तारीखे इस्लाम

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(58 वीं किश्त)
खलीफा मामून रशीद
मामून रशीद बिन हारून रशीद का असल नाम अब्दुल्लाह था, बाप ने मामून का खिताब दिया था, उर्फियत अबु अब्बास थी। जुमा के दिन सन 170 हिजरी में पैदा हुआ। बारह वर्ष की उम्र में जबकि मामून अपनी तेजी और मुस्तैदी और काबलियत की वजह से हर फन में अच्छी नजर पैदा कर चुका था। उसकी खिलाफत का जमाना मुहर्रम सन 198 हिजरी से शुरू होता है।
मामून का वजीर फजल बिन सहल हुकूमत पर पूरी तरह हावी था। उसके मश्विरे के बिना कोई काम नहीं होता था। वह ईरानी था और अरब सरदारों को खतरा महसूस होने लगा और उनमें बेदिली फैल गई। अरब सरदारों का यह खतरा मुखतलिफ बगावतों की शक्ल में जाहिर हुआ, खासतौर पर हिजाज और यमन में तो पूरी तरह बैचेनी फैल गई। अलवियों ने अब्बासी खिलाफ के एक मुहिम चला दी।
हर्समा और ताहिर दो बड़े जबरदस्त सरदार थे, जिन्होंने मामून की खिलाफत कायम करने के लिए बड़े-बडे+ जंगी कारनामे दिखाए थे। ताहिर ने महसूस किया कि गैर अरबियों का जोर तोड़ने के लिए सिर्फ हुसैमा बिन अअयून ही जुरात कर सकता है कि वह खलीफा तक अरबों के जज्बात पहुंचाए। इस्लामी तारीख की यह पहली मिसाल थी कि खलीफा को उसके वजीर ने नजरबंद कर दिया था और खलीफा शायद अपने आपको नजरबंद नहीं समझता था।
हुसैमा को पूरी बात बताई गई तो उसने इरादा किया कि ख्ुाद दरबार में हाजिर होकर तमाम हालात से खलीफा को खबरदार करेगा। फजल ने उसको रोकने की तदीबरें कीं पर वह नहीं माना और आगे बढ़ता गया। इस पर फजल ने मामून को भड़का दिया औरा जैसे ही हुसैमा दरबार में पहुंचा मामून ने गुूस्से में उसको बेइज्जत कर दरबार से निकलवा कर जेल में डााल दिया। फजल बिन सहल को अच्छा मौका मिल गया और उसने जेल में हुसैमा को कत्ल करा दिया और खलीफा को बता दिया कि वह जेल में मर गया।
बगदाद में हंगामा
हुसैमा जब मर्व के जेलखाने में कत्ल कर दिया गया और बगदाद वालों को मालूम हुआ तो वहां गम और गुस्से की लहर दौड़ गई। चुनांचे बगदाद में बगावत की लहर उठ खड़ी हुई और हंगामों का सिलसिला शुरू हो गया।
मामून को शुरू से ही सैयदों और अहले बैत के साथ बड़ी मुहब्बत और अकीदत थी। मामून ने अली रजा बिन मूसा काजिम की काबिलियत को देखते हुए उससे अपनी बेटी की शादी कर दी और सन 201 हिजरी में अली रजा को वली अहद बना दिया और अपने भाई मोतमिन को वली अहदी से हटा दिया। धीरे-धीरे खिलाफत पर अब्बासियों की ज्रगह अलवियों का गलबा होता गया। अली रजा की वली अहदी अलवियों की बरतरी और अजमियों की कामयाबी समझी जाने लगी।
इब्राहिम बिन मेंहदी की खिलाफत
25 जिलहिज्जा सन 201 हिजरी को अब्बासियों ने इब्राहिम बिन मेंहदी को खिलाफत के लिए चुन कर खुफिया तौर पर उसके हाथ पर बैअत की और सन 202 हिजरी में ऐलानिया तौर पर तमाम बगदाद वालों ने बैअत करके इब्राहिम बिन मेंहदी को खलीफा बनाया और मामनू को खिलाफत से अलग कर दिया।
इसके बाद हंगामों और जोड़-तोड़ का दौर चला और आखिरकार सन 203 हिजरी में इसे दबा दिया गया। इस तरह 17 जिलहिज्जा सन 203 हिजरी में इब्राहिम बिन मेंहदी की खिलाफत खत्म हो गई।
13 जुमादस्सानी 218 हिजरी में रूम के सफर से वापसी पर नहर वज्दून के किनारे मामून को बुखार हो गया और यहीं 18 रजब सन 218 हिजरी को खलीफा मामून का इंतकाल हो गया। मामून 48 साल की उम्र पाई और साढ़े बीस साल हुकूमत की।
इसके दौर में इस्लामी सलतनत बिखरने लगी थी। 172 हिजरी में मराकश (मोरक्को) के अंदर आजाद हुकूमत कायम हो गई। 184 हिजरी में त्युनिस और अलजीरिया का इलाका नाम के लिए मातहती में रह गया। 205 हिजरी में मामून ने ताहिर बिन हुसैन को खुरासान की गर्वनरी पर मुकर्रर किया, उस तारीख से ताहिर के खानदान की हुकूमत खुरासान में रही। सन 216 हिजरी में मुहम्मद बिन इब्राहिम को समन की हुकूमत सुपूर्द की गई और उसके बाद यमन की हुकूमत उसी के खानदान में रही। यमन भी खुरासान और अफ्रीका की तरह आजाद हो गया।
गरज यह कि मामून रशीद के जमाने तक इस्लामी दुनिया में पांच आजाद हुकूमतों की बुनियाद पड़ चुकी थी।