तारीखे इस्लाम

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(पैंतीसवीं किश्त)
दूसरे खलीफा हजरत उमर रजि
आपका का ताल्लु क भी कुरैश के इज्जतदार घरानों में से था। आठवीं पीढी में आप का वंश हजरत मुहम्मद सल्ल. के वंश से मिल जाता है।
हजरत उमर फारूक रजि.को अबु हफ्स कहते थे प्यारे नबी सल्ल. ने आपको फारूक लकब दिया था। आप हिजरत से चालीस साल पहले पैदा हुए, लडकपन में ऊंटों को चराया, जवानी में पहलवानी की और बाद में तिजरात में लग गए।
इस्लाम कुबूल करने का वाकिया
हजरत उमर रजि. खुद फरमाते हैं कि एक रात मैं अपने घर से निकला तो रसूलुल्लाह को काबे में नमाज पढते पाया। मैं आप के पीछे खडा हो गया। आपने सूरः फातिहा पढी, तो मुझे इस सूरः पर बडी हैरत हुई। मैंने दिल में कहा कि यह शख्स शायर है। तब आप ने यह आयत पढी-
’’इन्नहू ल कौलु रसुलिन करीम। वमा हु-व बिकौलि शाइर कलीलम मा तुअमिनून।‘‘
(यह एक बहुत बुर्जुग रसूल का कलाम है और यह किसी शायर का कलाम नहीं है। तुम बहुत कम ईमान लाते हो।)
हजरत उमर को ख्याल हुआ, ’’क्या यह काहिन है कि मेरे दिल की बात जान गए।‘‘
लेकिन इस के बाद ही आप ने यह पढा ’’वला बिकौलि काहिन कालीलम मा तजकुरून। तनजीलुम मिर्रब्बिल आलमीन‘‘।
(और न किसी काहिन का कलाम है। तुम बहुत ही कम ध्यान करते हो, उतारा हुआ है सारी दुनिया के रब की तरफ से।)
हजरत उमर कहते हैं कि इन आयतों के सुनने से मुझ पर बडा असर हुआ।
एक रिवायत में है के हजरत उमर एक दिन रसूलुल्लाह के कत्ल के इरादे से घर से निकले, लेकिन रास्ते में उन्हें अपनी बहिन और बहनोई के ईमान लाने की खबर मिली तो उनके घर गए और उन्हें मारा-पीटा और फिर आखिर में कुरआन सुना, जिस से उन का दिल पूरे तौर पर नर्म पड गया और वह जैद बिन अकरम के मकान में पहुंचे, जहां रसूलुल्लाह छिप कर लोगों को दीन की तालीम देते थे। फिर वहां पहुंच कर आपने इस्लाम का कलिमा पढ लिया।
हजरत अली का बयान है कि हजरत उमर के अलावा किसी ने खुल कर हिजरत नहीं की। हजरत उमर ने जब इरादा किया तो हथियार बांधा, तीर कमान लिया और मस्जिदे हराम में आए, जहां कुरैश के लोग बैठे हुए थे। तवाफ किया, नमाज पढी फिर उन लोगों से कहा जो कोई अपने मां-बाप को बे-वलद और अपने लडकों को यतीम और अपनी बीवी को बेवा करना चाहे, इस वक्त वह आ मुझ से मिले। किसी की हिम्मत न हुई की वह कुछ कहता।
अपनी खिलाफत के जमाने में जब हजरत उमर मुल्क शाम में पहुंच रहे थे तो उस मुल्क के जिम्मेदार आप के इस्तकबाल के लिए निकले और उन्होंने कहा, ’’आप ऊंटनी छोड कर घोडे पर सवार हों, ताकि लोगों पर शौकत और हैबत जाहिर हो।‘‘
हजरत उमर ने फरमाया ’’ अना कौमुन अज्जनल्लाहु बिल इस्लामि।’’ (हम वह कौम हैं जिसे खुदा ने इस्लाम के जरिए इज्जत बख्शी है।)
एहतियात इतना करते थे कि जब इस्लामी फौज शाम की तरफ रवाना हुई तो आपके बेटे अब्दुल्लाह बिन उमर ने कहा ’’ लश्कर शाम के साथ मैं भी जिहाद में जाना चाहता हूं।‘‘ तो हजरत उमर ने फरमाया, मुझे डर है कि तू कहीं जिना में गिरफ्तार न हो जाए।
हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर ने कहा कि ’’ऐ अमीरूल मोमीनीन! मेरे बारे में आप ऐसा गुमान करते हैं?
हजरत उमर ने फरमाया ’’मुमकिन है मुसलमानों को फत्ह हासिल हो और कोई लौंडी बिके और लोग तुझे खलीफा का बेटा समझ कर कीमत में रियायत कर करें और तू जाहिरी हुक्म को देखते हुए खरीद को सही समझे और उस लौंडी को हाथ लगाए, तो हकीकत में यह जिना होगी।‘‘
हजरत उमर रात में अक्सर लोगों का हाल मालूम करने के लिए गश्त लगाया करते थे। एक रात वह गुजर रहे थे कि एक औरत अपनी बेटी से कह रही थी कि ’’उठ दूध में पानी मिला दे।‘‘
बेटी ने कहा, ’’क्या तुझे खबर नहीं है कि अमीरूल मोमिनीन ने मुनादी की है कि कोई दूध में पानी न मिलाए।‘‘
मां ने कहा, ’’इस वक्त न अमीरूल मोमिनीन है, न मुनादी है।‘‘
लडकी ने कहा, ’’हमारे लिए यह मुनासिब नहीं है कि हम जाहिर में तो फरमाबरदारी करें और तन्हाई में नाफरमानी- अल्लाह तो देख रहा है।‘‘
हजरत उमर इस बात से इतना खुश हुए कि उस लडकी से अपने बेटे आसिम का निकाह कर दिया। इसी लडकी की नवासी हजरत उमर बिन अब्दुल अजीज की मां हुई जो बहुत नेक खलीफा हुए और जिन्होंने हजरत उमर की याद ताजा कर दी।
हजरत उमर जब किसी को हाकिम बना कर भेजते तो उसको लिखते कि ऐश और सजावट से दूर रहो। कीमती और बारीक कपडे मत पहनो, मैदे की रोटी मत खाओ, तुर्की घोडे पर मत सवार हो, अपने दरवाजे पर चोबदार मत बिठाओ, ताकि लोग आसानी से अपनी जरूरतें बयान कर सकें। अद्ल और इंसाफ के खिलाफ मत जाओ।
लडाईयां और जीत
सब से पहला काम जो हजरत उमर रजि. ने किया वह इस्लामी फौज को सही ढंग से तर्तीब देकर उसे अपनी मुहिम को कामयाब बनाने का था। हजरत मुस्ना के लिए फौज भर्ती करने का काम इसी मकसद से किया गया।
हजरत उमर के जमाने में लडाईयां का लंबा सिलसिला चला था, जिसे थोडे से सनवार इस तरह समझिए कि-
1. अबु उबैद रजि. की सरदारी में ईरानी फौज से घमासान की लडाई हुई, हजरत अबु उबैद और उस के बाद बनाने वाले सात सेनापति शहीद किए गए, मगर जीत फिर भी इस्लामी फौज की हुई। बगदाद के आस-पास का पूरा इलाका कब्जे में आ गया।
2. हजरत साद की सरदारी में कादसिया के मैदान में ईरान के मशहूर सरदार और योद्धा रूस्तम से लडाई हुई, लडाई बहुत जोर से लडी गई, रूस्तम मारा गया और गनीमत का बहुत सा माल मुसलमानों के कब्जे में आया। इसी लडाई के मौके पर नौशेरवां का चमचमाता ताज, किसरा, हरमुज और किबाद के खंजर, राजा दाहर, खाकाने चीन और बहराम की तलवारें भी हाथ आयी थीं। जब यह माल बंट रहा था, तो हजरत उमर रजि. फूट-फूट कर रोने लगे। किसी ने कहा, यह तो खुशी की जगह है और आप रो रहे हैं। आपने जवाब दिया, यह माल व दौलत कभी-कभी कौम में फूट डाल देते हैं मुझे यह डर कंपाए दे रहा है कि कहीं यह दौलत व हश्मत हमारे लोगों को लोभ का शिकार न बना दे।
3. हजरत साद की फौज आगे बढी। जलूला पर इराक की आखिरी लडाई हुई, इस्लामी फौज की शानदार जीत हुई और इराक पर मुसलमानों का पूरा कब्जा हो गया।
4. दमिशक पर चढाई और जीत का सिलसिला अगरचे हजरत अबुबक्र के जमाने में शुरू हो चुका था, मगर यह जीत हजरत उमर रजि. के दौर में पूरी हुई। दमिश्क जीतने का सेहरा हजरत खालिद रजि के सर बंधता है। (क्रमशः)