तारीखे इस्लाम

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(62 वीं किश्त)
मुतक्की लिल्लाह
मुतक्की लिल्लाह बिन मोतजिद बिल्लाह बिन मूफिक बिन मुतवक्किल सन 295 हिजरी में पैदा हुआ और सन 329 हिजरी में 34 साल की उम्र में खलीफा बनाया गया। 26 रजब सन 329 हिजरी में यहकुम कुर्दों के हाथों मारा गया।
बगावतें बढ़ती रहीं, मर्कज कमजोर हो गया, खलीफा की कोई कीमत न रही। राजधानी में भी उसके लिए अमान पाना मुश्किल हो गया।
मुस्तकफी बिल्लाह
अबुल कासिम अब्दुल्लाह मुस्तकफी बिल्लाह बिन मुक्तफी बिल्लाह सन 292 हिजरी में पैदा हुआ था। सफर 333 हिजरी में 41 की उम्र में तख्त पर बैठा। अबुल कासिम फजल बिन मुक्तदिर बिल्लाह भी खिलाफत का दावेदार था, वह छिप गया। मुस्तकफी ने उसे बहुत ढूंढा मगर यह हाथ न आया और मुस्तकफी के दौर में छिपा ही रहा।
जैसा कि कहा जा चुका है कि इस्लामी हुकूमत की सरहदें तो बराबर बढ़ती रहीं, लेकिन अब्बासी हुकूमत व खिलाफत की हदें सिमट कर बगदाद शहर तक आ गईं। खलीफा का काम सिर्फ यह रह गया था कि जब कोई दूत बाहर से आए तो उसे खलीफा के दरबार में हाजिर किया जाए और खलीफा की खूब नुमाइश कर उससे मनमाना काम लिया जाए।
बोया खानदान की हुकूमत
खानदान बोया के तीनों बेटे अली, हसन, अहमद हुकूमत व सरदारी हासिल कर चुके थे। अली (इमादुद्दौला) फारस पर कब्जा किये हुए था, हसन (रूकुनुद्दौला) को इस्फहान व तब्रस्तान की हुकुमत व सरदारी हासिल थी। अहमद (मुईजुद्दौला) अहवाज पर काबिज था।
जब इब्ने शेरजाद की अमीरूल उमराई में बगदाद के अंदर फितना व फसाद हो गया तो मुईजुद्दौला ने जो बगदाद के करीब था, बगदाद पर हमला किया। शेरजाद भाग कर बनु हमदान के पास मूसल चला गया और मुईजुद्दौला ने बगदाद पर आसानी से कब्जा कर लिया और खलीफा मुस्तकफी की खिदमत में हाजिर हुआ। उसने मुईजुद्दौला को मलिक का खिताब दिया। मुईजुद्दौला ने अपने नाम के सिक्के चलवाए और बगदाद पर पूरे कहर व गलबा के साथ हुकमत करने लगा।
कुछ दिनों बाद मुईजुद्दौला को मालूम हुआ कि खलीफा मुस्तकफी उसके खिलाफ कोई साजिश कर रहा है। भरे दरबार में मुईजुद्दौला के सिपाहियों ने खींच कर खलीफा को तख्त से उतार लिया और गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। उसकी आंखें निकाल ली गईं। यह वाकिया जुमादल आखर सन 344 हिजरी का है। खलीफा मुस्तकफी ने एक वर्ष चार महीने नाम की खिलाफत की और सन 348 हिजरी में कैद की हालत में फौत हुआ।
मुतीउल्ला
मुईज्जुदौला बिन बोया वैलमी का सबसे छोटा बेटा था। शीइयत उस पर गालिब थी, लेकिन इसके बावजूद उसने किसी अलवी केा खलीफा बनाने के बजाए अबुल कासिम फज्ल बिन मुक्तदिर को तलब किया और मुतीउल्लाह के लकब से तख्त पर बैठा कर बैअत की रस्म अदा की। मुतीउल्ला सन 261 हिजरी में पैदा हुआ था और जुमादस्सानी सन 334 हिजरी में तख्त पर बैठा।
मुईजुद्दौला ने 18 जिलजहिज्जा हिजरी को बगदाद में ईद मनाने का हुक्म दिया और इस ईद का नाम ’ईदे गदीर‘ रखा, खूब ढोल बजाए गए और खुशियां मनाईं गईं। इसी तारीख को यानी 18 जिलहिज्जा सन 35 हिजरी में हजरत उस्मान गनी रजि. चूंकि शहीद हुए थे, इसलिए उस दिन शियों के लिए गदीर की ईद मनाने का दिन तज्वीज किया गया;
अहमद बिन बायो वैलमी यानी मुईज्जद्दौला की इस ईजाद को जो 351 हिजरी में हुई, शियों ने यहां तक रिवाज दिया कि आजकल के शियों का यह अकीदा बन गया है कि ईदे गदीर का मर्तबा ईदुल अज्हा से भी ज्यादा बुलंद है।
ताजियादारी की ईजाद
सन 352 हिजरी के शुरू होने पर इब्ने बोया ने हुक्म दिया कि 10 मुहर्रम को हजरत इमाम हुसैन रजि. की शहादत के गम में तमाम दुकानें बंद कर दी जाएं। शहर व देहात के तमाम लोग मातमी लिबास पहनें और एलानिया नौहा करें। शियों ने इसको खुशी से पूरा किया क्योंकि शियों की हुकुमत थी। अगले साल 355 हिजरी में भी इसी हुक्म को दोहराया गया और यह मातम आज भी मनाया जाता है।
मुईज्जुद्दौला की वफात
अमान पर करामता का कब्जा था। सन 355 हिजरी में मुईज्जुद्दौला ने अमान पर दरिया के रास्ते फौज से हमला कर दिया औरा 9 जिलहिज्जा सन 355 हिजरी को अमान पर कब्जा कर दिया और करामता को वहां से भगा दिया। अमान से वापिस होकर वासित आया, यहां आकर बीमार हुआ, फिर बगदाद आया। बगदाद पहुंच कर बहुत इलाज किया, लेकिन आराम नहीं हुआ, बाईस साल हुकूमत करके रबीउल आखर सन 356 हिजरी में फौत हुआ।
इज्जुद्दौला की हुकमत
मुईज्जुद्दौला ने मरते वक्त अपने बेटे बख्तियार को अपना वली अहद बनाया था। वह मुईज्जुद्दौला के बाद इज्जुद्दौला के खिताब खलीफा से हासिल कर हुकूमत करने लगा।
सुबुक्तगीन एक मशहूर तुर्क सरदार था। उसने जीकादा सन 362 हिजरी में इज्जुद्दौला के खानदान वालों को कैद करके वासित भेज दिया। अब बगदाद में सुबुक्तगीन की हुकुमत कायम हो गई, जो सुन्नी हुकुमत थी। शियों को बगदाद से निकाल दिया गया । इसके बाद खलीफा मुतीउल्लाह को इस बात पर मजबूर किया गया कि अपने आपको खिलाफत से हटा ले, चुनांचे माह जीकादा सन 363 हिजरी में खलीफा मुतीअ ने अपने आपको हटा लिया और उसके बेटे अब्दुल करीम को ताइउन लिल्लाह के लकब से तख्त पर बैठाया गया।
खलीफा मुतीअ ने साढ़े 26 साल नाम की खिलाफत की। मुतीउल्लाह ने मुहर्रम सन 362 हिजरी में वफात पाई।
ताइउन लिल्लाह
अबुबक्र अब्दुल करीम ताइउन लिल्लाह बिन मुतीउल्लाह 318 हिजरी में पैदा हुआ और 45 साल की उम्र में 23 जीकादा 363 हिजरी में तख्त पर बैठा। सुबुक्तगीन को नस्रद्दौला का खिताब दिया और बजाए इज्जुद्दौला के सुलतान बनाया।
सुबुक्तगीन और खलीफा दोनों बाहर गए हुए थे। वासित के करीब पहुंच कर इन सुबुक्जगीन इंतकाल हो गया। तुर्काें ने उक्तगीन को अपना सरदार बना लिया।
इसके बाद इज्जुद्दौला और अज्दुद्दौला दोनों ने मिल कर बगदाद को घेर लिया, फिर सन 364 हिजरी में कब्जा भी कर लिया। अज्द्दुद्ौला ने फिर रजब 364 हिजरी को तुर्कों से पत्र व्यवहार कर खलीफा ताइउन लिल्लाह को बगदाद वापस बुला लिया। उसने इज्जुद्दौला को गिरफ्तार कर लिया और खुद हुकूमत करने लगा। लेकिन बाद में इज्जुद्दौला को कैद से निकाल कर इराक की हुकूमत सुपुर्द की और यह इकरार किया कि इराक में खुत्बा अज्दुद्दौला के नाम से पढ़ा जाएगा।
अज्दुद्दौला की हुकूमत
366 हिजरी में रूक्नुद्दौला का इंतकाल हो गया। इसके बाद अज्दुद्दौला बाप का जांनशीन हुआ और बगदाद के साथ-साथ बसरा पर भी कब्जा कर लिया। इसके बाद इज्जुद्दौला और अज्दुद्दौला के बीच लड़ाई हुई जिसमें इज्जुद्दौला को अज्दुद्दौला ने गिरफ्तार करके कत्ल कर दिया और मूसल व जजीरे पर कब्जा कर लिया।
सन 372 हिजरी में अज्दुद्दौला ने अपनी हुकूमत के पांच बरस छह महीने बिताने के बाद वफात पाई और उसका बेटा काकेजार गद्दी पर बैठा, वह सम्सामुद्दौला के नाम से मशहूर हुआ।