तारीखे इस्लाम

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(52वीं किश्त)
मक्का व मदीना के वाकिए
जब इमाम हुसैन रजि. के शहीद होने की खबर मक्का में पहुंची, तो अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजि. ने लोगों को जमा करके एक तक्रीर की और कहा कि-
’लोगो! दुनिया में इराक के आदमियों से बुरे कहीं के आदमी नहीं हैं, और इराकियों में सबसे बदतर कूफी लोग हैं कि उन्होंने बार-बार खत भेजकर इसरार के साथ इमाम हुसैन रजि. को बुलाया और उनकी खिलाफत के लिए बैअत की, लेकिन जब इब्ने जियाद कूफे में आया तो उसी के साथ हो गये और इमाम हुसैन रजि. को, जो नमाज गुजार, रोजेदार, कुरआन पढने वाले और हर तरह खिलाफत के हकदार थे, कत्ल कर दिया और तनिक भी खुदा का डर न किया।
यह कहकर अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजि. रो पडे। लोगों ने कहा कि अब आप से बढकर खिलाफत का कोई हकदार नहीं है। आप हाथ बढाइये, हम आपके हाथ पर बैअत करते और आपको वक्त का खलीफा मानते हैं, चुनांचे तमाम मक्का वालों ने अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजि. के हाथ पर बैअत की। खिलाफत की बैअत की यह खबर यजीद को पहुंची तो वह बहुत परेशान हुआ। वह चाहता था कि अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजि. को काबू में लाया जाए और खाना काबा की हुर्मत को भी खून खराबे से नुक्सान न पहुंचाया जाए।
इधर अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजि. ने एलान कर दिया कि यजीद खिलाफत का हकदार नहीं है, उससे मुसलमानों को जिहाद करना चाहिए।
यह हवा मक्के के अलावा मदीने में भी फैली और मदीना भी यजीद के खिलाफ हो गया।
बनू उमैया के लोग रंग देखकर मदीने से बाहर चले गये, जो बचे थे उन्हें लोगों ने गिरफ्तार कर लिया और कोशिश की कि अली बिन हुसैन रजि. (इमाम जैनुल आबिदीन) के हाथ पर खिलाफत की बैअत करें। चुनांचे सब मिलकर अली बिन हुसैन रजि. के पास गये उन्होंने साफ इन्कार कर दिया और मदीने से बाहर एक गांव में चले गये।
अली बिन हुसैन रजि. के इन्कार के बावजूद मदीना में यजीद के खिलाफ जो आग भडकी थी, वह अभी बुझी नहीं थी। यजीद ने मुस्लिम बिन उक्बा को एक बडी फौज के साथ मदीने पर धावा बोलने के लिए भेज दिया। यजीद ने मुस्लिम को रूख्सत करते वक्त नसीहत की कि जहां तक मुमकिन हो, नर्मी और दरगुजार से काम लेना, मदीने वालों को सीधे रास्ते पर लाने की कोशिश करना, लेकिन जब यकीन हो जाए कि नर्मी और नसीहत काम नहीं आ सकती तो फिर तुझको पूरा अख्तियार देता हूं कि कत्ल व खून में कमी न करना, मगर इस बात का जरूर ख्याल रखना कि अली बिन हुसैन रजि. को कोई तक्लीफ न पहुंचे।
मदीना के लिए यह इन्तिजाम करके उसी दिन यजीद ने उबैदुल्लाह बिन जियाद के पास एक कासिद को खत देकर भेजा। खत में लिखा था कि तू कूफा से फौज लेकर मक्के पर हमला कर और अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजि. के फित्ने को मिटा।
उबैदुल्लाह बिन जियाद ने इस काम से साफ इन्कार कर दिया और साफ कह दिया कि मैं इमाम हुसैन रजि. के कत्ल करने का एक काम कर चुका हूं। अब खाना काबा के वीरान करने का दूसरा काम मुझसे न होगा। यह काम किसी दूसरे शख्स को सुपुर्द करना चाहिए।
मुस्लिम बिन उक्बा जब फौज लिए हुए मदीना के करीब पहुंचा तो मदीना वाले अब्दुल्लाह बिन हंजला से, जो उस वक्त सरदारी कर रहे थे, कहा कि बनी उमैया, जो मदीना में मौजूद हैं, उनसे कसम लेकर और समझौता करके मदीने से बाहर कर दिया जाए। अब्दुल्लाह बिन हंुजला ने तमाम बनी उमैया से यह समझौता करके सबको मदीने से रूख्सत कर दिया, अब्दुल मलिक बिन मरवान के अलावा कि इन्हें मदीने में रहने की आजादी रही।
मुस्लिम ने मालूमात करके अब्दुल मलिक से मुलाकात की, उनके मश्विरे हासिल किए और उसी पर अमल किया।
मुस्लिम ने पहले मदीने वालों के पास पैगाम भेजा और इताअत करने को कहा, साथ ही धमकी भी दी कि अगर तुम ने ऐसा किया तो लडाई लडनी पडेगी। समझौता न हो सका, तो लडाई हुई और मुस्लिम बिन उक्बा की बहादुरी और तर्जुबे से मदीनों वालों को हारना पडा और उनके बडे-बडे सरदार इस लडाई में काम आ गये। फिर मुस्लिम बिन उक्बा की फौज ने मदीने में वह कत्ल व खून किया है कि एक हजार के करीब आदमी मारे गये।
27 जिलहिज्जा सन् 26 हि. को मुस्लिम बिन उक्बा मदीने में जीती हुई फौज लेकर दाखिल हुआ था और उसी दिन मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब पैदा हुआ। यही वह मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह है, जो मुहम्मद अबुल अब्बास सफाह के नाम से मशहूर है और अब्बासियों का पहला खलीफा है। मदीने की सरदारी में पेश-पेश मुन्जिर बिन जुबैर को मुस्लिम ने बहुत तलाश कराया, पर वह बचकर मक्का की ओर निकल गये थे।
मदीने से फारिग होकर मुस्लिम बिन उक्बा अपनी फौज लेकर यजीद के हुक्म के मुताबिक मक्के की ओर चला। रास्ते में अबवा के करीब मुस्लिम ज्यादा बीमार हुआ और हुसैन बिन नुमैर को अपनी फौज का सरदार बना कर मर गया।
हुसैन बिन नुमैर मक्का के करीब पहुंचा तो अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजि. को पैगाम भेजा कि इताअत करो, वरना मक्का पर हमला होगा। अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजि. ने मुकाबले को तैयारी की। अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजि. के भाई मंजिर बिन जुबैर भी मदीने से मक्का आ गये थे और फौज के एक हिस्से की सरदारी कर रहे थे।
मक्के वालों की बहादुरी और सख्त मुकाबले की वजह से हुसैन बिन नुमैर तो (जीत) हासिल न कर सका, अलबत्ता उसने काबा पर गीले, बारूद, ईंट-पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। उसकी फौज ने रूई और गंधक और राल के गोले बना-बनाकर और जला-जला कर फेंकने शुरू किए, जिससे खाना काबा का गिलाफ जल गया और दीवारें स्याह हो गयीं।
यहां यजीदी फौज खाना काबा पर गोले-पत्थर बरसा रही थीं और उधर 10 रबीउल अव्वल को यजीद ने हौरान नामी जगह में तीन साल और आठ माह की हुकूमत और 38 या 39 साल की उम्र में इंतिकाल किया।
यजीद के मरने की खबर पहले हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजि. के पास पहुंची। उन्होंने ऊंची आवाज से शामियों से कहा कि बद-बख्तों! तुम अब क्यों लड रहे हो, तुम्हारा गुमराह सरदार मर गया। इस तरह खाना काबा का घेराव खत्म हुआ।