(49वीं किश्त)
यजीद की वली अहदी
सन् 50 हि. में मुगीरा बिन शोबा कूफे से दमिश्क आ गये। उन्होंने हजरत अमीर मुआविया रजि. से कहा कि मैंने हजरत उस रजि. की शहादत का वाकिआ मदीना में देखा है और तमाम मंजर आंखों के सिलसिले में घूम रहे हैं कि खिलाफत के मामले में कैसे हंगामे हुए, पस मेरे नजदीक मुनासिब यह है कि आप अपने बेटे यजीद को अपने बाद खलीफा नामजद कर दें। इसी में मुसलमानों की बेहतरी और भलाई है। हजरत मुआविया रजि. ने यह कभी सोचा भी नहीं उन्होंने मुगीरा रजि. से ताज्जुब से पूछा, क्या यह मुम्किन है लोग मेरे बेटे की खिलाफत के लिए बैअत कर लें? मुगीरा बोले बात बडी आसानी से मुम्किन है। कूफे वालों को मैं तैयार करके बसरा वालों को जियाद बिन अबू सुफियान मजबूर कर देंगे, मक्का मदीना में मरवान बिन हकम और सईद बिन आस लोगों को हरा सकेंगे, शाम में किसी की मुखालफत का इम्कान नहीं था। कोशिशों के बाद यजीद की वली अह्दी को आमतौर पर लोगों ने बिना दबाव या राजी-खुशी से तस्लीम कर लिया। मुखालफत सिर्फ मदीना और मक्का के बुर्जुगों की तरफ से हुई और उनकी मुखालफत में वजन भी था।
शुरू रज्जब सन् 60 हि. में जब हजरत अमीर मुआविया रजि. बीमार हुए और उनको यकीन होने लगा कि अब आखिरी वक्त करीब आ गया है, तो उन्होंने यजीद को बुलवाया। यजीद उस वक्त दमिश्क से बाहर शिकार में था या किसी मुहिम पर गया हुआ था, फौरन कासिद रवाना हुआ और यजीद को बुलाकर लाया। यजीद हाजिर हुआ तो उन्होंने उसकी तरफ खिताब करते हुए फरमाया-
ऐ बेटे! मेरी वसीयत को तवज्जोह से सुन और मेरे सवालों का जवाब दे। अब अल्लाह का फरमान यानी मेरी मौत का वक्त करीब आ गया है, तो बता कि मेरे बाद मुसलमानों से कैसा व्यवहार करना चाहता है?
यजीद ने जवाब दिया कि मैं अल्लाह की किताब और अल्लाह के रसूल सल्ल.की सुन्नत की पैरवी करूंगा।
अमीर मुआविया रजि. ने कहा कि सुन्नते सिद्दीकी रजि. पर भी अमल होना चाहिए कि उन्होंने विघर्मियों से लडाई लडी और इस हालत में इन्तिकाल फरमाया कि उम्मत उनसे खुश थी।
यजीद ने कहा कि नहीं, सिर्फ अल्लाह की किताब और अल्लाह के रसूल सल्ल. की सुन्नत की पैरवी काफी है।
अमीर मुआविया रजि. ने फिर कहा कि ऐ बेटे! उस्मान गनी रजि. की सीरत पर अमल करना कि उन्होंने लोगों को अपनी जिन्दगी में फायदा पहुंचाया और सखावत की।
यजीद ने कहा कि, नहीं, सिर्फ अल्लाह की किताब और अल्लाह के रसूल सल्ल. की सुन्नत ही मेरे लिये काफी है।
अमीर मुआविया ने यह सुनकर फरमाया कि ऐ बेटे! तेरी इन बातों से मुझकों यकीन हो गया कि तू मेरी बातों पर अमल दरामद न करेगा। मेरी वसीयत और नसीहत के खिलाफ ही करेगा। ऐ यजीद! तू इस बात पर घमंड न करना कि मैंने तुझको अपना वलीअह्द बना लिया है और तमाम दुनिया ने तेरी फरमाबरदारी का इकरार कर लिया है। अब्दुल्लाह बिन उमर रजि. की ओर से तो ज्यादा अंदेशा नहीं है, क्योंकि वह दुनिया से बेजार हैं। हुसैन बिन अली रजि. को इराक वाले जरूर तेरे मुकाबले के लिए मैदान में निकालेंगे, तू अगर उनको जीत ले, तो उनकी कत्ल हरगिज न करना और रिश्तेदारी को ध्यान में रखना। अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजि. ऐसे शख्स हैं कि अगर तू इन पर काबू पाए, तो कत्ल कर देना। मक्का ओर मदीने के रहने वालों पर हमेशा एहसान करना और इराक वाले अगर हर दिन हाकिम को बदलने की ख्वाहिश करें, तो हर दिन हाकिम को उनकी खुशी के लिए बदलते रहना। शाम वालों को हमेशा अपना मददगार समझना और उनकी दोस्ती पर भरोसा करना। इसके बाद यजीद फिर शिकार में चला गया।
अमीर मुआविया की हालत बराबर नाजुक होती चली गयी मरते वक्त उन्हांेने वसीयत की कि ये बाल और नाखून मेरे मुंह और आंखों में रख देना। जह्हाक बिन कैस ने जनाजे की नमाज पढायी दमिश्क में बाबे जाबिया और बाबे सगीर के दर्मियान दफ्न किए गये।
खिलाफते मुआविया रजि. पर एक नजर
हजरत मुआविया रजि. की हुकूमत को, जिस का जमाना बीस साल है, एक कामियाब हुकूमूत कहा जा सकता है। हंगामें, बगावत, डाके बद अम्ली इस तरह का जिक्र के काबिल कोई वाकिया नहीं हुआ। हुकुम को चलाने और मुल्क के इन्तिजाम को ठीक-ठाक रखने की हजर अमीर मुआविया रजि. ने भरपूर कोशिश की और इसमें वह पूरी तर कामियाब रहे।
हजरत मुआविया रजि. बे हर दिन का जो प्रेाग्राम बनाया था वह इस तरह था-
वह हर रोज फज्र की नमाज के बाद मकामी फौजदार या कप्तान पुलिस की रिपोर्ट सुनते, इसके बाद वजीर, सलाहकार और खास-खास लोग राजकाज के अह्म कामों के बारे में सलाह मश्विरे के लिए आते उन वक्त पेशकार हर प्रान्त से आयी हुई रिपोर्ट सुनाते। जुहर के वक्त नमाज के लिए वह महल से बाहर निकलते और नमाज पढाकर मस्जिद ही में बैठ जाते। वहां लोगों की जुबानी फरियादें सुनते, अर्जियां लेते। इसके बाद महल में वापस आकर सरदारों से मुलाकात करते, फिर दोपहर का खाना खाते और थोडी देर आराम करते। अस्र की नमाज के बाद वजीरों, दरबारियों और सलाहकारों से मुलाकात करते, शाम के वक्त सब्र के साथ दरबार में खाना खाते और एक बार लोगों को मुलाकात का मौका देकर आज का काम खत्म कर देते।