विश्व में तमाम धर्मों, विशेष रूप से हिंदू धर्म की दृढ़ मान्यता है कि मृत्यु के बाद शरीर मर जाता है लेकिन आत्मा नहीं मरती। वह किसी दूसरे शरीर के रूप में पुनर्जन्म लेती है। प्रत्येक जन्म में हमें पिछले जन्मों के कर्मों का फल भोगना पड़ता है लेकिन आधुनिक युग तो तर्क तथा विज्ञान का युग है। वह प्रत्येक दावे का प्रमाण मांगता है। बिना तथ्यात्मक प्रमाण के पुनर्जन्म या अन्य किसी ऐसी ही घटना को विज्ञान मान्यता नहीं देता और वह केवल कपोल कल्पना या किस्से-कहानियों की बात बन कर रह जाती है। पुनर्जन्म के क्षेत्र में जैसे ही हम तथ्यों की जांच करने के लिए जाते हैं, वैसे ही उसका रहस्य खुलने की बजाए और भी गहरा होता जाता है।
इस संबंध में सर्वाधिक उल्लेखनीय उदाहरण है भारत की शांति देवी का जिन्होंने 3 वर्ष की आयु से ही अपने पिछले जन्म का हाल सुनाना प्रारंभ कर दिया था। सन्ï 1929 में पुरानी दिल्ली में जन्मी शांतिदेवी ने अपने माँ-बाप से एक दिन कहा कि उनके पिछले जन्म के पति का नाम केदारनाथ है, जो मथुरा में रहते हैं। उनका घर पीले रंग से पुता हुआ तथा बड़े मेहराबदार दरवा$जों व नक्काशीदार खिड़कियों से युक्त है। मकान के विशाल अहाते में गेंदे तथा चमेली के फूल लगे हुए हैं। उनके बच्चे आज भी अपने पिता के साथ उसी मकान में रहते हैं।
जैसे ही समाचारपत्रों में यह कहानी प्रकाशित हुई, इसके तथ्यों की जांच-पड़ताल प्रारम्भ हो गई। शांति देवी का कहना था कि पूर्व जन्म में उसकी मृत्यु बच्चे को जन्म देते समय हुई थी। बच्चा जीवित रह गया था तथा मां की मृत्यु हो गई थी। जब शांति देवी के एक रिश्तेदार किशन चंद ने उसके कथित पति को इस संबंध में पत्र लिखा तो केदारनाथ ने मामले की जानकारी के लिए दिल्ली स्थित एक रिश्तेदार को शांति देवी के घर पर भेजा। शांति देवी ने इस रिश्तेदार को भी तुरंत पहचान लिया और उसे कई ऐसी बातें बताईं, जो केवल केदार नाथ की स्वर्गीय पत्नी को ही मालूम हो सकती थीं। जब केदार नाथ अपने पुत्र के साथ शांति देवी से मिलने दिल्ली आए तो शांति देवी ने एक पति परायण पत्नी की तरह तथा एक स्नेही माँ की तरह क्रमश: दोनों की देख-भाल की। ऑल इण्डिया न्यू$जपेपर सोसाइटी के अध्यक्ष और सांसद देशबंधु गुप्ता के नेतृत्व में शांति देवी को मथुरा ले जाया गया। स्टेशन पर उतर कर शांति देवी ने अपने पुराने घर का रास्ता स्वंय तलाश कर लिया। शांति देवी द्वारा अपने पूर्व जन्म के बताए हुए तमाम विवरण सत्य सिद्घ हुए।
न केवल भारत में पूर्व जन्म की कथा सुनाने से संबंधित ऐसे अनगिनत उदाहरण सामने आए हैं अपितु विश्व के जन्म के अन्य देशों में भी अनेकों व्यक्ति अपने पूर्व जन्म का हाल बताने का दावा करते रहते हैं। पश्चिमी यूरोप, लेटिन, अमेरिका, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा निकटवर्ती पूर्व के देशों से भी इस तरह के कई लोग प्रकाश में आए हैं, जो अपने पूर्व जन्म का हाल बता सकते हैं। वैसे अब यह सिद्घ हो चुका है कि पुनर्जन्म की अवधारणा भारत से ही उत्तरी अमेरिका पहुंची थी। अमेरिका में इस प्रकार का सबसे बड़ा उदाहरण प्रसिद्घ रेड इण्डियन मछियारे विलियम जार्ज सीनियर का है, जो मरने से पहले अपने पुत्र व पुत्रवधु को आश्वासन दे गये थे कि वे उनके पुत्र के रूप में पुर्नजन्म लेंगे तथा शिशु के शरीर पर भी उनके शरीर जैसे निशान होंगे। अगस्त 1949 में विलियम जार्ज की मछली मारते हुए मृत्यु हो गई। कुछ दिनों बाद उनकी पुत्रवधु ने एक ऐसे बालक को जन्म दिया, जिसके शरीर पर उसके श्वसुर जैसे ही निशान थे। बच्चे का नाम भी विलियम जार्ज रखा गया। इस बच्चे में अपने दादा के सारे गुण मौजूद थे। वह उन्हीं की तरह हल्का-सा लंगड़ा कर चलता था तथा बच्चे के पास मछली मारने व नावों से संबंधित ज्ञान का असीम भण्डार था। ये दोनों विशेषताएं उसके दादा में भी थीं। उसे आस-पड़ोस के लोगों और स्थानों के बारे में भी असामान्य जानकारी थी लेकिन जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता गया, उसकी अपने दादा से मिलने-जुलने वाली समानताएं कम होती गईं। अपनी माँ को श्वसुर द्वारा दी गई सोने की घड़ी उसने $जरूर पहचान ली और दावा किया कि यह उसकी घड़ी है।
बर्जीनिया विश्वविद्यालय (सं. अमेरिका) के मनोरोग विभाग के परामनोविज्ञान संभाग के डायरेक्टर डॉ. इयान स्टीवेंसन ने इस दिशा में काफी शोधकार्य किया है। उन्होंने विश्व के तमाम कोनों से आए हुए इस प्रकार के विभिन्न मामलों का विस्तृत अध्ययन करके निष्कर्ष निकाला है कि लोगों के धार्मिक व सांस्कृतिक विश्वास उनके पुनर्जन्म संबंधी वर्णनों पर काफी असर डालते हैं। उन्होंने पता लगाया कि मृत्यु और पुनर्जन्म के बीच रहने वाले समय के अंतर का औसत अलग-अलग देशों में अलग-अलग है। तुर्की में 8 माह, भारत में 56 माह और श्रीलंका में 21 माह तथा अलास्का में यह अंतर 48 माह तक का है। इसके अलावा दुर्घटनाग्रस्त होकर मरने वाले मामलों में पुनर्जन्म का किस्सा अधिक सुनने को मिलता है। श्रीलंका में 40 प्रतिशत तथा लेबनान और सीरिया के कुछ क्षेत्रों में 80 प्रतिशत तक ऐसे मामले मिलते हैं। अक्सर उस जन्म से इस जन्म में लिंग परिवर्तन भी हो जाता है तथा माताओं को गर्भावस्था के दिनों में किसी आत्मा का संदेश भी सुनाई पड़ता है कि वह उसके बच्चे के रूप में जन्म लेने वाली है।
प्राचीन विद्वानों, बाइबिल तथा अन्य प्राचीन ग्रंथों, प्लेटो जैसे यूनानी विचारकों ने भी मृत्यु के पश्चात्ï भी जीवन की निरंतरता, आत्मा की अमरता तथा पूर्व जन्म की स्मृतियों के शेष रह जाने का उल्लेख किया है। तिब्बत की दलाईलामा परम्परा एक ऐसी परम्परा मानी जाती है, जहां नया दलाईलामा पैदा होगा। कहा जाता है कि वर्तमान 13वें दलाईलामा को सन्ï 1936 में इसी तरह खोजा गया था। 14वें दलाईलामा ने अपने खोजे जाने का विस्$तृत वर्णन ‘माई लैण्ड एण्ड माई पीपुलÓ नामक पुस्तक में किया है, जो पुनर्जन्म के अस्तित्व का अभूतपूर्व दस्तावेज लगता है। हिंदू धर्म में विष्णु अवतार, राम व कृष्ण के आख्यान भी पुनर्जन्म की धारणा को पुष्टï करते हैं।
साधारण व्यक्तियों ने ही नहीं, दलाईलामा के अतिरिक्त अनेक महान्ï व्यक्तियों ने पुनर्जन्म की धारणा की पुष्टिï की है। अमेरिकी जनरल जॉर्ज पैटन का विश्वास था कि पूर्व जन्म में वे एक रोमन योद्घा थे। 19वीं शताब्दी में महिला नेता तथा लंदन की थियोसोफिकल सोसाइटी की अध्यक्षा श्रीमती एन्नी बेसेण्ट को दृढ़ विश्वास था कि उनका पुनर्जन्म अवश्य होगा। विगत जीवन और वर्तमान जीवन के बीच जो अंतराल होता है, उसके बारे में बताने में अभी तक लोग असफल रहे हैं। मान लीजिए एक व्यक्ति को याद आता है कि पूर्व जन्म में उसकी मृत्यु सीढिय़ों से गिरने के कारण हुई थी। यदि उसके वर्तमान जन्म और पूर्व मृत्यु में दो वर्ष का अंतर रहा है तो वह यह नहीं बता पाता कि इन दो वर्षों में उसका अस्तित्व कहां और किस रूप में रहा होगा। अक्सर पाया गया है कि 5 वर्ष तक के बच्चे ज्यादा अच्छी तरह अपना भूतकाल याद कर पाते हैं। 6-7 वर्ष की उम्र होने पर उनकी स्मृति धुंधली हो जाती है और बड़े होने पर वे बिल्कुल भूल जाते हैं। इस तरह की बातों का कोई तार्किक उत्तर न तो विज्ञान दे पाया है और न ही परामनोविज्ञान।
डॉ. स्टीबेंसन ने आज तक 1,600 ऐसे मामलों की जांच की है, जिनमें पूर्व जन्म की यादें होने का दावा किया गया है। उनका कहना था कि जो लोग पूर्व जन्म में डूब कर मरते हैं, वे इस जन्म में भी पानी से डरते हैं, पनडुब्बी के इंजन चलाने, नाचने-गाने, सीने की मशीन चला लेने, इत्यादि जैसी पूर्व जन्म की योग्यताएं इस जन्म में भी लोगों में देखी गई हैं। हिप्रोटिज्म द्वारा भी कई लोगों को उनकी पूर्व जन्म की याद दिलाने की कोशिश की गई है, जिसमें एक सीमा तक सफलता भी मिली है। स्टीबेंसन ने 200 लोगों ने शरीर पर ऐसे निशान पाए, जो जन्म से ही थे और वही निशान उनके शरीर पर पूर्व जन्म में भी थे। इनमें गोलियों से लेकर धारदार हथियारों तक के घावों के निशान शामिल हैं।
डॉ. स्टीबेंसन के ही शब्दों में पुनर्जन्म के रहस्य की निम्र शब्दों में व्याख्या की जा सकती है-‘न हम कभी यह सिद्घ कर सकते हैं कि पुनर्जन्म नहीं होता और न ही हम उसके होने का प्रमाण ही दे सकते हैं। आज तक मैंने जिन मामलों की जांच की है, उनमें कमियां थीं, और कई में तो काफी गम्भीर कमियां भी थीं। किसी एक मामले से या सभी मामलों से संयुक्त रूप से भी आज तक पुनर्जन्म का कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिल सका। हां, इन सभी मामलों में ऐसी घटनाएं और गवाहियां अवश्य मिलती हैं, जो पुनर्जन्म की ओर इशारा भर करती हैं…।Ó-नबीला