तारीखे इस्लाम

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(53वीं किश्त)
यजीदी हुकूमत पर एक नजर
यजीद की हुकूमत लगभग पौने चार साल रही। इसके दौर में मुसलमानों को कोई फत्ह और कामियाबी हासिल नहीं हुई, बल्कि अमीर मुआविया की बीस साल की हुकूमत व खिलाफत के बाद अन्दरूनी झगडों और बाहरी कौमों की तरफ से गाफिल होने का जमाना शुरू हो गया।
यजीद के दामन पर सबसे बडा दाग हजरत इमाम हुसैन रजि. की शहादत का है, जिसने उसके और दूसरे ऐबों को भी नुमायां कर दिया है। हजरत इमाम हुसैन रजि. ने यजीद को मुखालफत क्यों की, इसके लिए उनके उस खुत्बे को समझ लेना काफी है, जो उन्होंने बेचा नामी जगह पर हुर के साथियों और अपने हमराहियों के सामने दिया था। आपने कहा था-
’लोगो! अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमाया है, जिसने ऐसे बादशाह को देखा, जो जालिम है, खुदा की हराम की हुई चीजों को हलाल करता है, खुदा के अह्द को तोडता है अल्लाह के रसूल की सुन्नत की मुखालफत करता है, खुदा के बन्दों पर गुनाह और ज्यादती के साथ हुकूमत करता है और देखने वाले को उस पर अपने अमल और कौल पर गैरत नहीं आती, तो खुदा को यह हक है कि उस बादशाह के बजाए उस देखने वाले को जहन्नुम में दाखिल कर दे तुम अच्छी तरह समझ लो कि उन लोगों ने शैतान की इताअत कुबूल कर ली है और रहमान की इताअत छोड दी है। और जमीन पर फित्ना व फसाद फैला रखा है, अल्लाह की हदों को मुअत्तल कर दिया है और माले गनीमत में अपना हिस्सा ज्यादा लेते हैं। खुदा की हराम की हुई चीजों को हलाल और उस की हलाल की हुई चीजों को हराम कर दिया है, इसलिए मुझे इन बातों पर गैरत आने का ज्यादा हक है।
ये थीं वे वजहें, जो हजरत इमाम हुसैन रजि. को करबला तक लायीं। आप और आप के अह्ले बैत हक बात को गालिब करने के लिए एक बातिल निजाम के मिटाने की कोशिश में शहीद हुए।
वैसे भी यजीद अमीर मुआविया रजि. का कोई अच्छा जानशीं नहीं था, न मजहब से उसे खास ताल्लुक था, न हुकूमत और सियासत ही में उसने किसी काबिलियत का मुजाहरा किया। वह अगर किसी काबिल होता, तो सबसे पहले वह इस काम में अपनी हिम्मत और कोशिश लगाता कि लोग हजरत अमीर मुआविया रजि. और हजरत अली रजि. के झगडों को भूल जाएं, लेकिन उसने या तो इस तरफ तवज्जोह कम दी या वह अपनी ना-अह्ली की वजह से कामियाब न हो सका।
यजीद का पहला निकाह उम्मे हाशिम बिन्त उत्बा बिन रबीआ के साथ हुआ था, जिससे दो बेटे मुआविया और खालिद पैदा हुए। यजीद को खालिद के साथ ज्यादा मुहब्बत थी, लेकिन मुआविया को उसने अपना वली अह्द मुकर्रर किया था।
दूसरा निकाह उसका उम्मे कुलसुम बिन्त अब्दुल्लाह बिन आमिर से हुआ जिसके पेट से अब्दुल्लाह बिन यजीद पैदा हुआ जो तीरंदाजी में बहुत मशहूर था। इसके अलावा कुछ बेटे यजीद के लौंडियों के पेट से भी पैदा हुए थे।