तारीखे इस्लाम

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(51वीं किश्त)
करबला का मैदान
अम्र बिन साद जो इब्ने जियाद के हुक्म पर इमाम हुसैन रजि. को गिरफ्तार करने निकला था, वह भी मय फौज करबला पहुंच गया। इमाम हुसैन रजि. को करीब बुलाया और बोला-
’बेशक आप यजीद के मुकाबले में खिलाफत के ज्यादा हकदार हैं, लेकिन अल्लाह को यह मंजूर नहीं कि आप के खानदान में हुकूमत और खिलाफत आए, हजरत अली और हजरत हसन रजि. के हालात आपके सामने गुजर चुके हैं, अगर आप इस सल्तनत और हुकूमत के ख्याल को छोड दें, तो बडी आसानी से आजाद और रिहा हो सकते हैं, नहीं तो फिर आप की जान का खतरा है और हम लोग आप की गिरफ्तारी पर तैनात हैं।
हजरत इमाम हुसैन रजि. ने फरमाया कि-
’मैं इस वक्त तीन बातें पेश करता हूं। तुम इन तीन में से जिसको चाहो, मेरे लिए मंजूर कर लो-
1. एक तो यह कि जिस तरह से मैं आया हूं, उसी तरफ मुझको वापस जाने दो, ताकि मक्का मुअज्जमा में पहंुच कर इबादते इलाही में लगा रहूं।
2. दूसरे यह कि मुझको किसी सीमा की तरफ निकल जाने दो कि वहां काफिरों के साथ लडता हुआ शहीद हो जाऊं।
3. तीसरे यह कि तुम मेरे रास्ते से हट जाओ और मुझको सीधा यजीद के पास दमिश्क की तरफ जाने दो, मेरे पीछे-पीछे अपने इत्मीनान की गरज से तुम भी चल सकते हो। मैं यजीद के पास जाकर सीधे-सीधे उससे अपना मामला इसी तरह तै कर लूंगा, जैसा कि मेरे बडे भाई हजरत इमाम हसन ने अमीर मुआविया रजि. से तै किया था।
लेकिन अफसोस है कि इन मैं कोई बात भी यजीदी अफसरों ने तस्लीम न की और हजरत हुसैन रजि. पर पानी भी बन्द कर दिया गया, हजरत इमाम हुसैन रजि. के लिए लडाई के अलावा कोई चारा न रहा, हजरत हुसैन रजि. खूब समझ रहे थे कि अब हक की राह में, अल्लाह के दीन के लिए सर कटाना है, चुनांचे लडाई शुरू हुई और आपके खैमे के एक-एक योद्धा ने, चाहे जवान हो, अधेड हो, बच्चा हो, करबला के मैदान में सर कटा दिया, आखिर में हजरत हुसैन रजि. ने अकेले रह जाने के बाद जिस बहादुरी और जवांमरदी के साथ दुश्मनों पर हमले किए हैं, वह अपनी मिसाल आप हैं, यहां तक कि आपने भी अल्लाह की राह में अपना सर कलम करा दिया।
इन्नालिल्लाहि व इन्ना इलैहि रजिऊन.
फिर हजरत इमाम हुसैन रजि. का मुबारक सर और आपके घर वाले कूफा में इब्ने जियाद के पास भेजे गये और वहां से ये लोग यजीद के पास दमिश्क भेज दिये गये। इमामे बीमार हजरत हुसैन रजि. का सरे मुबारक उसने देखा, तो वह भरे दरबार में रो पडा और उबैदुल्लाह बिन जियाद को गालियां दीं और कहा, मैंने यह हुक्म कब दिया था कि हुसैन बिन अली रजि. को कत्ल कर देना। इमाम हुसैन रजि. की मां मेरी मां से अच्छी थीं, उनके नाना आंहजरत सल्ल. तमाम रसूलों से बेहतर और औलादे आदम के सरदार हैं।
इसके बाद इन कैदियों को आजादी देकर मेहमान के तौर पर अपने महल में रखा और शाही मेहमान बना कर इस काफिले को फिर मदीना रवाना किया। यजीद ने इसे लुटे-पिटे काफिले की भरपूर मदद की।