पीड़ा मंत्री जी की

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लोगों का ऐसा मानना है कि जो व्यक्ति मंत्री बन जाता है वह अपना जीवन सारी सुख सुविधाओं के साथ बड़े सुख से व्यतीत करता है। पार्टी के लोग उसके आगे पीछे घूमते हैं, उसकी मर्जी के मुताबिक काम करने की कोशिश करते हैं। इसी तरह अधिकारी, कर्मचारी वर्ग के लोग मंत्री जी के कहने से पहले ही उनकी बातों एवं हाव-भाव से उनके विचारों को जानकर काम करने का प्रयास करते हैं। कई बार तो मंत्री जी के इशारे पर नियमों को ताक में रखते हुए फैसले ले लिये जाते हैं। इसी तरह मंत्री हो जाने के बाद जिन्हें मंत्री स्वयं नहीं जानते वे भी अपने आप को मंत्री जी का पास एवं दूर का रिश्तेदार बताते हुए, उनकी स्तुति करते नहीं थकते हैं। आस-पड़ोस के लोग एवं बचपन के साथी तो अपने पड़ोसी एवं साथी के मंत्री बनने की खुशी किस तरह से मनाते हैं जैसे ‘संईंया भए कोतवाल तो अब डर काहे काÓ कि तर्ज पर वे स्वयं ही मंत्री बन गये हों। ये सब देखने के बाद तो कोई भी व्यक्ति मंत्री जी के बारे में यह धारणा आसानी से बना लेगा कि मंत्री जी बहुत सुख-चैन से अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उनका जीवन मंगल खुशी से बीत रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है कहावत है कि ‘जै की पीड़ा सोई जानेÓ अर्थात्ï जिसका दर्द है वही समझ सकता है। क्योंकि दुख तो वही झेल रहा है।
अब आगे हम बात करेंगे कि मंत्री पद पाने के बाद किसी साधारण व्यक्ति की क्या दशा होती है अर्थात्ï उसे किन कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है या एक साधारण व्यक्ति को मंत्री बनने के बाद कौन-कौन सी कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है। कठिनाईयों से मेरा तात्पर्य यह नहीं है कि मंत्री जी को किसी के तरफ से जान से मारने का खतरा होगा या उनका बाजार में निकलना बंद हो जाएगा, बल्कि यह दुख तो उस दुख से भी बड़ा होता है जो किसी भी अन्य व्यक्ति के मन को झिंझोड़ कर रख देता है, यदि मंत्री दूसरों की भलाई करना चाहता है, दूसरों के दुख को अपना दुख समझता हैं किसी की समस्या को अपनी समस्या समझते हुए उसको सुलझाने का प्रयास करते हैं आदि कई कारण हैं जो मंत्री जी की पीड़ा का कारण बनते हैं और कभी-कभी इतनी गहरी चोट पहुंचाते हैं। क्योंकि मंत्री जी जानते हैं कि इस व्यक्ति की सही मायने में मदद करना चाहिए और वो चाहकर भी मदद नहीं कर पाते तब मंत्री जी दुखी तो होते ही हैं लेकिन वो अपने इस दुख को उस पीडि़त व्यक्ति के सामने भी नहीं रख पाते। वह पीडि़त व्यक्ति तो अपनी पीड़ा मंत्री जी को सुनाकर अपना मन हल्का कर लेता है और मंत्री जी से अपने उस पीड़ा को हर लेने की आस लगाकर बैठ जाता है लेकिन बेचारे मंत्रीजी तो उस पीडि़त व्यक्ति की पीड़ा से दुखी होने के बाद भी मंत्री जी जानते हैं कि यह वाकई में परेशान है और इसकी मदद मुझे करना चाहिए किन्तु इसके बाद भी जब उसकी मदद नहीं कर पाते तो वे अपने मन की पीड़ा उस पीडि़त व्यक्ति से भी नहीं कह पाते हैं। बेचारे मंत्री जी!
मंत्री जी की पीड़ा के कुछ कारण मैं आपके समक्ष स्पष्टï करना चाहती हूँ जिन्हें पढ़कर शायद आपका मन भी इस बात को किसी न किसी हद तक मानने के लिए तैयार हो जायेगा कि वाकई में मंत्री जी किस दुविधापूर्ण पीड़ा से गुजरते हुए अपने मन को स्थिर रखते हुए काम करते रहते हैं।
मंत्री जी के मंत्री बनते ही पार्टी एवं आस-पास के लोग बड़ी-बड़़ी मालाओं से मंत्री जी का स्वागत करते हैं बड़े-बड़े कार्यक्रम आयोजित करते हैं कि अब तो हमारी पार्टी के नेता मंत्री बन गये हैं और अब हमारा राज आ गया है हमारे सारे काम आसानी से होंगे। इसके साथ ही कई लोग तो स्टेज पर ही मंत्री जी के कान में धीरे से अपनी बात-‘हाथ जोड़कर कह देते हैं, मंत्री जी आपके विभाग में मेरे फलाँ काम की फाईल अटकी हुई है अब आप आ गये हैं मुझे कोई चिन्ता नहीं है, अब आप मेरे इस काम को अपना काम समझना और जल्दी से इस फाइल को पास करवा देना ताकि मेरा रूका हुआ काम शुरू हो जाएÓ मंत्री जी की सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह जाती है। उन्हें यह लगता है कि यह हमारी पार्टी का साथी है अगर इसका काम नहीं होगा तो पार्टी का प्रेशर भी मेरे ऊपर आ सकता है, अगर इन सज्जन का काम एक नम्बर का है तो तो ठीक है, यदि यह फाइल नियम के विरूद्घ हुई तो मैं क्या करूंगा। खैर, अभी तो मंत्री जी ने विभाग समझा भी नहीं लेकिन डिमांड पहले ही आ गई, कार्यक्रम का सारा मजा ही किरकिरा हो गया। दिल दिमा$ग उस पॉवर फुल फाइल में ही अटक कर रह गया।
आगे देखिये त्यौहार आ गये चंदे का दौर शुरू हो गया अनेक छोटे-छोटे धार्मिक संगठनों के लोग मंत्री जी के पास भण्डारे करवाना है चंदा चाहिए, कुंवारी कन्या खिलाना है चंदा चाहिए आदि कार्यक्रमों के लिए चंदा लेने पहुंचने लगे। धर्म के नाम पर, शादी के नाम पर, पार्टी कार्यक्रम के नाम पर, शादियों के सम्मेलन के नाम पर चंदा मांगने लोग पहुंचने लगे मंत्री जी के पास। मंत्री जी धीरे-धीरे लोगों को चुपचाप चंदा देते और अपने मिशन पर निकल जाते लेकिन वो भी आखिर कितने लोगों को चंदा दे सकते थे फिर भी लोगों की आशायें समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही थीं। किसी ने कार्यक्रम आयोजित कर लिया और स्टेज पर ही धीरे से कान में फुसफुसाया कि मंत्री जी हमें तो आपसे दो-चार लाख रूपये चाहिये अब मंत्री बेचारा मुसीबत का मारा क्या करे क्या न करे। मांग तो उसके सामने मुंह बाए खड़ी थी। पार्टी एवं समाज के लोगों को लगा कि मंत्री जी खूब कमा रहे हैं।
आप सभी लोग जानते हैं कि जब कोई आम व्यक्ति जब तक आम होता है तब तक न तो कोई उसे जानते हैं और न ही कोई उसे अपना रिश्ते-नातेदार बताता है, किन्तु जैसे ही व्यक्ति ने किसी प्रकार की तरक्की की प्रदेश में देश में किसी भी क्षेत्र में उसका नाम हुआ कि बस जाने कितने लोग उसके नाते-रिश्तेदार निकल आते हैं और जब खासतौर पर कोई व्यक्ति मंत्री बनता है तो उसके नाते-रिश्तेदारों की भीड़ सी लग जाती है। चाहे मंत्री जी के दूर-दूर के रिश्तेदार भी उन कुकुरमुत्ते के तरह ऊगे नये-नये रिश्तेदारों एवं मित्र मण्डली को नहीं पहचानते होंं। मगर फिर भी वो अपने संबंधों का हवाला देते हुए मंत्री जी के घर धरना देकर बैठ जाते हैं कि हमारा काम करवा दीजिये- जैसे- मैं बीमार हूँ, बच्ची की शादी करनी है, मां, बीमार है बाबूजी का उठावना है, आदि समस्याओं के साथ मंत्री जी के बंगले पर डेरा डाले हुए पड़े रहते हैं, चूंकि ये महाशय स्वयं को मंत्री जी का नातेदार बताते हैं तो उनकी आवभगत करना भी मंत्री जी का धर्म हो जाता है। सो मंत्री जी ने उनके भोजन-पानी की व्यवस्था करवा दी एक-आध बार तो उनकी समस्या को सुलझाने का पूरा प्रयास किया, उनके इलाज के लिये पैसे आदि का इन्त$जाम भी करवा दिया गया। किन्तु हद तो तब हो गई जब वही व्यक्ति एक-दो बार मदद लेने से संतुष्ट नहीं होता वह किसी न किसी बहाने मंत्री जी के बंगले पर मदद के लिए दस्तक देता रहता है। तब मरता क्या न करता वही मंत्री जी ने भी किया कि आपके इलाज को इन्त$जाम हम किसी सरकारी अस्पताल में करवाये देते हैं आप चले जाईये वहां इलाज हो जाएगा। किन्तु उन महाशय को इलाज नहीं इलाज के नाम पर नकद पैसा ही चाहिये। आदि।
इसी तरह मंत्री जी के क्षेत्र के लोगों की कहानी है। सबसे ज्यादा मंत्री जी पर ह$क तो उन लोगों का ही बनता है जो उनके क्षेत्र के लोग हैं क्योंकि उन्होंने ही मंत्री जी को वोट देकर जिताया है मंत्री बनाया है। इस बात को मंत्री जी भी बेहतर तरीके से समझते हैं और उसी तरह अपने क्षेत्र के लोगों को सम्मान-सत्कार भी देते हैं। मंत्री जी के दरबार में क्षेत्र के लोगों का एक अपना अलग ही रूतबा होता है किस तरह से वे मंत्री जी के बंगले एवं ऑफिस के इर्द-गिर्द सीना फुलाये घूमते हैं और मंत्री को मंत्री गद्दी पर बिठाने का श्रेय लिये बिना नहीं रह पाते। मंत्री जी भी खूब समझते हैं क्षेत्र के लोगों की महत्ता क्या होती हैं। वे उन्हें सबसे पहले मिलने के लिये बुलाते हैं, घंटों बैठकर कर उनसे बतियाते हैं। ये सोचे बिना कि बाहर न जाने कितने लोग उनसे मिलने की प्रतीक्षा में बैठे हुए हैं। फिर यदि किसी समय मंत्री जी ने उन क्षेत्र वासियों की मांग को पूरा करने में असमर्थता जाहिर की नहीं कि उन महाशय ने गद्दी पर बिठाने के लिए की गई मेहनत एवं दिये गये वोट का हवाला देकर उन्हें डराने और धमकाने से भी नहीं चूकते। वे फौरन ही आने वाले चुनाव में चुनाव की सफलता-और असफलता की धमकी इशारों ही इशारों में देते हैं। कई बार तो मंत्री जी परेशान हो अपनी खीज को भी नहीं छुपा पाते और ये भी इशारों ही इशारों में अपने काम के दम पर चुनाव जीतने की बात कहने से गुरेज नहीं करते।
इसी प्रकार से मंत्री जी के पास लाइन लग जाती है नौकरी मांगने वालों की मानो नौकरी में रखना मंत्री जी का स्वयं का फैसला है वो जितने चाहे लोगों को नौकरी में रख सकते हैं। हर आदमी की अपनी मंत्री जी से आशायें होती हैं किसी के बच्चे को भ्रष्टïाचार या किन्हीं अन्य कारणों से नौकरी से सस्पेंड कर दिया गया या निकाल दिया गया तो पहुंच गए मंत्री जी के पास चाहे वह व्यक्ति उनके विभाग से संबंधित हो या नहीं उस व्यक्ति की न$जर में मंत्री तो मंत्री ही होता है वो जो चाहे सारे काम कर सकता है। मानो वो मंत्री नहीं भगवान हो, ईश्वर हो उसके इशारों पर ही सारे काम हल हो जाते हैं। सबके दुखों को हरने वाला हो वे नहीं जानते की कभी-कभी मंत्री और अधिकारी की आपस में इतनी अनबन चलती है कि अधिकारी मंत्री के खिलाफ काम करने को ही अपनी शान समझते हैं।
मंित्रयों का मानना हैं कि मंत्रियों की पीड़ा बढ़ाने में जितना हाथ हमारे देश के आम लोगों का है उतना ही हाथ हमारे पत्रकार बंधुओं का भी है। किन्तु पत्रकार बंधु भी विज्ञापन तो अपना अधिकार समझकार कर मांगते हैं और वे भी विज्ञापन एक बार लेकर या एक सीमित राशि के विज्ञापन से संतुष्टï नहीं होते वे बार-बार प्रसार-प्रचार विज्ञापन लेने का प्रयास करते हैं, हद तो तब होती है जब कुछ पत्रकार बंधु मंत्री जी से संबंधित विभाग से कच्चे चि_ïे निकलवाते हंै, भ्रष्टïाचार के नाम पर मंत्री जी एवं विभाग से संबंधित अधिकारी- कर्मचारी को ब्लैक मेल करते हैं और बड़े-बड़े विज्ञापन की डिमांड एवं नगद रूपयों की मांग करते हैं। तब मंत्री जी की पीड़ा चौगुनी हो जाती है।
कभी-कभी तो कुछ भ्रष्टïाचारी मंत्री भी इन्हें पैसे देकर अपने भ्रष्टïाचार को दबाने की बात कर इनको बढ़ावा देकर स्वयं इनके चंगुल में फंसते चले जाते हैं। और ये पत्रकार भी बारम्बार इनसे पैसे एवं बड़ी-बड़ी राशि के विज्ञापन लेते जाते हैं। आदि ऐसी अनेक समस्याएं हैं जो मंत्री जी के गले में फंसी हुई हड्डïी के समान होती हैं जिन्हें न उगला जा सकता है और न ही निगल सकते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि आदमी अपनी आदत से मजबूर होता है हर मनुष्य में किसी न किसी प्रकार की अच्छी एवं बुरी आदत होती है और वह चाहकर भी उन अच्छी या बुरी आदत को छोड़ नहीं पाता है। जैसे- एक व्यक्ति की आदत थी चोरी करने की चूंकि उसकी यह आदत उसकी आर्थिक परिस्थिति के कारण पड़ी गयी। चूंकि चोरी करना उस व्यक्ति की आदत में शामिल हो गया। धीरे-धीरे वह व्यक्ति एक धनवान व्यक्ति बन गया वो जब कभी किसी भी दुकान पर चाहे वह कपड़े की हो, किराने की हो, बरतन की हो आदि दुकानों पर जाता खूब मन से महंगे से महंगा सामान खरीदता किन्तु वह अन्त में एक छोटा सा सामान दुकानदार की चोरी से अपने खरीदे हुए सामान में मिलाना नहीं भूलता था।
अर्थात्ï हम कह सकते हंै कि मंत्री पद वह लड्डïू है जो खाये सो पछताये और जो न खाये वो भी पछताये। अब आप सोच लीजिये ये आपका अपना फैसला है। यह पीड़ा तो हर मंत्री की है चाहे वे इसे जुबान से कुबूल करे अथवा मन ही मन इस बात पर सहमत हो कि जो बातें हमने लिखी हैं वह सत्य हैं।
– रईसा मलिक