(40वीं किश्त)
तीसरे खलीफा
हजरत उस्मान रजि.
नाम उस्मान बिन अफ्फान, उर्फ अबू अब्दुल्लाह था। इस्लाम से पहले आप अबू अम्र के नाम से मशहूर थे, मुसलमान होने के बाद हजरत रूकैया से आप के यहां हजरत अब्दुल्लाह पैदा हुए, तो आप अबू अब्दुल्लाह के नाम से मशहूर हुए। हजरत उस्मान रजि. आंहजरत सल्ललाहु अलैहि व सल्लम की फुफेरी बहन के बेटे थे।
कुछ खूबियां
आप की हया बहुत मशहूर थी। हजरत जैद बिन साबित का कौल है कि आहंजरत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है कि उस्मान मेरे पास से गुजरे तो मुझसे एक फरिश्ते ने कहा कि मुझे इनसे शर्म आती है, क्योंकि कौम इनको कत्ल कर देगी। आंहजरत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इर्शाद फरमाया है कि जिस तरह उस्मान खुदा और उसके रसूल से हया करते हैं, फरिश्ते उनसे हया करते हैं। हजरत इमाम हसन रजि. से हजरत उस्मान रजि. का जिक्र आया तो उन्होंने फरमाया कि अगर कभी हजरत उस्मान नहाना चाहते, तो दरवाजे को बन्द करके कपडे उतारने में इस कदर शर्माते कि पीठ सीधी न कर सकते थे।
आपने हब्शा की भी और मदीना की भी दोनों हिजरतें कीं। आप शक्ल व सूरत हजरत मुहम्मद सल्ल. से मिलते-जुलते थे।
पहले आप की शादी प्यारे नबी सल्ल. की बेटी रूकैया से हुई थी, वह बद्र की लडाई के दिन इन्तिकाल फरमा गयीं, तो आंहजरत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी दूसरी बेटी हजरत उम्मे कुलसुम रजि. की शादी आप से कर दी। इसीलिए आप को जिन्नूरैन कहा जाता है। उम्मे कुलसुम रजि. भी सन् 09 हि. में इंतिकाल फरमा गयीं।
सबसे पहले इस्लाम कुबूल करने वालों में हजरत उस्मान रजि. का नम्बर चैथा था। आप बहुत मालदार थे और इसी तरह सबसे ज्यादा सखी और खुदा की राह में खर्च करने वाले भी थे।
आप इबादत ज्यादा से ज्यादा करते थे। रात भर खडे होकर नमाज पढते, और वर्षोंं रोजे रखते थे।
हजरत अबु बक्र रजि. और हजरत उमर रजि. के जमाने में आप का खास एहतराम किया जाता था। और आप उन बडे लोगों में से थे, जिनसे मश्विरा लेना जरूरी था।
आपके मिजाज में बडी सादगी थी। दौलत के रेल-पेल होने के बावजूद कपडे सादा पहनते, खाना सादा खाते। उनको तो यह भी पसन्द न था कि उनकी बीवी कीमती कपडे पहनें।
खलीफा का चुनाव
अगर हजरत उमर रजि. को अपना जानशीन मुकर्रर करने को मोहलत मिली होती तो वह जरूर इस काम को अच्छी तरह अंजाम दे लेते, लेकिन ऐसा शायद अल्लाह को मंजूर न था, उन्हें मोहलत न मिल सकी, अलबत्ता उन्होंने एक कमेटी बना दी कि इनमें से जिस पर ज्यादा लोगों को राय बने, उसे खलीफा बना लिया जाए।
खलीफा उमर रजि. की वफात के बाद पांच आदमियों की यह कमेटी हजरत आइशा रजि. के मिले हुए कमरे में जमा हुई।
अब्दुर्रहमान ने इसके फैसले के लिए और मश्विरे के लिए लोगों के घर जा-जाकर रातें बस कीं। हज के मौके पर लोग गये थे, वे अभी वापस न हुए थे, कि उनके मश्विरा तलब किया। सब की राय उस्मान रजि. के हक में थी।
तीसरे दिन अबू तलहा ने कहा कि अब ज्यादा सोच-विचार बेकार है और अमीरूल मोमिनीन की वसीयत के मुताबिक मैं और ज्यादा मोहलत न दूंगा। इसके बाद सलाह व मश्विरे में तेजी शुरू हो गयी और आखिर में हजरत उस्मान रजि. खलीफा चुन लिये गये।
हजरत उस्मान रजि. के चुनाव के बाद एक नया गुल खिला कि किसी आदमी ने उबैदुल्लाह बिन उमर रजि. को इत्तिला दी कि उनके बाप के कत्ल से पहले अबूलूलू यानि फीरोज कातिल को उसने ईरानी शाहजादा हरमुजान और साद के ईसाई गुलाम के साथ बातें करते देखा था। उस आदमी ने उबैदुल्लाह बिन उमर के दिमाग में यह बात डाल दी कि उनके बाप साजिश का शिकार हुए हैं। उबैदुल्लाह यह सुन कर भडक उठे और बिना किसी जांच-पडताल के गुलाम और ईरानी शहजादा को कत्ल कर डाला। लोग इसी हालत में उबैदुल्लाह को अमीरूल मोमिनीन के हुजूर में ले गये। गवाही का सवाल ही न उठता था, क्योंकि मुल्जिम को इकबाले जुर्म था। साजिश की कोई गवाही पेश न की जा सकी। फैसला करने में इख्तिलाफ शुरू हो गया। किसी ने कत्ल की सजा तज्वीज की किसी ने जुर्माने की, हजरत उस्मान ने जुर्माने की सजा सुना दी लोग इस पर भडक उठे। हजरत उस्मान रजि. ने तमाम बडे-बडे ओहदेदारों और गर्वनरों की तनख्वाह में एक सौ दिरहम बढा दिया। वे इससे तो खुश हो गये, मगर मुल्की खजाने पर एक ऐसा बोझ पड गया, जिसको जनता ने पसंद न किया।
बगावत दबा दी गयी।
हजरत उमर रजि. की वफात के बाद मुल्क में एक जबरदस्त साजिश बेनकाब हुई। बादशाह ईरान के सिपाहियों ने जगह-जगह एक उपद्रव खडा कर दिया।
तमाम मुसलमान इस साजिश से परेशान हो उठे। इब्ने अम्र गर्वनर बसरा, इस बगावत का दमन करने पर मुकर्रर किये गये, उन्होंने देखते -देखते ईरान की सीमा पर पहुंच कर उपद्रव की बढती लहर को दबा कर रख दिया।
फिर उत्तर-पूरब की तरफ बढकर उन्होंने कुछ और नये इलाके जीत लिए और मुसलमानों का रौब एक बार फिर पूरे मुल्क पर कायम हो गया।
इसके बावजूद कभी-कभी कोई न कोई कौम उनके मुकाबले के लिए उठ खडी होती। तुर्कों और कौमे हजर ने लगातार मुसलमानों का नुकसान करके मुल्क में बद-अमनी फैला दी थी। हजरत उस्मान ने इनका सर कुचलने के लिए एक बडी फौज तैयार कराकर उनके मुकाबले के लिए भेजा। घमासान की लडाईयां हुईं, परेशानियां और कठिनाईयां भी पैदा हुईं, लेकिन खलीफा की तेजी और अक्लमंदी से इन सब मस्अलों पर काबू पा लिया गया।
इधर कैंसर रूम ताक में बैठा था कि किसी तरह शाम देश को वह मुसलमानों से छीन ले। हजरत उस्मान के खलीफा बनने के दूसरे साल ही रूमी फौजें एशिया माइनर की तरफ से शाम में आ गयीं। हजरत उस्मान ने मुकाबले का इंतिजाम किया, नतीजे में कैसर को मुंह की खानी पडी।
शुरू के छः साल
इधर चूंकि बार-बार कैसर शाम पर चढाई कर रहा था, इसलिए अमीर मुआविया ने दरबारे खिलाफत में इजाजत चाही कि उन्हें साइप्रेस पर हमला करने दिया जाए। एक ही हमले में जजीरा (द्वीप) जीत लिया गया।
इसी तरह रूमियों की कमर के टूटने और बार-बार हार जाने के बावजूद वे कभी-कभी सोते में करवटें भी ले लिया करते थे। मिस्र के गवर्नर अम्र आस की जगह जब अब्दुल्लाह बिन साद गर्वनर बनाये गये, तो उन्हें हिदायत दी गयी कि उत्तरी अफ्रीका के हलकों में जहां से रूमी बराबर झडपें और लडाई करके उन्हें बिल्कुल इस इलाके से निकाल दें। फिर फौज अब्दुल्लाह बिन साद की मदद के लिए रवाना हुई।
इस लडाई में अब्दुल्लाह बिन जुबैर, अब्दुल्लाह बिन उमर और अब्दुल्लाह बिन अब्बास ने शिर्कत की। बडी जबरदस्त लडाई हुई। जो एक समय तक चली। आखिर जीत मुसलमानों की हुई।
हजरत उस्मान की खिलाफत के पहले छः सालों में राज्य तेजी से बढ रहा था। कई नये इलाकों पर मुसलमानों का कब्जा हो गया था। हजरत उमर रजि. का कायम किया हुआ रौब मौजूद था। जब किसी ने बगावत की, फौरन उस पर काबू पा लिया गया। यही वह दौर था जब मुसलमानों ने समुद्री बेडे भी तैयार कराये थे। गरज यह कि हर तरफ खुशहाली थी, बरकत थी, जीत थी, लेकिन अंदर ही अंदर दिलों से मुहब्बत, हमदर्दी, भाई-चारा उठता जा रहा था, जलन एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश वगैरह बीमारियां बढने लगीं थीं।
हर किस्म के लोगों ने इस्लाम कुबूल किया था, इसमें कुछ ऐसे मुनाफिक इस्लाम के नाम पर घुस आये थे जो इस्लाम में मुसलमानों को नुक्सान पहुंचाने के लिए ही आये थे। (क्रमश)