तारीखे इस्लाम

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(54वीं किश्त)
मुआविया बिन यजीद
मुआविया बन यजीद की उर्फियत अबुलैल और अबु अब्दुर्रहमान थी। मुआविया की वफात के वक्त उसकी उम्र बीस साल और कुछ महीने थी। यह बडा नेक और इबादत गुजार जवान था। शाम वालों ने यजीद की वफात के बाद उसके हाथों पर बैअत कर ली।
मुआविया अपनी खिलाफत की और लोगों से बैअत लेने की ख्वाहिश नहीं रखता था, वह कुछ बीमार भी था, लेकिन इस बीमारी की हालत में ही उसके हाथों पर बैअत की गई। मुश्किल से दो या तीन माह बीते थे कि उसका इंतिकाल हो गया।
अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजि.
मुआविया बिन यजीद की खिलाफत को सिर्फ शाम और मिस्र के लोगों ने माना था। हिजाज वालों ने हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजि. के हाथ पर बैअत की थी। मुआविया बिन यजीद की वफात के बाद पूरी इस्लामी दुनिया हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजि. की खिलाफत को मान चुकी थी, बस बनु उमैया के लोग थे जो किसी कीमत पर भी हजरत अब्दुल्लाह बिन रजि. की हुकूमत को मानने को तैयार ने थे।
मरवान बिन हकम
मरवान बिन हकम बिन अबिल आस बिन उमैया की पैदाइश का जमाना सन 2 हिजरी का है। मुआविया बिन यजीद की वफात के बाद 6-7 महीने तक हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबैर तन्हा खलीफा थे। लेकिन 6-7 महीने में मरवान अपनी कोशिश में कामयाब होकर शाम देश पर कब्जा कर बैठा, इसलिए मरवान की हैसियत तो एक बागी की थी और चूंकि खिलाफत बनु उमैया से बिलकुल निकल चुकी थी, इसलिए मरवान को बनु उमैया की खिलाफत की बुनियाद रखने वाला भी कहा जा सकता है।
खिलाफते बनु उमैया का बानी
मरवान की साजिशें शुरू हो गईं और उबैदुल्लाह बिन जियाद की कोशिश से उसके हाथ पर कुछ लोगों ने बैअत भी कर ली और लडाई की नया दौर शुरू हो गया। गर्ज यह कि मरवान ने जोड-तोड कर कई इलाकों से अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजि. को बेदखल कर दिया। मरवान बिन हकम ने अपने बेटे अब्दुल मलिक और अब्दुल अजीज की वली अहदी की कोशिश की और उनकी वली अहदी की आम बैअत ले ली।
खालिद बन यजीद ने अपनी मां यानि मरवान की बीबी से शिकायत की कि मरवान मेरे कत्ल पर तैयार है। उसकी मां ने कहाकि तुम खामोश रहो, मैं मरवान से पहले ही बदला ले लूंगी। रात को मरवान जब सो गया तो कुछ औरतों ने उसके मुंह में कपडा ठूंसा और गला घांेट कर मार डाला। उसी दिन दमिश्क में अब्दुल मलिक के हाथ पर लोगों ने खिलाफत की बैअत की और अब्दुल मलिक ने मरवान के बदले खालिद की मां को कत्ल करा दिया। मरवान बिन हकम की उम्र 63 साल की थी और साढे नौ महीने हुकूमत की।
अब्दुल मलिक बिन मरवान
अब्दुल मलिक बिन मरवान रमजान के महीने में सन 23 हिजरी में पैदा हुआ। उसकी उर्फियत अबुल वलीद थी और अबुल मलूक के नाम से भी मशहूर हुआ, क्योंकि उसके कई बेटे एक के बाद एक राज सिंहासन पर बैठे। अब्दुल मलिक शव्वाल 86 हिजरी में 63 साल की उम्र में मरा।
वलीद बिन अब्दुल मलिक
अबुल अब्बास वलीद बिन अब्दुल मलिक बिन मरवान सन 50 हिजरी में पैदा हुआ और 36 साल की उम्र में अपने बाप अब्दुल मलिक बिन मरवान की वफात के बाद दमिश्क में खिलाफत के तख्त पर बैठा।
सुलैमान बिन अब्दुल मलिक
सुलैमान अपने भाई वलीद से चार साल छोटा था। वलीद की वफात के बाद उसके हाथ पर सन 96 हिजरी में खिलाफत की बैअत हुई। सुलैमान बिन अब्दुल मलिक का 45 साल की उम्र में इंतकाल हुआ, लगभग पौने तीन साल खलीफा रहा।
हजरत उमर बिन अब्दुल अजीज रजि.
अबु हफस बिन अब्दुल अजीज बिन मरवान बिन हकम खुलफाए राशिदीन में पांचवे खलीफा हैं।
हजरत उमर बिन अब्दुल अजीज के वालिद अब्दुल अजीज बिन मरवान मिस्र के हाकिम थे कि सन 62 हिजरी में उमर बिन अब्दुल अजीज पैदा हुए। उनके वालिद अब्दुल अजीज अब्दुल मलिक बिन मरवान के बाद खलीफा होने वाले थे, लेकिन उनका इंतकाल अब्दुल मालिक के सामने हुआ, इसलिए वह खलीफा न हो सके।
वलीद ने जब इरादा किया कि अपने भाई सुलैमान को वली अहदी से हटा कर अपने बेटे को वली अहद बनाए तो हजरत उमर बिन अब्दुल अजीज ने इसकी मुखालफत की, इसलिए वलीद ने उनको कैद कर दिया, तीन वर्ष तक वह कैद में रहे।
सुलैमान बिन अब्दुल मलिक उमर बिन अब्दुल अजीज का एहसान मंद था, चुनांचे उसने खुद खलीफा होने के बाद उनको अपना वजीर आजम बनाया और मरते वक्त उनकी खिलाफत के लिए वसीयत लिख गया।
बनु उमैया के लोगों ने साजिश कर आपको आपके गुलाम के जरिये जहर दिलवा दिया। आपकी वफात 25 रजब सन 101 हिजरी में हुई। दो वर्ष पांच महीने और चार दिन आपने खिलाफत की। आपकी वफात की खबर जब हजरत इमाम बसरी रह. ने सुनी तो फरमाया, अफसेास, आज दुनिया का सबसे बेहतर आमदी उठ गया।