तारीखे इस्लाम

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(33वीं किश्त)
हज+रत अबूबक्र सिद्दीक रजि+.
एक बार हजरत अली कर्रमल्लाहु वज्हहु ने फरमाया कि जो शख्स मुझ को अबूबक्र व उमर रजि. पर फजीलत देगा, मैं उस पर दुर्रे लगाऊंगा।
अता बिन रिवाह रजि. कहते हैं कि बैअते खिलाफत के दूसरे दिन हजरत अबूबक्र रजि. चादरें लिए हुए बाजार को जाते थे। हजरत उमर रजि. ने पूछा आप कहां जा रहे हैं?, फरमाया बाजार। हजरत उमर रजि. ने कहा कि अब आप यह धंधा छोड दें। आप मुसलमानों के अमीर हो गये हैं। आपने फरमाया, फिर मेरे और घर वाले कहां से खाएं? हजरत उमर रजि. ने कहा कि यह काम अबू उबैदा रजि. के सुपुर्द कीजिए, चुनांचे दोनों साहब सिद्दीक रजि. ने कहा कि मेरा और मेरे बाल-बच्चों का खर्चा मुहाजिरों से वसूल कर दिया करो। चुनांचे ऐसा ही किया गया।
यह थे हजरत अबूबक्र रजि. जो हुजूर सल्ल. की वफात के बाद खलीफा बने।
पहले खलीफा
लोग मस्जिद के आंगन में जमा थे। सरकार सल्ल. के कफन दफन से अभी फुर्सत न पायी थी कि एक आदमी खबर लाया कि मदीना वाले खलीफा चुनने की साजिश में लगे हुए हैं।
वक्त नाजुक था, मुसलमानों में फूट का खतरा सच्चे मुसलमानों को चिंता में डाल रहा था, इसलिए कि वे जानते थे कि इस्लाम की नयी दीवारों में अभी दराड पड गयी तो पूरी बनी-बनायी इमारत धडाम से नीचे आ जायेगी। इस तरह मुसलमानों के लिए जरूरी हो गया था कि रसूलुल्लाह का एक जानशीं, बगैर किसी इख्तिलाफ के चुना जाए, इसलिए यह बहुत जरूरी था कि हर मुम्किन कोशिश से इस फित्ने पर काबू पा लिया जाए।
इस्लाम पर जान न्यौछावर करने वालों में से हजरत अबूबक्र सिद्दीक, उमर, और अबू उबैदा बिन जर्राह रजि. वहां जल्द से जल्द पहुंचे जहां लोग जमा थे और काना-फुसियां चल रही थीं। वे कह रहे थे, मदीना का हाकिम हम लोगों में से ही चुना जाना चाहिए। यह बाहर के आये हुए लोगों का हक नहीं है। हमारी तलवारों की वजह से ही इस्लाम ने तरक्की की है। उन्होंन करीब-करीब साद बिन उबादा को चुन लिया था। वह कुछ कहना चाहते थे, लेकिन हजरत अबूबक्र सिद्दीक रजि. ने उन्हें रोका और फरमाया-
’जो कुछ तुम कह रहे थे, बिल्कुल सच और ठीक है, मगर अरब की हालत यह है कि सिवाए कुरैश के लोगों के किसी के पीछे चलना पसंद न करेंगे।‘
हजरत उमर रजि. ने कहा, यह ना-मुमकिन है।
साद बिन उबादा रजि., जिन्हें उस वक्त बुखार आ रहा था, और उसी कमरे में लेटे हुए थे, बोले ’इस तरह मुसलमानों में फूट डालना जुल्म है।‘
बात-चीत बहस में बदल गयी, बहस से झगडे तक नौबत पहुंची। एक आदमी ने तेजी में कहा, इन नये आने वालों का कोई हक नहीं। हमें इनको निकाल देना चाहिए।
करीब था कि लोग आपस ही में गुथ जाते। वक्त की नजाकत देखते हुए, सूझ के धनी हजरत अबूबक्र रजि. आगे बढे और हजरत उमर रजि और हजरत अबू उबैदा रजि. की तरफ इशारा करके कहा, इन दोनों में से एक चुन लो और अपना खलीफा बनाकर बैअत कर लो।
इस पर दोनों ने एक साथ कहा, हरगिज नहीं। सरकार सल्ल. के फरमान के मुताबिक पहले ही से नमाजों की इमामत आपके सुपुर्द है, इसलिए आप हमारे सरदार हैं। अपना हाथ दीजिए कि हम आपकी बैअत करें।
फिर क्या था। देखते- देखते लोगों की भीड ने हजरत अबूबक्र सिद्दीक रजि. के हाथ पर बैअत शुरू कर दी और वह बगैर इख्तिलाफ के खलीफा चुन लिए गये।
अगले दिन सरकार सल्ल. को गुस्ल देकर लोगों ने हजरत आइशा रजि. के हुज्रे में दफन किया। दूसरे दिन हजरत अबूबक्र रजि. मिम्बर पर चढे। मस्जिद में हजारों की भीड मौजूद थी। आप कुछ देर मिम्बर पर बैठे रहे, फिर फरमाया, ऐ लोगों! मैं तुम्हारा हाकिम हूं। मैं तुम से अच्छा नहीं हूं और न इस काबिल हूं। जब मैं इस्लामी शरीअत के मुताबिक सारे
काम करूं और तुम्हारी खिदमत करूं, तो तुम्हारा फर्ज है कि मेरी मदद करो। अगर मैं बाद में सीधे रास्ते से भटक जाऊं तो तुम्हारा फर्ज है कि मुझे सीधे रास्ते पर डाल दो, सच्चाई की पैरवी करो और झूठ को नजदीक न आने दो। तुम में सबसे कमजोर की मदद मेरा फर्ज है और अगर सब से ताकतवर ने कमजोर के हक छीन लिए तो कमजोर की मदद करना मेरा ईमान होगा। खुदा की राह में लडने से कतराना नहीं और जो उसकी राह से भटक जाएगा, उस पर उसकी फिटकार होगी। उस वक्त तक मेरी पैरवी करना, जिस वक्त तक मैं खुदा और उसके रसूल सल्ल. के हुक्मों पर चलूं। अगर मैं खुदा और उसके रसूल सल्ल. की ना-फरमानी करूं, तो तुम हरगिज-हरगिज मेरे हुक्मों को न मानना।
इस तकरीर के बाद हजरत अबूबक्र सिद्दीक ने रसूलल्लाह सल्ल. के खलीफा होने की हैसियत से नमाज की इमामत करायी।
कुअ अहम काम
रसूलुल्लाह सल्लु की वफात पर मक्का और मदीना के अलावा तमाम अरब के लोगों ने बगावत कर दिया। दूसरे लफ्जों में मुहाजिरों और अन्सार के अलावा सबने जकात देने से इन्कार कर दिया।
लेकिन हजरत अबूबक्र सिद्दीक रजि. ने बडी हिम्मत से काम लेकर कहा, अगर ये लोग जकात न देंगे, तो इन पर फौजकुशी की जाएगी। हजरत उमर रजि. बार-बार यह कहते कि रसूलुल्लाह सल्ल. के कौल के मुताबिक, जिसने कलिमा पढ लिया उस पर फौजकुशी नहीं हो सकती।
हजरत अबूबक्र रजि. बार-बार कहते कि जकात तो पांच फर्जों में से एक फर्ज है और उसी पर पूरी हुकूमत टिकी हुई है, बैतुलमाल (राजकोष) जकात ही पर चल रहा है और बगैर इसके हुकूमत कमजोर हो जाएगी।
चुनांचे हजरत अबूबक्र ने फौजकुशी की और थोडे दिनों में बगावत करने वालों का पूरा जोर टूट गया।
इसी तरह प्यारे नबी सल्ल. ने अपने आखिरी दौर में शाम पर चढाई की जो तैयारी की थी, उसमें फौज का सेनापति हजरत उसामा बिन जैद रजि. को मुकर्रर किया था। यह बिल्कुल नव-उम्र थे। हुजूर सल्ल. की बीमारी की वजह से यह फौज कूच न कर सकी। हजरत अबूबक्र रजि. ने इस फौज को कूच करने का आर्डर दे दिया।
यह वही वक्त था जबकि हर तरफ से बगावात की खबरें आ रही थीं। एक बडा नाजुक वक्त था मुल्क व कौम के लिए। हजरत उसामा भी परेशान थे कि ऐसे मौके पर फौज के कूच का आर्डर मुनासिब नहीं मालूम होता। लोग चाहते थे कि इस मुहिम को अभी मुल्तवी कर दिया जाए जब तक कि पूरे मुल्क में अम्न व अमान न हो जाए। (क्रमशः)