जैसा की पूर्व में आ चुका है कि दीवान छोटे खान और मांजी साहिबा के इंतकाल के बाद, छोटे खान के पुत्र नवाब खान की गद्दारी और राघव जी भोंसले को भोपाल पर आक्रमण के लिए उकसाना, नागपुर का होशंगाबाद पर अधिकार कर लेना। फिर मुरीद मोहम्मद की दीवानी और इसका भी गद्दारी करके भाग जाना आदि घटनाओं से रियासत समाप्त हो जाने की आशंका के दौर में वजीरूद्दौला सामने आए।
नवाब वजीर मोहम्मद खान उर्फ वजीरूद्दौला साहसी और तलवार के धनी व्यक्ति थे, छह वर्षों तक मराठाओं के आक्रमण का डट कर उत्तर देते रहे इनकी सफलताओं से इनकी वीरता का सिक्का लोगों के दिलों पर बैठ गया था।
इनके कार्यकाल में रियासत सात बार खून की नदियों से तैर कर बाहर निकली। इन सात युद्धों में रियासत की जनता ने बहुत आत्मविश्वास और वीरता के साथ इनका साथ दिया। इस दौर में मराठा सेनायें पूरे देश में आक्रमण कर छोटी रियासतों को तिनकों की तरह समाप्त कर अपनी हुकूमत में शामिल कर रही थीं। इस दौर में सातों युद्धों के पश्चात भोपाल रियासत अपना अस्तित्व बचाये रखने में सफल रही।
वजीरूद्दौला की यह सफलतायें राघव जी भोंसले तथा महाराजा सिंधिया को एक आंख नहीं भाईं। इसलिए नागपुर से नवाब सिद्दीक अली खान और ग्वालियर से नातानाथ गौस मोहम्मद खान की शह पर भारी सेनायें लेकर भोपाल की ओर बढे। मामले की गहराई को समझते हुए वजीरूद्दौला गिन्नौर चले गये।
नवाब गौस मोहम्मद खान ने इस शर्त पर कि नागपुरी सेना भोपाल में रहेगी और इनके पुत्र माअज मोहम्मद खान को उनके साथ रहने की शर्त पर संधि कर ली। इस प्रकार भोपाल रियासत पर भी मराठाओं का अधिकार हो गया।
वजीरूद्दौला को जब यह ज्ञात हुआ तो वह शीघ्र ही भोपाल की ओर अपनी सेना के साथ बढे और नागपुरी सेना को यहां से खदेड कर भगा दिया। जब उन्होंने ऐसी शर्तों पर संधि के बारे में नवाब साहब से पूछा तो उन्होंने अपने सलाहकारों का हवाला दिया, इन सभी गलत सलाहकारों को वजीरूद्दौला ने कडी सजायें दीं।
इसके पश्चात वजीरूद्दौला नवाब साहब को साथ लेकर रायसेन पहुंचे, वहां से अहमदपुर से विदिशा तक का क्षेत्र वापस अपने अधिकार में किया। विजय बहादुर ने मराठाओं को साथ लेकर सामना किया, मगर उसे पराजय का सामना करना पडा।
वजीरूद्दौला जब भोपाल वापस पहुंचे तो उन्हें नागपुर के सरदार गौर खान के सेना सहित चैरासी नामक स्थान पर पहुंचने का समाचार मिला। उसी समय उन्होंने अपनी सेना के साथ चैरासी की ओर कूच कर दिया।
नर्बदा के किनारे दोनों सेनाओं के बीच जम कर संघर्ष हुआ, इसमें भी विजय भोपाल की सेनाओं की हुई और नागपुरी सेनाओं को मैदान छोडना पडा। भोपाल वापसी पर पुनः सूचना मिली कि महलपुर के किले के पर नागपुर के सरदार ने अधिकार कर लिया है, वहां पहुंचे और किले को दोबारा अपने अधिकार में ले लिया।
इसके पश्चात अमीर खान (जो टोंक रियासत के नवाब हुए) पिण्डारों एवं नागपुरी सेनाओं से युद्ध के लिए भोपाल के निकट से गुजरे। उन्होंने वजीरूद्दौला से सहायता मांगी, वजीरूद्दौला इनके साथ युद्ध के मैदान में उतरे मगर अमीर खान बीच में ही भाग निकला। इसके बावजूद वजीरूद्दौला को इस युद्ध में भी सफलता प्राप्त हुई।
वजीरूद्दौला को अपने दौर में अधिकतर समय युद्ध के मैदान और विद्रोहों को दबाने में बिताना पडा और अधिकांश मुकाबलों में उन्हें सफलता प्राप्त हुई। भोपाल रियासत को दुश्मनों से बचाने में वजीरूद्दौला जी जान से जुटे रहे। कहने को तो रियासत के शासक नवाब गौस मोहम्मद थे, परंतु रियासत में आदेश वजीरूद्दौला के ही चला करते थे।