तारीखे इस्लाम

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(50वीं किश्त)
यजीद बिन मुआविया
अबू खालिद बिन यजीद बिन मुआविया सन् 25 हि. या 26 हि. में, जब कि हजरत अमीर मुआविया रजि. शाम देश के हाकिम थे, पैदा हुआ। यजीद ने पैदा होते ही हुकूमत और माल व दौलत के घर में आंखें खोली थीं। अमीर मुआविया ने यजीद की तालीम व तर्बियत पर खास तवज्जोह दी। एक या दो बार उसको अमीरे हज बना कर भेजा था, फौज और लश्कर की सरदारी भी उस को दी थी।
अमीर मुआविया रजि. के इंतिकाल के वक्त वह दमिश्क में मौजूद न था, कई दिन के बाद वापस आया और उनकी कब्र पर जनाजे की नमाज पढी।
अमीर मुआविया रजि. ने अपनी जिन्दगी ही में यजीद को अपने जांनशीन नामजद कर दिया था। आपके इंतिकाल के बाद तो शाम वाले ने बगैर किसी संकोच के यजीद के हाथ पर बैअत कर ली। दूसरे प्रान्तों के लोगों ने भी गर्वनरों के जरिए बैअत की। बाकी जगहों के लिए यजीद गवर्नरों को लिखा कि मेरे लिए जल्द बैअत लो।
यजीद के नाम पर बैअत न करने वालों में दो खास सहाबी भी थे वह यजीद के खलीफा बनाये जाने के तरीके से मुतमइन नहीं थे। इन हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजि. और हजरत हुसैन रजि. थे।
हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजि. अमीर मुआविया रजि. इंतिकाल के बाद मक्का मुअज्जमा चले गये थे, यजीद के हुक्म के मुताबिक फौज उन को गिरफ्तार करने पहुंची, लडाई हुई और हजरत अब्दुल्ला बिन जुबैर रजि. जीत गये, और यजीदी फौज का सरदार गिरफ्तार कर लिया गया। इस तरह हजरत इब्ने जुबैर रजि. मक्का ने हाकिम बन गये।
कूफा वाले हजरत अमीर मुआविया रजि. ही के जमाने में हजरत इमाम हुसैन रजि. को खत लिखते रहते थे और कहा करते थे कि आप कूफा चले आएं, हम आपके हाथ पर बैअत करेंगे। हजरत मुआविया रजि. को इन बातों की जानकारी थी, इसीलिए उन्होंने वसीयत की थी कि ऐसी सूरत हो और तुम इमाम हुसैन रजि. पर काबू पाओ, तो उनके साथ रियायत का बर्ताव करना।
हजरत मुआविया रजि. के इंतिकाल पर यजीद की बैअत इमाम हुसैन ने नहीं की, यह खबर मिलते ही कूफे वालों ने इमाम हुसैन रजि. को लिखा कि-
हम आपके साथ मिलकर जंग करने को तैयार हैं। आप फौरन इस खत के देखते ही कूफे की ओर चल पडिये। यहां आइए, ताकि हम गवर्नर नोमान बिन बशीर को कत्ल करके कूफा आप के सुपुर्द कर दें। हम आप को खिलाफत का हकदार यकीन करते हैं। यजीद तो किसी तरह भी खिलाफत का हकदार नहीं। यह मौका है, देर न कीजिये। हम यजीद को कत्ल करके आपको तमाम इस्लामी दुनिया का अकेला खलीफा बनाना चाहते हैं।
इमाम हुसैन रजि. के पास इसी तरह के बहुत से खत पहुंचे। आप ने मुस्लिम बिन अकील को बुलाया और फरमाया कि तुम मेरे नायाब बनकर कूफा में जाओ, और छुप कर मेरे नाम का बैअत लेनी शुरू करो और इन लोगों को, जो बैअत में दाखिल हों, समझाओ कि जब तक मैं वहां। पहुंचू, हरगिज लडाई न करें।
मुस्लिम बिन अकील कूफा में मुख्तार बिन उबैदा के मकान पर उतरे। ज्यों-ज्यों लोगों को खबर होती गयी, हजरत मुस्लिम के हाथ व बैअत का सिलसिला शुरू हो गया।
कूफे वालों के इसरार और हजरत मुस्लिम के शुरू के खतों की बुनियाद पर हजरत हुसैन ने कूफा चलने का प्रोग्राम बना लिया। जब लोगों को मालूम हुआ तो हर एक ने आ-आ कर इस इरादे से रोकना चाहा। समझाया कि आपका कूफे की तरफ रवाना होना खतरे से खाली नहीं। पहले अब्दुर्रहमान बिन हारिस ने आकर अर्ज किया कि कूफे का इरादा छोड दें, क्योंकि वहां उबैदुल्लाह बिन जियाद, इराक का हाकिम मौजूद है। कूफा वाले लालची लोग हैं। बहुत मुमकिन है, जिन लोगों ने आपको बुलाया है, वहीं आपके खिलाफ लडने के लिए मैदान में निकलें। हजरत अब्दुल्लाह ने समझाते हुए कहा, तुम्हारे वालिद ने मक्का और मदीने को छोड कर कूफा को तर्जीह दी थी मगर तुमने देखा कि कूफा वालों ने उनके साथ क्या सुलूक किया, यहां तक कि उनको शहीद ही करके छोडा, तुम्हारे भाई हसन रजि. को भीे कूफियों ने लूटा, कत्ल करना चाहा, आखिर जहर दे कर मार डालना चाहा। अब तुम को हरगिज उन पर एतबार न करना चाहिए, न उनकी बैअत पर भरोसा है, न उनके खत और पैगाम भरोसे के काबिल हैं। लेकिन हजरत हुसैन रजि. ने किसी की बात न मानी। लोगों ने फिर कहा, अच्छा, अगर तुम मेरा कहना नहीं मानते, तो कम से कम औरतों और बच्चों को तो साथ न ले जाओ, क्योंकि कूफा वालों का कोई एतबार नहीं है, क्योंकि इसे भी उन्होंने तस्लीम न किया।
हजरत हुसैन रजि. कूफा की तरफ
आखिर 30 जिलहिज्जा सन् 60 हि. में हजरत इमाम हुसैन रजिमय खानदान मक्का से कूफा के लिए चले उसी दिन कूफा में हजरत मुस्लिबिन अकील कत्ल किए गये थे।
हाजर नामी जगह से आप ने कैस बिन मुस्हर के हाथ कूफा बास के पास एक खत भेजा कि हम करीब पहुंच गये हैं, हमारा इन्तिजार करो कैस कादसिया में गिरफ्तार कर लिए गये, फिर उन्हें छत से गिरा कर मार डाला गया।
गरज यह कि सालबिया तक पहुंचते-पहुुंचते-पहुंचते इमाम हूसैन रजि. को मालूम हो गया कि हजरत मुस्लिम शहीद कर दिए गए और कूफे में अब उनका कोई हामी व मददगार नहीं है। फिर भी आप आगे बढते रहे। जिस वक्त आप करबला के मैदान में दाखिल हुए है, आपके साथ कुल सत्तर-अस्सी आदमी थे।