नई दिल्ली। मशहूर इस्लामी विद्वान और गांधीवादी लेखक मौलाना वहीदुद्दीन खान का 21 अप्रैल को 96 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्हें कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद 12 अप्रैल को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मौलाना के पारिवारिक सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने यहां अपोलो अस्पताल में 21 अप्रैल रात को आखिरी सांस ली।
‘मौलानाÓ के नाम से मशहूर वहीदुद्दीन खान को इसी साल जनवरी में देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मविभूषण से नवाजने की घोषणा केंद्र सरकार ने की थी। कुरान का समकालीन अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिए मशहूरी पाने वाले मौलाना को इससे पहले साल 2000 में में उन्हें देश के तीसरे नंबर के नागरिक सम्मान पद्मभूषण से भी नवाजा जा चुका है।
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के बधरिया गांव में 1925 में पैदा हुए मौलाना की पहचान शांति के लिए काम करने वाली बड़ी हस्तियों में की जाती थी। फिलहाल दिल्ली में रहने वाले मौलाना को दुनिया के 500 सबसे ज्यादा प्रभावी मुस्लिमों की सूची में भी शामिल किया गया था।
खासतौर पर उनकी चर्चा ‘इस्लाम में महिलाओं के अधिकारÓ, ‘कांसेप्ट ऑफ जिहादÓ, ‘विमान अपहरण-एक अपराधÓ जैसे लेखों के लिए की जाती है।
मिल चुके थे कई बड़े सम्मान
मौलाना वहीदुद्दीन को पद्मविभूषण व पद्मभूषण के अलावा भी कई बड़े सम्मान मिल चुके थे। उन्हें सोवियत संघ के आखिरी दिनों में वहां के आखिरी राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव पूर्व द्वारा डेमिर्गुस पीस इंटरनेशनल अवॉर्ड, मदर टेरेसा की तरफ से नेशनल सिटीजंस अवॉर्ड और राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार (2009), अबूजहबी में सैयदियाना इमाम अल हसन इब्न अली शांति सम्मान (2015) से भी सम्मानित किया गया था।
मौलाना वहीदुद्दीन खान की पुस्तक ‘सफलता का खजानाÓ में वह लिखते हैं –
पैगंबर साहब शांति व अहिंसा के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने शांति को सबसे बड़ी अच्छाई के रूप में स्थापित किया और इस बात पर बल दिया कि इसके लिए सभी प्रकार की नकारात्मक सोच को दूर करना तथा प्रत्येक व्यक्ति को अच्छे दोस्त के रूप में देखना आवश्यक है। यही इसलामी शिक्षा का सार है।
इसलाम शांति को सर्वोच्च स्थान देता है। मौलाना वहीदुद्दीन खान के ये लेख इसलाम की सच्चाई को दुनिया के सामने प्रस्तुत करने का उपक्रम हैं।
इस संसार में जहाँ संस्कृतियों; धर्मों तथा जातियों की बहुलता लोगों के जीवन को समृद्ध बनाती है; वहीं शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व ही जीवन का एकमात्र तरीका है। फिर भी; आज हम अपने आसपास जो कुछ देखते हैं; वह इसके एकदम विपरीत है। आत्ममंथन के अभाव के साथ ही धर्मों की गलत व्याख्या युवकों को गुमराह कर रही है।
जीवन के इन छोटे-छोटे अनुभवों के माध्यम से मौलाना वहीदुद्दीन खान एक सौहार्दपूर्ण व शांतिपूर्ण विश्व के निर्माण में योगदान कर रहे हैं; जो किसी भी समाज की सफलता के लिए सबसे अनिवार्य आवश्यकता है।
देश-समाज के प्रति सरोकार रखनेवाले हर चिंतनशील व्यक्ति के लिए ‘सफलता का खजानाÓ एक पठनीय पुस्तक है। मौलाना वहीदुद्दीन खान ने ‘अल-रिसालाÓ के नाम से एक पत्रिका का प्रकाशन भी किया था। इसमें सामाजिक सद्भाव से संबंधित आलेखों का प्रकाशन किया जाता रहा।