नयी दुनिया की खोज किसने की थी?

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500 वर्ष पहले कोलम्बस ने अमेरिका की खोज की थी। उससे पहले नोर्स कबीले अमेरिका की धरती पर पैर रख चुके थे- लेकिन अब यह कहा जाने लगा है कि नई दुनियां के खोजकर्ता कोई और ही थे अर्थात्ï कोलम्बस से पहले भी अमेरिका को खोजा जा चुका था। ड्डह्यक्या फोनेशियनों, चीनियों या वाइकिंगों ने कोलम्बस की प्रसिद्घ यात्रा से पहले ही नई दुनियां तक पहुंचने में सफलता प्राप्त कर ली थी? अमेरिका के पुराने खण्डहरों में आज भी चीनी, फोनेशियायी तथा नीग्रो मुखाकृतियों की प्रतिमाएं मिलती हैं। क्या ये इस बात का सबूत नहीं है कि कोलम्बस के पहले भी नई दुनिया कोई अनजानी जगह नही थी इस विषय में शोधकार्य चल रहा है। अभी तक हुए शोधकार्य से जो परिणाम निकले हैं, वे निश्चय ही चौंका देने वाले हैं।
सन्ï 1450 और सन्ï 1550 के बीच के सौ वर्षों को खोजों का युग कहा जाता है क्योंकि इसी अवधि में नई दुनियां की खोज हुई थी। कोलम्बस द्वारा अमेरिका की खोज इतनी महत्वपूर्ण साबित हुई कि उसने अन्य खोजों के महत्व को बहुत कम कर दिया। यदि इस तथ्य को एक अंतिम सच्चाई मान लिया जाए कि 40,000 वर्ष पहले एक ज़मीनी पुल से अमेरिकी आदिवासी रैड इण्डियन एशिया से अमेरिका पहुंचे थे तो इस सवाल का जवाब देना मुश्किल हो जाएगा कि पूरे उत्तरी अमेरिका में इन आदिवासियों का जीवन और समाज आदिकालीन अवस्था में क्यों बना रहा, जबकि दक्षिण अमेरिका में मैक्सिकों, यूकाटान व पेरू में इस बीच उच्च कोटि के तकनीकी ज्ञान से युक्त जटिल समाजों की रचना हो चुकी थी। इंका और अज्टेक सभ्यताओं के जन्म से पहले ही दक्षिण अमेरिका का यह विकास हो गया था। उत्तरी अमेरिका के अविकसित बने रहने का रहस्य खोजने में ही इस प्रश्र का उत्तर निहित है कि क्या कोलम्बस से पहले भी नई दुनियां अर्थात्ï अमेरिका की खोज हो चुकी थी?
प्रसिद्घ यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस ने लिखा है कि ईसा से 6 सौ वर्ष पहले मिस्र के फराओं नेकों ने फोनेशियन नाविकों को अफ्रीका के चक्कर लगाने का आदेश दिया क्योंकि वे ही उस $जमाने के सबसे कुशल नाविक थे। बाइबिल में इन फोनेशियनों को कैनेनाइट कहा गया है। ये फोनेशियन अफ्रीका से सोना और चांदी, साइप्रस से तांबा, भारत से संगमरमर तथा स्पेन से टिन, सीसे व लोहे का व्यापार करते थे।
फोनेशियनों ने लाल सागर में अपने जल-पोत उतार दिए और कई वर्ष बाद लौट कर फराओं को बताया कि अफ्रीका का चक्कर लगाते समय उन्होंने सूर्य को दक्षिण दिशा में देखा। हेरोडोटस ने इस दावे स्वीकार नहीं किया है लेकिन बाद के विद्वानों ने इसकी सत्यता मानी है। अब यह पता चल गया है कि इन नाविकों ने कैप्रिकोर्न के उष्णकटिबंध से आगे तक की यात्रा की थी क्योंकि यही सूर्य आकाश में उत्तर से पश्चिम की ओर यात्रा करता है।
काथेंज (अफ्रीका का प्राचीन नगर) के फोनेशियनों ने अपने तीन डैकों वाले जहाजों में बैठकर एक अनुमान के अनुसार एजोरम तक पहुुंचने में सफलता प्राप्त की थी। यह भी दावा किया गया है कि मिस्र के फराओं द्वारा करवाया गया यह अभियान पुरानी दुनिया के कई दुनिया में प्रथम स्थलावतरण पर जा कर समाप्त हो गया।
सन्ï 1872 में ब्राजील के एक बागान में मिला एक शिलालेख इस तथ्य का सबूत माना जाता है। रियोडि जैनेरियो ब्राजील के संग्रहालय के निदेशक लादिस्लाउ नेटो ने इस शिलालेख को फोनेशियन बताया और इस पर लिखी भाषा का अनुवाद भी कर डाला। इस शिलालेख में बताया गया है कि किस तरह देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए एक युवक की बलि देकर लाल सागर में 10 जहाज यात्रा करने निकले और दो साल तक अफ्रीका का चक्कर काटते रहे। तूफान ने जहाजों को एक दूसरे से अलग कर दिया। इसी कारण 12 पुरूष व स्त्रियों ने एक ‘नए तटÓ पर डेरा डाल दिया।
एक ‘नए तटÓ को ‘लोहे का द्वीपÓ भी समझा जाता है क्योंकि ब्राजील के मिनास गेराइस के इलाके में, जहां पर शिलालेख मिला था, लोह अयस्क भारी मात्रा में मिलता है।
इस शिलालेख की ऐतिहासिक प्रामाणिकता भी निर्विवाद नहीं है। अमेरिका की खोज का इतिहास लिखने वाले सेमुअल इलियट मोरिसन ने इस पूरी कहानी को कल्पना की उपज बताया है तथा एक अन्य विशेषज्ञ फ्रेंक एम क्रास ने इसे भाषा के स्तर पर फोनेशियायी मानने से इंकार कर दिया है।
सन्ï 1658 में कैप कोड मैमाचुसेट्ïस के बौर्न नामक स्थान पर पाए गए एक शिलालेख से भी कुछ लोग यह मतलब निकालते हैं कि नई दुनिया की खोज पहली बार फोनेशियनों ने ही की होगी लेकिन येल इतिहासकार राबर्ट लोपेज ने इस पत्थर की प्रामाणिकता को भी मानने से इंकार कर दिया है।
फोनेशियनों को अमेरिका का सच्चा अन्वेषक प्रमाणित करने वाला एक मानचित्र सन्ï 1513 में एक टुर्किश नौसेनाध्यक्ष ने तैयार कराया था। इस नक्शे में दक्षिण अमेरिका का पूर्वी तट ठीक-ठीक प्रदर्शित किया गया था। यह नक्शा अलक्जेडिय़ा के विशाल पुस्तकालय के चार्टों पर आधारित था। यह पुस्तकालय इसी में 47 वर्ष पूर्व आग में जल कर नष्टï हो गया था। अगर ऐसा था तो निश्चित रूप से यह जानकारी मिस्री नक्शानवीसों को फोनेशियन नाविकों से ही मिली होगी। यूनानी लेखक डियोडोरस सिकुलुस ने भी ईसा से एक शताब्दी पूर्व अमेरिका की खोज का श्रेय फोनेशियनों को दिया है। फोनेशियनों के अलावा अमेरिका की खोज का श्रेय चीनियों को भी दिया जाता है। बताया गया है कि 459ई. में हुई शेन चार अन्य बौद्घ भिक्षुओं के साथ नौकाओं में सवार होकर उत्तरी प्रशांत महासागर को पार करता हुआ लम्बे गोलाकार मार्ग से उत्तरी अमेरिका पहुंचा, जहां से मैक्सिको (दक्षिण अमेरिका) पहुंचना आसान था। चीनियों से युद्घ से बचने वाली तथा किलो व दीवारों का प्रयोग न करने वाली तथा लिखने की कला में कुशल एक सभ्यता को देखा। उन्होंने फू-सांग नामक वृक्ष के खाने योग्य बेम्बू शूट जैसे अंकुर देखे। वे नाशपती जैसे लाल फल देने वाले पेड़ थे, जिनकी छाल से कपड़ों के लिए डोरा तथा कागज बनता था व लकड़ी का मकान बनाने में उपयोग किया जाता था।
हुई शेन ने अपने वर्णन में घोड़ों, ऊंटों तथा हिरनों का भी जिक्र किया है, जो गाडिय़ां खींचते थे लेकिन इतिहास बताता है कि स्पेनियों के हमले से पहले अमेरिकी इण्डियनों ने पहिया देखा तक नहीं था। इससे चीनियों का वर्णन अतिश्योक्तिपूर्ण लगने लगता है।
अमेरिका के पुराने खण्डहरों में आज भी चीनी, फोनेशियायी तथा नीग्रो मुखाकृति की प्रतिमाएं मिलती हैं। माया सभ्यता के खण्डहरों में हाथ और पगड़ीधारी महावत से मिलती-जुलती आकृति का पत्थर मिल चुका है। जाहिर है कि एशियायी सभ्यता का स्पर्श मिले बिना यह शिल्प विकसित नहीं हो सकता था।
चीनियों के बाद तीसरा नम्बर आता है- बाइकिंग योद्घाओं का, जो अपने जहाजों में बैठकर वार्षिक लूट-मार करने के लिए अमेरिका के तट की ओर आ निकले होंगे। कोलम्बस से बहुत पहले 982 ई., 986 ई. व 1001 ई. में कई वाइकिंग योद्घाओं के परिवारों ने सैकड़ों हजारों मील की यात्रा करते हुए नए-नए भू-खण्डों की खोज के दौरान न जाने कितने नगर बसाए होंगे और नई दुनियां के कितने हिस्सों को प्रकाश में लाने की सफलता प्राप्त की होगी।
इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि अमेरिका की खोज के समय वाइकिंगों ने जिन भू-खण्डों पर कदम रखे, उनके नाम उनकी प्राकृतिक विशेषताओं के आधार पर ही रख दिए। किसी जगह को उन्होंने ‘चपटी चट्टïानों का देशÓ कहा तो अंगूर पैदा करने में सक्षम इलाके को उन्होंने वाइनलैण्ड की उपमा दी।
1004ई. में थोरवाल्ड नामक वाइकिंग ने कीलनैस अंतरीप नामक समुद्री भाग की खोज की। वाइकिंगों की यात्राओं से जिस भूगोल का हमें परिचय मिलता है, वह बहुत अस्पष्टï किस्म का है लेकिन उसकी मौजूदगी से भी इंकार नहीं किया जा सकता। हां, उनकी अस्पष्टïता उनकी सच्चाई पर संदेह का पर्दा जरूर डाल देती है।
आधुनिक विद्वानों ने अब यह मान लियाहै कि उस समय का ‘जंगलों का देशÓ आज का बेफिन द्वीप है, उस समय का ‘चपटी चट्टïानों का देशÓ आज का 30 मील लम्बा लैब्राडोर का तट है तथा वाइन लैण्ड, सन्ï 1961 से 1968 तक की गई खुदाई में निकला लॉसे ऑक्स मीडोस है। वाइकिंगों को ही ग्रीनलैण्ड की खोज का श्रेय जाता है। पुर्तगालियों ने भी दावा किया है कि कोलम्बस से पहले उनके नाविकों ने अमेरिका को खोज निकाला था परंतु अभी तक पुर्तगाली अपने दावे को पूर्ण रूप से प्रमाणित नहीं कर पाए हैं।
पुर्तगाली इतिहासकार डॉ. एण्टोनिओ बाइआओ का तर्क है कि पुर्तगाल में हमेशा नई दुनिया के होने का संदेह किया जाता था और इन्हीं संदेहों की रोशनी में कोलम्बस ने सितम्बर-अम्टूबर सन्ï 1492 में नई दुनियां की खोज कर डाली।
दिलचस्पी का विषय यह है कि अमेरिका का नाम उस व्यक्ति के नाम पर पड़ा जिसने अमेरिका की कोलम्बस से पहले खोज कर डालने का झूठा दावा किया था। फ्लोरेंटाइन अमेरिगो वेसप्पूशे के इस आत्मप्रशंसा से भरे दावे से प्रभावित होकर सन्ï 1507 में नई दुनियां के नक्शे पर ‘अमेरिकाÓ का नाम नक्शानवीस मार्टिन वाल्डसीम्मुलर ने लिख दिया।
अमेरिगो का दावा आज झूठा साबित हो गया है। ‘अमेरिकाÓ नाम आज भी जब तब हमें उस झूठ की याद दिलाता रहता है परंतु क्या फोनेशियनों, चीनियों, वाइकिंगों व पुर्तगालियों के दावे भी असत्य हैं? क्या कोलेम्बस से पहले वास्तव में नई दुनियां की खोज नहीं हो सकी थी? इस रहस्यमय प्रश्र का उत्तर कौन देगा?
– अब्दुल रज्जाक