदा यह पहुंचा कि मुसलमान खैबर के यहूदियों की दुश्मनी भरी कार्रवाई का मुंह बंद करने के लिए कुरैश की तरफ से बिल्कुल बे फिक्र हो गये। चुनांचे हुदैदिया के समझौते के बाद फौरन ही इस्लामी हुकूमत की तवज्जोह इस तरफ गयी।
5. पांचवां फायदा यह हासिल हुआ कि अरब के कबीलों को आजादी हासिल हो गयी कि उनमें से, जो भी चाहे, मदीना की हुकूमत का साथ दे। यह ऐसा दरवाजा खुला कि जिसमें से गुजर कर नये-नये लोग मुसलमानों को यह मदद पहुंचा सकते थे और कुरैश कोई रोक-टोक नहीं कर सकते थे, चुनांचे बनू खुजाआ ने तो ठीक उन्हीें दिनों इस्लामी हुकूमत से ताल्लुक जोड लिया।
6. और छठा नतीजा तो यह निकलना ही था कि एक ही साल बाद बडे ठाठ से मुसलमान हरमे काबा की जियारत के लिए मक्का में दाखिल हुए और उस वक्त कुरआन की पेशीनगोई के मुताबिक ’ला तखाफून‘ का माहौल बना हुआ था।
7. फिर यह कि समझौते की धारा 5 खुद कुरैश के गले का कांटा बन गयी। अबू जुन्दल और अबू बसीर वगैरह ने अपनी ताकत बना कर दुश्मनों को परेशान करना शुरू कर दिया।
यही सब वजहें थीं जिससे इस समझौते को ’खुली जीत‘ कहा जाता है।
खैबर की लडाई
खैबर मदीना से शाम की तरफ तीन मंजिल पर एक जगह का नाम है। यह यहूदियों की खालिस आबादी का कस्बा था। आबादी के चारों तरफ मजबूत किले बनाए हुए थे।
नबी सल्ल. ने इस लडाई में सिर्फ उन्हीें साथियों को साथ चलने की इजाजत दी थी जो बैअतुरिजवान में शरीक हुए थे। इन की तायदाद चैदह सौ थी, जिन में से दो सौ घुडसवार थे।
सामने की फौज के सरदार उकाशा बिन मिसन असदी रजियल्लाह अन्हु और दाएं बाजू के सरदार हजरत उमन बिन खत्ताब रजि. और बाएं बाजू के सरदार कोई और सहाबी थी।
बीस सहाबी औरतें भी फौज में आयी थीं, जो बीमारों और घायलों की खबरगीरी और तीमारदारी के लिए साथ होती थीं।
इस्लामी फौज खैबर के पास रात के वक्त पहुच गयी थीं, लेकिन नबी सल्ल. की आदत यह थी कि रात को लडाई शुरू न करते थे और न कभी शबखूं डाला करते, इसलिए इस्लामी फौज ने मैदान में डेरे डाल दिए। लडाई के लिए इस जगह का चुनाव बहादुर सहाबी हुबाब बिन मुंजिर रजि. ने किया था। यह मैदान अहले खैबर और बनू गत्फान के बीच पडता था।
इस तद्बीर का फायदा यह हुआ कि जब बनू गत्फान खैबर के यहूदियों की मदद को निकले, उन्हीं ने इस्लामी फौज को आगे बढने में बहुत बडी रूकावट पाया और इसलिए चुप-चाप अपने घरों को वापस चले गये।
हजरत उस्मान बिन अफ्फान रजि. इस कैम्प के जिम्मेदार अफसर थे।
महमूद बिन मुस्लिमा रजियल्लाहु तआला अन्हु को हमलावर फौज का सरदार बनाया गया और उन्होंने किला नुतान पर लडाई की शुरूआत कर दी। नबी सल्ल. खुद भी हमलावर फौज में शामिल हुए थे। बाकी फौजी कैम्प हजरत उस्मान बिन अफ्फान रजि. की निगरानी में था।
महमूद बिन मुस्लिमा रजि. पांच दिन तक बराबर हमला करते रहे, लेकिन किला फत्ह न हुआ। पांचवें या छठे दिन का जिक्र है कि महमूद रजि. लडाई के मैदान की गर्मी से जरा सुस्ताने के लिए बाएं किले की दीवार के साए में लेट गये।
कनाना बिन हकीक यहूदी ने उन्हें गाफिल देख कर एक पत्थर उन के सिर पर दे मारा, जिस से शहीद हो गये। फौज की कमान मुहम्मद बिन मुस्लिमा रजि. के भाई ने संभाल ली और शाम तक बडी बहादुरी से लडे। मुहम्मद बिन मुस्लिमा की राय हुई कि यहूदियों के नख्लिस्तान को काटा जाए, क्योंकि यह उन लोगों को एक-एक बच्चे के बराबर प्यारा है। इस तद्बीर से किले वालों पर असर डाला जा सकेगा। इस तद्बीर पर अमल शुरू हो गया था कि अबूबक्र रजिल्लाहु तआला अन्हु ने नबी सल्ल. के हुजूर में हाजिर होकर दख्र्वास्त की कि इलाका यकीनन मुसलमानों के हाथ पर फत्ह होने वाला है, फिर हम उसे अपने हाथों क्यों खराब करें। नबी सल्ल. ने इस राय को पसन्द फरमाया और इब्ने मुस्लिमा के पास नख्लिस्तान काटने के बारे में मना करने का हुक्म भेज दिया।
शाम को मुहम्मद बिन मुस्लिमा रजि. ने अपने भाई की मज्लूमाना शहादत का किस्सा खुद ही आकर सल्ल. की खिदमत में आकर अर्ज किया।
नबी सल्ल. ने फरमाया, कल फौज का निशान उस शख्स को दिया जाएगा। (या वह शख्स निशान हाथ में लेगा), जिस से अल्लाह तआला और अल्लाह के रसूल सल्ल. मुहब्बत करते हैं और अल्लाह तआला फत्ह इनायत फरमाएगा।
यह ऐसी तारीफ थी, जिसे सुन कर फौज के बडे-बडे बहादुर अगले दिन की कमान मिलने के आरजूमंद हो गये थे।
उस रात लश्कर की देख-भाल की खिदमत हजरत उमर बिन खत्ताब रजि. के सुपुर्द थी। उन्होंने घूमते हुए एक यहूदी को गिरफ्तार कर लिया और उसी वक्त नबी सल्ल.की खिदमत में लाए। आंहजरत सल्ल. तहज्जुद की नमाज में थे। जब फारिग हुए तो यहूदी से बातें कीं। यहूदी ने कहा कि अगर उसकी औरत व बच्चे को, जो किले के अन्दर है, अमान अता हो, तो वह बहुत से जंगी भेद बता सकता है। यह वायदा उससे कर लिया गया। यहूदी ने बताया कि नुतात के अन्दर दफन कर रहे हैं। मुझे वह जगह मालूम है, जब मुसलमान किला नुतात ले लेंगे, तो मैं वह जगह बता दूंगा, बताया कि किला शन्न के तहखानों में किला तोडने के बहुत से हथियार, तोपें वगैरह मौजूद है। जब मुसलमान किला शन्न फत्ह कर लेंगे, तो मैं वे तहखाने भी बता दूंंगा।
सुबह हुई तो नबी करीम सल्ल. ने हजरत अली मुर्तजा रजि. की याद फरमाया। लोगों ने अर्ज किया कि उनकी आंख आयी हुई है और आंखों में दर्द भी होता रहा है। हजरत अली रजि. आ गये, तो नबी सल्ल. ने लुआबे मुबारक जनाबे मुर्तजा रजि. की आंखों को लगा दिया। उसी वक्त आंखें खुल गयींं, न आंख की लाली बाकी थी और न दर्द की तकलीफ। फिर फरमाया, अली, जाओ, खुदा की राह में जिहाद करो, पहले इस्लाम की दावत दो, बाद में लडाई करो। अली! अगर तुम्हारे हाथ पर एक शख्स भी मुसलमान हो जाए, तो यह काम भारी गनीमतों के हासिल हो जाने से बेहतर होगा। हजरत अली मुर्तजा रजि. के नाअिम किले पर लडाई की पहल की। मुकाबले के लिए किले का मशहूर सरदार मर्हब मैदान में निकला। यह अपने आप को हजार बहादुरों के बराबर कहा करता था। (क्रमशः)