(57 वीं किश्त)
अबु जाफर हारून रशीद बिन मेंहदी
अबु जाफर हारून बिन मेंहदी बिन मंसूर बिन मुहम्मद बिन अली बिन अब्दुल्लाह बिन अब्बास 148 हिजरी में रे में खेजरान में पैदा हुआ। हारून रशीद 14 रबीउल अव्वल सन 170 हिजरी को अपने भाई के मरने पर खलीफा बना। उसी रात उसका बेटा मामून पैदा हुआ। हारून रशीद की उर्फियत पहले अबु मूसा थी, लेकिन बाद में अबु जाफर हो गई। हारून रशीद लम्बे कद का खूबसूरत आदमी था।
हारून रशीद ने तख्त पर बैठने के बाद यहया बिन खालिद बिन वरमक को वजीरे आजम बनाया। हारून रशीद ने अपने बेटे अमीन को 175 हिजरी में वली अहद बनाया था। उस वक्त अमीन और मामून दोनों की उम्रे 5-5 साल कीं थी। इतनी छोटी उम्र में आज तक किसी खलीफा ने कोई वही अहद नहीं बनाया था। हारून रशीद ने 182 हिजरी में अपने बेटे मामून को अमीन के बाद वली अहद बनाया। सन 186 हिजरी में खलीफा हारून रशीद ने अपने तीसरे बेटे कासिम को भी वली अहद बनाया, यानी लोगों से इस बात की बैअत ले ली कि मामून के बाद कासिम खलीफा बनेगा। इस मौके पर कासिम को मोतमिन का खिताब दिया गया।
वली अहद नंबर एक यानी अमीन को इराक, शाम और अरब के मुल्कों की हुकूमत सुपुर्द की। मामून को पूर्वी हिस्से दिए। मोतमिन को जजीरा सगूर और बकासित के प्रांतों की हुकमत अता की।
हारून रशीद सान 193 हिजरी में तौस नामक जगह पर गया हुआ था जहां बीमारी के कारण उसका इंतकाल हो गया और उसको वहीं दफन कर दिया गया। उसकी खिलाफत 23 साल ढाई महीने रही।
हारून रशीद के 14 बेटे थे, जिनमें अमीन, मामून, मोतमिन ओर मोतसिम चार ज्यादा मशहूर हैं।
हारून रशीद के दौर में अब्बासी खिलाफत बहुत मजबूत हुई। उसे इल्म व फज्ल का बेहद शौक और मजहब की पाबंदी का बहुत ख्याल था। उन्दुलुस और मोरक्को के अलावा वह पूरी इस्लामी दुनिया का खलीफा रहा। इब्रानी जुबान की किताबों के तर्जुमे उसके दौर में हुए, इल्म व फन हर हिस्से में तरक्की हुई। शायरी और संगीत की चर्चा भी शुरू हुई, कहानियों के लिखने की रस्म भी इस दौर में शुरू हुई।
हारून रशीद बहुत बहादुर योद्धा था। वह महीनों और बरसों घोडे की जीन पर लगा देता था, लेकिन जब सूफियों की मज्लिस में बैठता तो एक सन्यासी सूफी नजर आता था। हज, जिहाद और खैरात तीन चीजों का उसको बहुत शौक था। वह दिल का बहुत नर्म था। हारून की उम्र वफात के वक्त 45 साल करीब थी।
अमीन रशीद बिन हारून रशीद
मुहम्मद अमीन बिन हारून बिन मेंहदी बिन मंसूर अब्बासी जुबैदा खातून के पेट से पैदा हुआ था। अमीन व मामून दोनों एक ही उम्र के थे। तौस में जब हारून रशीद का इंतकाल हुआ तो मामून मर्व में था और अमीन बगदाद में। हारून के इंतकाल के अगले दिन हारून की फौज में मौजूद सरदारों ने 4 जुमादस्ससनी 193 हिजरी में अमीन की खिलाफत पर सालेह के सामने बैअत की और खिलाफत की मुहर, छडी और चादर भेज दी।
मामून ने मर्व में बाप के मरने की खबर सुनी तो अमीरों और सरदरों को जो वहां मौजूद थे, जमा किया और अपने लिए मश्विरा तलब किया कि मुझको अब क्या करना चाहिए। इस बीच दोनों भाईयों के आपसी तनाव का असर यह पडा कि जहां-जहां भी फसादी लोग मौजूद थे, बगावत पर उतर आये और इस्लामी हुकूमत को सख्त खतरा पैदा हो गया।
सन 194 हिजरी के आखिरी दिनों में अमीन ने मामून को वली अहदी से हटा दिया। उसने अपने दूसरे भाई मोतमिन को भी हटा कर उसकी जगह अपने दूसरे बेटे अब्दुल्लाह को वली अहद बनाया। अब लडाई और जोर-आजमाइश के लिए अमीन और मामून को किसी चीज के इंतजार की जरूरत न थी। मुल्क के कबीले और सरदार दोनों खेमों में अलग-अलग बंट गये और लडाई छिड गई।
इस लडाई में खलीफा अमीन को हार का मुंह देखना पडा। महल पर मामून की फौजों ने हमला कर दिया और अमीन को गिरफ्तार करके उसे कस्रे मंसूर में कैद कर दिया और मामून की खिलाफत की लोगों से बैअत ले ली। फिर अमीन को कैदखाने में ही कत्ल कर दिया गया। अमीन के दोनों लडकों मूसा और अब्दुल्लाह को मामून के पास भेज दिया गया और जुबैदा खातून, अमीन की मां को देश से निकाल दिया गया।
खलीफा अमीन ने 27 या 28 वर्ष में उम्र पाई, चार वर्ष साढे सात महीने खिलाफत की। यह पूरा जमाना फितना और फसाद में गुजरा। अमीन का जमाना इस्लामी दुनिया के लिए मुसीबत और नहूसत का जमाना थां