नवाब गौस मोहम्मद खान के दौर में बाहरी आक्रमणों का रियासत पर जोर था। मराठांे ने पूरे देश में आक्रमण कर छोटी रियासतों के शासकों को परेशानी में डाल दिया था। भोपाल रियासत देश के मध्य में स्थित थी और मराठा सरदारों को खटक रही थी, इसलिए वह इस रियासत को अपनी राह का कांटा मानकर इसे अपने अधीन करना चाहते थे।
जब नवाब गौस मोहम्मद खान 1808 में तख्त पर बैठे तो उस वक्त रियासत के ऊपर खतरे के बादल मण्डरा रहे थे और रियासत दुश्मनों के आक्रमण से त्रस्त थी। परंतु ईश्वर भी हर बीमारी की औषधि रखता है, इस समय भोपाल रियासत की नींव रखने वाले परिवार में गैर मामूली वीरता और निडरता को देकर नवाब वजीर मोहम्मद खान को पैदा किया था। इन्होंने अपनी वीरता से रियासत के दुश्मनों का सामना किया और रियासत को बचाये रखने में पूरा योगदान दिया। नवाब गौस मोहम्मद तो सिर्फ नाम के नवाब थे, शासन पर पूरी पकड वजीरूद्दौला की थी।
नवाब साहब अपने महल से बाहर कम ही निकलते थे, इनकी दो पत्नियां थीं, जिनमें पहली बीवी अमीर बेगम से हातिम मोहम्मद खान हुए, जो मजजूब और दीवाना कहलाते थे। दूसरी पत्नी चांदनी बेगम (जैनब बेगम) से माअज मोहम्मद, फौजदार मोहम्मद और नवाब गौहर बेगम उर्फ नवाब कुदसिया बेगम हुईं। जिनका इस रियासत को संवारने में बहुत बडा योगदान रहा।