नवाब सुल्तान जहां बेगम
नवाब सुल्तान जहां बेगम की पैदाइश 9 जुलाई 1858 ई. को मोती महल में हुई। इनकी नानी सिकन्दर जहां बेगम ने फरमाया कि यह बच्ची मुझे सात बेटों स ेज्यादा अजीज है। नानी ने ही इनकी तालीम और तरबियत का इंतेजाम किया। कुरआन पाक हाफिज सैय्यद मोहम्मद सूरती, तर्जुमा कुरआन मदारूल मुहाम जमाल उद्दीन और अंग्रेजी मुंशी हुसैन खां से सीखी। इनकी तालीम के लिए एक खास मदरसा कायम किया गया जिसके अन्दर अहमद अली खान, सुल्तान दूल्हा, और आलमगीर मोहम्मद खान, सदर मोहम्मद खान के साथ तालीम पाते थे। जब 1 नवम्बर 1868 को शाहजहां बेगम रियासत की फरमा रवां हुईं तो इनको रियासत का वली अहद बनाया गया।
सुल्तान जहां बेगम को इनकी वालिदा ने हुकूमत की तरबियत कुछ इस तरह से दी कि मीर मुंशी मोहम्मद अहमद रियासती अहकाम को पहले उनकी खिदमत में पेश करते, जब उन पर सादिर करतीं तो शाहजहां बेगम इन अहकाम को मंजूर फरमातीं। जो सुधार के लायक होते उनमें सुधार करतीं। इनकी वालिदा ने तालीम पूरी होने पर निहायत शान व शौकत से 1871 में नशरह की तकरीब के अरकाने सलतनत और रियाया को जोडे बीडों से नवाजा। इनकी नानी सिकन्दर जहां ने पिछले अनुभवों को देखते हुए इनके शौहर का चुनाव बचपन में ही कर लिया। अहमद अली खां मीराजीखेल जो जलाल खान की औलाद से एक जदी थे उनको जलालाबाद से बुला कर तालीम व तरबियत का आला इंतजाम किया। फिर इनकी परनानी कुदसिया बेगम और गवर्नर जनरल की मंजूरी से 18 अक्टूबर 1874 को मंगनी कर दी गई और एक साल बाद यानि 1875 में शरई सादगी के साथ अक्द निकाह हो गया, जिसके अंदर फिजूल रस्मों को खत्म किया गया। काजी जैनुल आबेदीन ने खुत्बा निकाह पढाया। इस शादी के साथ बहुत सी गरीब और नादार बच्चियों की शादियों सरकारी खर्चे से की गईं। अहमद अली खां को सुल्तान-उद-दौला का खिताब मिला।
नवाब सुल्तान-उद-दौला से एक औलाद साहबजादी बिल्कीस जहां बेगम 1875ब में हुईं और 12 साल की होकर गुजर गईं। फिर तीन पुश्तों के बाद इनके खानदान में लडका हुआ यानि नवाब नसरूल्ला खां की पैदाइश 1876 में हुई। इससे इनके पूरे खानदान में खुशी की लहर दौड गई। इसके बाद 1878 में जनरल औबेदुल्ला खां की पैदाइश हुई। इनके बाद आसिफ जहां बेगम की पैदाइश हुई। लेकिन इनका भी 14 साल की उम्र में इंतकाल हो गया। सबसे आखिर में छोटे साहबजादे नवाब हमीदुल्ला खां 1894 में पैदा हुए।
नसरूल्ला खां और जनरल औबेदुल्ला खां की शादियां सुल्तान-उद-दौला की भतीजियों के साथ 1905 में हुआ। फिर सरकारे आलिया के तीनों साहबजादों की साखें शज्र उनकी जिन्दगी में फली-फूलीं और फैलीं।
तख्त नशीनी
सुल्तान जहां बेगम को अपनी वालिदा के सामने हुक्मरानी के हर तरह के तर्जुबात से वाकफियत हुई। इसलिए जब अपनी वालिदा के इंतकाल पर रईसा तस्लीम की गईं तो 4 जुलाई 1901 को एजेन्ट जनरल की मौजूदगी में रस्में ताजपोशी की गई। और नवाब अहमद अली खां इनके शौहर को अहतेशामुल मुल्क आलीजाह का खिताब मिला।
हालांकि आपके सामने ऐसे कोई हालात पेश नहीं आए जैसे कि नवाब वजीर मोहम्मद खान और सिकन्दर जहां बेगम के सामने पेश आए थे। बीते वर्षों में पडे सूखे ने आपकी रियासत को बहुत नुकसानात पहुंचाए थे। जनगणना में आबादी 30 फीसदी कम हो गई और खेती की जमीन एक तिहाई के करीब ही आबाद रह गई।
रियासत के हालात सुधारने के लिए आपने बहुत से कदम उठाये। खान बहादुर मौलवी अब्दुल हई, वजीरे रियासत एक तर्जुबेकार शख्स थे। साथ ही नवाब अहमद अली खां का पुख्ता तर्जुबा आपको हुक्मारानी में मदद व रहनुमाई करता रहा। सुल्तान जहां बेगम ने कुदसिया बेगम की तरह दराज उम्र और सिकन्दर जहां बेगम और शाहजहां बेगम की तरह शोहरत और इकबालमंदी हासिल की। फिर 1902 में बडे साहबजादे नवाब नसरूल्ला खां को वली अहदे रियासत बनाया गया।
सरकारे आलिया सुल्तान जहां बेगम अपनी रियासत की खुशहाली और तरक्करी के लिए मन्सूबा बना रही थीं कि अचानक नवाब सुल्तान दूल्हा का 4 जनवरी 1902 ेको इंतकाल हो गया। सुल्तान जहां बेगम को सदमा बेवगी से दो चार होना पडा। नवाब सुल्तान जहां बेगम के शौहर होने के साथ ही सुल्तान दूल्हा इनके सच्चे मुख्लिस मुशीर (सलाहकार) भी थे। उनके इंतकाल से सुल्तान जहां बेगम को बहुत अफसोस व सदमा हुआ। (क्रमशः)
गतांक से आगे
उनकी वालदा नवाब शाहजहां बेगम की सखावत और दरियादिली ने शाही खजाने को खाली कर दिया था और उनकी लम्बी बीमारी की वजह से बद नियत अफसरों की भी बनाई थी इसलिए जब उन्होंने हुकूमत का चार्ज लिया तो खजाने में कुल 40 हजार रूपये थे, जो तनख्वाह अदा करने के लिये भी नाकाफी थे। रियासत की आमदनी बढाने के लिए उन्होंने बहुत से सुधार किये, कुछ नये कानून बनाये।
अवाम की हालत मालूम करने के लिए पहले साहबजादों को फिर 1904 में खुद देहातों का दौरा किया। लिहाजा रियासत की आमदनी 28 लाख से 18 लाख रह गई थी। सुल्तान जहां बेगम के बनाये नये कानूनों के लागू होने के बाद बढकर 35 लाख 59 हजार 937 हो गई। सरकारे आलिया ने आम जनता के पिछले बकाया और तकलीफ देह टेक्सों को खत्म कर दिया। चूंकि हिन्दुस्तान जागीदाराना दौर से निकलकर सरमाया दाराना दौर में दाखिल हो रहा था, जम्हूरियत की किरणें भी मुल्क में फैलती जा रही थीं इसलिए महकमा तन्जीमात के जरिये 12 साल के अरसे में 155 कानून जारी किये। फिर 1922 में एक स्टेट कौंसिल कायम की जिसके अन्दर सरकारी व गैर सरकारी अहम् शख्सों को शामिल करके रियासत को जम्हूरी निजाम की दहलीज पर ला खडा किया।
रियासत भोपाल को सिकन्दर जहां बेगम ने सबसे पहले संवैधानिक और कानूनी रियासत बनाया। फिर शाहजहां बेगम ने बदलते हुए हालात के पेशेनजर उन कानूनों में थोडा बहुत सुधार करके उनको लागू किया। जब सुल्तान जहंा बेगम आईं तो उन्होंने रियासत को जम्हूरी निजाम के सांचे में ढालने की कोशिश की। वो पहली शासक थीं जिन्होंने म्यूनिस्पल्टी के अधिकार आम जनता को दिये। और इस मातहत सेहत, पानी सप्लाई, सडकों की रोशनी के लिये महमकमें कायम किये थे, जिनका खर्चशाही खजाने से पूरा किया जाता था। इस तरह सन् 1909 में शहर की खास-खास सडकों पर बिजली की रोशनी का जाल बिछाया गया। गली कूचों को पुख्ता कराया गया और कई जगह खूबसूरत पार्क बनाये गये। प्रिंस आॅफ वेल्स अस्पताल और लेडीज अस्पताल को भी तरक्की दी। तिब्बी, यूनानी को बढावा देने के लिए आसिफिया तिब्बीया काॅलेज कायम किया। इसी सन् में नर्सिंग होम स्कूल कायम करके इसके लिये वजीफे मुकर्रर किये।
अपने बेटे नवाब अब्दुल्ला उबैदुल्ला खां को फौजी तालीम देकर बकायदा जनरल बनाया गया। जिसके बिना पर विश्व युद्ध 1914 में भोपाल के फौजियों ने भी हिस्सा लिया। सरकारे आलिया ने इन इन्तजामी वा इस्लाही कामों के साथ-साथ तामीरात की तरफ भी कदम बढाया अपने शौहर के नाम पर एक नई आबादी अहमदाबाद को एक बुर्जुग हस्ती शाह जियाउद्दीन की टेकरी पर बसाया गया। जिसके अन्दर कस्रे सुल्तानी, शाही महलाब, पुराने सेक्रेट्रीएट, हमीदिया लाइबे्ररी, एलेक्जेन्ड्रिया हाई स्कूल, मदरसा उबैदिया वगैरह की इमारतें बनवाईं। इसी तरह सुर्ख पत्थर का अजायब खाना, मिन्टोहाल, विधानसभा, हमीदिया अस्पताल वगैरह की तामीर कराई।
सरकारे आलिया के काबिलेकद्र कारनामों में सबसे ज्यादा अहम् कारनामा तालीमी तरक्की है। उनकी खुसूसी तव्वजह का मरकज बना। औरतों की भलाई के सिलसिले में इनका खुसूसी कारनामा यह है कि गरीब मुसलमान औरतें अपने जाहिल और शरह से नावाकिफ शौहरों के हाथों तरह-तरह की जुल्म और ज्यादतियों का शिकार सरकारे आलिया ने इन मुश्किलात के हल के लिये एक मस्किदा तैयार कराया, इसके अन्दर ऐसे जुल्म करने वाले शौहरों से छुटकारा हासिल करने के लिए कानून लागू किये गये। इसी मशवरे की बुनियाद पर उलेमाए हिन्द की कोशिशों से शरियत बिल पार्लियामेंट में पेश हुआ जिसने काजिमी एक्ट के नाम से शोहरत पाई। इसके मदरसे औरतों की बहुत सी परेशानियों को दूर करने में मदद मिली।
बहरहाल नवाब सुल्तान जहां बेगम की जाते गिराम बकौल अल्लामा नदबी एक मिसाली थी। इनकी वफात पर अल्लामा का शदरह इनकी किताब सीरत का आखिरी बार है। इनका दौरे हुकूमत जो चैथाई सदी से कम न रहा। भोपाल की तारीख के सुनहरे दौर के रूप में माना जाता है। वो न सिर्फ भोपाल रियासत की फरमा रवा थीं बल्कि हिन्दुस्तानी ख्वातीन की रहनुमा, मुसलमानों की वाहिद युनिवर्सिटी की चांसलर, मजहबी तालीम की सबसे बडी हामी, मजहबी उलूम व फुनून की सबसे बडी सरपरस्त, हिन्दुस्तान की मोतदिल निस्वानी इस्लाहात की सबसे बडी मुबल्लिग थीं। लेकिन इन इल्मि और इस्लाही कामों से बढकर इनका हकीकी शर्फ इनकी मजहबी गिरोदगी और ईमानी जोश बलबला था।
1904 में अपने साहबजादों और रियासत के ओहदेदारों के बडे काफिले के साथ हरमेन का सफर किया तुर्की सरकार ने आपका इस्तकबाल और हर तरह के आराम और आशाईश का इन्तजाम किया। हज की वापसी पर हुकूूमते हिन्द ने तोपों से सलामी दीं। जार्ज पन्चम की ताजपोशी के मौके पर यूरोप का सफर किया। सुल्तान जहां बेगम का इन्तिकाल सन 1926 में हुआ। क्रमशः