• अनुशासन प्रिय, कर्तव्यनिष्ठ एवं मृदुभाषी तथा दबे, कुचले तथा पिछड़े वर्ग के हितों का रक्षण करने की ललक रखने वाली भोपाल की नवनियुक्त पुलिस उप महानिरीक्षक श्रीमती अनुराधा शंकर सिंह एक प्रतिष्ठित परिवार से संबंध रखती हैं। उनके पिता रामचंद्र खान एक आईपीएस अधिकारी थे तथा माता श्रीमती ऊषा किरण खान एक सुप्रसिद्ध लेखिका हैं जिनकी रचनाएं पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. करने वाली श्रीमती सिंह के नाना बाबा नागार्जुन भी एक प्रख्यात साहित्यकार रहे हैं।
    श्रीमती अनुराधा शंकर की जहां भी पदस्थापना रही यहां के लोग आज भी उनको याद करते हैं और उन्हें बहुत सम्मान तथा आदर देते हैं। प्रस्तुत हैं श्रीमती अनुराधा शंकर सिंह से रईसा मलिक की बातचीत के कुछ अंश:-
    प्र. इस क्षेत्र में आप कैसे आईं?
    उ. मैं ऐसे परिवेश से संबंध रखती हूं जहां शिक्षित होने के बाद अधिकांश युवक-युवतियां यूपीएससी की परीक्षाओं में सम्मिलित होते आए हैं। मैंने भी अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद यूपीएससी की परीक्षाओं में सम्मिलित होते आए हैं। मैंने भी अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद यूपीएससी की परीक्षा दी। मेरा चयन हो गया और मुझे आईपीएस कैडर मिला। इस क्षेत्र में आने के संबंध में पहले से कोई विचार नहीं किया था। मेरी सोच यह थी कि ऐसी नौकरी में जाऊं जहां प्रतिष्ठा के साथ ही समाज सेवा का अवसर भी प्राप्त हो सके।
    प्र. इस क्षेत्र में आपके प्रेरणास्त्रोत कौन हैं?
    उ. इस क्षेत्र में विशेष रूप से कोई मेरा प्रेरणा स्त्रोत नहीं है।
    प्र. इस क्षेत्र में विशेष उल्लेखनीय उपलब्धियां क्या रहीं?
    उ. वैसे तो हर अधिकारी के सेवा काल में कई ऐसे उलझे मामले आते हैं जिन्हें सुलझाना अपने आपमें किसी उपलब्धि से कम नहीं, मैंने भी ऐसे कई मामलों को सुलझाया है। मेरी पोस्टिंग बतौर एसपी विदिशा तथा होशंगाबाद में रही है, वहां के लोग मेरे काम के बारे में बेहतर बता सकते हैं।
    प्र. भविष्य में क्या करने की योजना है?
    उ. भारतीय पुलिस को एक ऐसा आदर्श मंच बनाऊं जो सामाजिक परिवर्तन में अपना योगदान दे। विशेष कर दबे, कुचले एवं पिछड़े वर्ग के लोगों की समस्याओं का निराकरण हो सके। इस वर्ग के लोगों में आत्मविश्वास पैदा हो और पुलिस की छवि एक मित्र की बन सके ऐसा मेरा प्रयास रहेगा।
    प्र. कोई ऐसा कार्य जो आपने सोचा हो परंतु अभी कर नहीं पाई हों?
    उ. मैं चाहती हूँ कि मेरी जहां पदस्थापना हो वहां के अच्छे लोग थानों में बिना किसी डर के जाएं और पुलिस का सहयोग उन्हें प्राप्त हो तथा अपराधी किस्म के लोगों में ऐसा भय हो कि यह कोई अपराध करने से पहले हजार बार सोचें। समाज में परिवर्तन के लिए पुलिस अपना योगदान दे ऐसा मेरा प्रयास रहेगा।
    प्र. कोई ऐसी घटना जो याद रह गई हो?
    उ. मैं जब विदिशा में पुलिस अधीक्षक थी तो थाना देहात के अंतर्गत एक युवती का बलात्कार कर हत्या कर दी गई थी। उसकी लाश के पास एक दो वर्ष का बच्चा भी मिला था। विदिशा में चूंकि बाल सम्प्रेषण गृह नहीं था अत: यह समस्या आई की बच्चे को कहां रखा जाए। फिर हम लोगों ने यह तय किया कि इस बच्चे को थाने में ही रखा जाए क्योंकि थाने में हर समय कोई न कोई मौजूद रहता है।
    लाश की शिनाख्त में 8-10 दिन का समय लग गया। शिनाख्त होने के बाद पता चला कि वह युवती रायसेन की रहने वाली थी। उसके पिता, पति एवं अन्य परिवारजन आए और बोले की उसके साथ एक दो वर्ष का बच्चा भी था। हमने बताया कि बच्चा थाने में हैं। वह लोग जब बच्चे को लेने थाने पहुंचे तो बच्चा वहां के थानेदार रमेश राठौर की गोद में बैठा था। जब उसके परिजनों ने उसे ले जाने का प्रयास किया तो उसने थानेदार की कालर पकड़़ कर रोना शुरू कर दिया और बोलने लगा कि चाचा, मैं नहीं जाऊंगा। बहुत मुश्किल से उसे उसके परिजनों के साथ भेजा जा सका।
    इस घटना से पुलिस का मानवीय चेहरा सामने आता है कि किस प्रकार थाने में उस बच्चे के साथ सबने प्रेमपूर्वक व्यवहार किया कि वह अपने परिजनों के साथ जाने को तैयार नहीं हुआ। यह घटना मुझे आज भी याद है।
    प्र. कोई ऐसा क्षण जब आपने अपने काम के कारण परेशानी महसूस की हो?
    उ. हमारे काम के दौरान कई ऐसे क्षण आते हैं जब परेशानी हो सकती हैं, परंतु मैं किसी भी परेशानी अथवा मुश्किल से नहीं घबराती। हर चीज का सामना पूरी हिम्मत और हौसले से करना मेरा स्वभाव है। हां, कई बार काम पूरा हो जाने के बाद ऐसा लगता हेै, कि किसी मौके पर में परेशानी हो सकती थी, परंतु अपनी हिम्मत और हौसले से मैं हर विषम से विषम परिस्थिति में भी अपना काम कर पाने में सक्षम रहती हूं।
    प्र. आपके विभाग में कार्यरत महिलाओं की स्थिति कैसी है?
    उ. हमारे विभाग में उच्च पदों पर जो महिलाएं पदस्थ हैं उनकी स्थिति तो बहुत अच्छी है और उन्हें दूसरे पुरूष अधिकारिायों के समान ही सम्मान एवं रूतबा प्राप्त होता है। लेकिन निचले पदों पर अर्थात कांस्टेबिल से लेकर थानेदार तक के पदों पर कार्यरत महिलाओं को अहुत ही विषम परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। चूंकि उनके साथ पुरूष कर्मियों की संख्या अधिक होती है ऐसे में उनको अपने कार्य से अपने आपको सक्षम सिद्ध करना पड़ता है।
    प्र. आम महिलाओं के लिए आप कुछ संदेश देना चाहेंगी?
    उ. अपने आप पर विश्वास करना महिलाओं के लिए जरूरी है। अपने आपको महिलाएं अच्छा सुन्दर और सक्षम समझें। इससे दूसरों की नजरों में भी आपका सम्मान बढ़ेगा। उच्च पदों पर आसीन महिलाएं अपने आपको विशेष व्यक्ति न समझ कर आमजन के रूप में देखें और आम महिलाओं के उत्थान के लिए अपना हरसंभव प्रयास करें। – रईसा मलिक
    (सातवां फलक के मई 2005 में प्रकाशित)